पॉलिटॉक्स न्यूज/बिहार. कोरोना संकट के बीच भुखे-बेबस और बेसहारा परदेशी मजदूरों का अन्य राज्यों से बिहार आना बदस्तूर जारी है. इस दौरान सरकार अपना प्रभाव दिखाने के नुस्खे भी तलाश रही है. कोराना कहर के बीच बिहार सरकार यह घोषणा कर चुकी है कि परदेश से लौटने वाले मजदूरों को गांव में रोजगार की गारंटी है. उक्त घोषणा के अनुरूप सरकार के पास मनरेगा से अच्छा कोई विकल्प भी नहीं है. शायद इन्हीं वजहों से मनरेगा अंतर्गत बड़े पैमाने पर योजनाएं शुरू की गयी है. मगर बिहार की नीतीश सरकार के इस मंसूबे पर गांव की सरकार पानी फेरने में भी कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रही है.
इसका जीता-जागता उदाहरण बेगूसराय जिले के बछवाड़ा प्रखंड अंतर्गत अरबा पंचायत के वार्ड तीन में देखने को मिला, जहां कुछ दिनों पूर्व ही मनरेगा के अभियंता द्वारा स्थल निरीक्षण के साथ मापदंड बनाई गई जिसके तहत उक्त स्थल पर पोखर निर्माण व खुदाई कार्य करना है.
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लेकिन पंचायत की कार्य एजेंसी द्वारा दो दिनों से इस कार्य स्थल पर मजदूरों की जगह पोपलेन (बड़ी जेसीबी) से मिट्टी खोदने का कार्य कराया जा रहा है. कार्य स्थल पर किसी प्रकार का कोई प्राकलन बोर्ड भी नहीं लगाया गया है, जिससे आम लोगों को सरकार द्वारा निर्धारित प्राकलित राशि समेत अन्य विस्तृत जानकारी मिल सके. यहां ये भी बताना जरूरी है कि मनरेगा योजना अंतर्गत क्रियान्वित होने वाली योजनाओं में मशीन के उपयोग करने पर पूरी तरह पाबंदी है. बावजूद इसके खुदाई कार्य में पोपलेन से मिट्टी खोदी जा रही है.
इस संबंध में ग्रामीण एवं स्थानीय मजदूर रामप्रवेश यादव उर्फ बौआ यादव ने अपना दर्द सांझा करते हुए कहा कि बिहार की नीतीश कुमार सरकार तो चाहती है कि गांव आए मजदूरों को मनरेगा के तहत रोजगार मिले, मगर यहां तो जेसीबी व पोपलेन से काम करवा कर मजदूरों की हकमारी हो रही है. बौआ यादव ने जिला प्रशासन से आवश्यक पहल करने की गुहार लगाई है. आप भी सुनिए वीडियो में मजदूर का दर्द…
उक्त कार्य योजना में मशीनरी के इस्तेमाल किए जाने के सवाल पर पंचायत की मुखिया फूल कुमारी ने कुछ भी बताने से इनकार कर दिया. वहीं मनरेगा के प्रखंड कार्यक्रम पदाधिकारी मिलन कुमार ने बताया कि उक्त कार्य को लेकर अभिलेख नहीं खोला गया है. अभिलेख नहीं खुलने की स्थिति में अगर किसी प्रकार का अग्रिम कार्य कराया जाता है तो उसका भुगतान विभाग द्वारा नहीं किया जाएगा. वीडियो में देखिए खुदाई के दौरान मजदूरों की जगह मशीनरी का इस्तेमाल…
खैर, ये तो बात केवल अरबा पंचायत की है जबकि अधिकतर गांवों में ऐसी ही स्थिति बनी हुई है. ऐसे में बिहार में दो जून की रोटी की आस में मजदूरों के दिलों दिमाग में सिर्फ यही सवाल कौंध रहा है कि आखिर उनके लिए कब संवेदनशील होगी गांव की सरकार.