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Rajasthan Politics: नागौर से कांग्रेस की पूर्व सांसद ज्योति मिर्धा और 2018 में खींवसर विस सीट से चुनावी उम्मीदवार सवाई सिंह चौधरी ने बीते दिनों कांग्रेस का साथ छोड़ भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया. हालांकि दोनों नेताओं ने गहलोत सरकार में बदहाल कानून व्यवस्था और कांग्रेस में कार्यकर्ताओं की अनदेखी को पार्टी छोड़ने का मुख्य कारण बताया, लेकिन बीजेपी में शामिल होने के पीछे हाथ छोड़ ‘कमल’ थामने वाली ज्योति मिर्धा और सवाई सिंह चौधरी के गहरे सियासी मायने हैं. बीजेपी ने काफी सोच विचार के बाद इन दोनों को पार्टी में शामिल किया है. दिग्गज नेता दिवंगत नाथूराम मिर्धा की पोती ज्योति मिर्धा और पिछले विस चुनाव में हार का सामना कर चुके सवाई सिंह चौधरी के पार्टी छोड़कर जाने से कांग्रेस को कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा लेकिन इनके बीजेपी में जाने से रालोपा प्रमुख हनुमान बेनीवाल को दिक्कतें जरूर हो सकती हैं.

दो लोकसभा चुनाव हार चुकी हैं ज्योति मिर्धा

ज्योति मिर्धा कांग्रेस के टिकट पर लगातार दो लोकसभा चुनाव हार चुकी हैं. 2009 में ज्योति नागौर लोकसभा सीट से सांसद चुनी गई थी. इसके बाद 2014 और 2019 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था. 2014 की मोदी लहर में ज्योति को बीजेपी के सी.आर.चौधरी से शिखस्त मिली, जबकि 2019 के लोकसभा चुनाव में हनुमान बेनीवाल के हाथों उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ा था. इस बार उन्हें नागौर से टिकट मिलने की संभावना कम दिख रही थी. ऐसे में उन्होंने पाला बदलने का निर्णय लिया. बता दें कि ज्योति की ससुराल पक्ष की पृष्ठभूमि बीजेपी से रही है. वे एक उद्योगपति घराने से संबंध रखती हैं.

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इसी तरह पूर्व आईपीएस सवाई सिंह चौधरी ने 2018 में कांग्रेस के टिकट पर खींवसर से चुनाव लड़ा था लेकिन रालोपा प्रत्याशी हनुमान बेनीवाल ने उन्हें आसानी से हरा दिया. देखा जाए तो मिर्धा और चौधरी दोनों ही जाट नेता हैं लेकिन दोनों को हनुमान बेनीवाल के हाथों करारी शिखस्त का सामना करना पड़ा है.

मिर्धा-चौधरी के सहारे जनाधार बढ़ाने की कोशिश

नागौर जिला जाट बहुल्य क्षेत्र है जिसमें विधानसभा की 10 सीटें आती हैं. यहां हर सीट पर जाट समाज जीत या हार तय करते हैं. यह इलाका पूरी तरह से हनुमान बेनीवाल का गढ़ कहा जाता है. चूंकि अब हनुमान बेनीवाल बीजेपी के साथ नहीं हैं, ऐसे में बीजेपी मिर्धा और चौधरी के सहारे नागौर समेत अन्य जाट बहुल इलाकों में अपना जनाधार बढ़ाने की कोशिश कर रही है. 2019 के लोकसभा चुनाव में हनुमान बेनीवाल ने ज्योति मिर्धा को हराया था. अब हो सकता है कि ज्योति को फिर से नागौर की लोकसभा सीट या फिर विधानसभा चुनाव में खींवसर सीट से चुनाव लड़ाया जाए. ऐसे में बेनीवाल की राह आसान नहीं रह जाएगी.

मिर्धा को लोकसभा भेजा तो चौधरी होंगे बेनीवाल के सामने

ज्योति और चौधरी को बीजेपी में लाने के असल सियासी मायने यही हैं कि उन्हें नागौर में हनुमान बेनीवाल और रालोपा का प्रभाव कम करना है. बेनीवाल इस बार फिर से विधानसभा चुनाव में अपनी किस्मत आजमाएंगे. ऐसे में वे खींवसर विस से चुनाव लड़ सकते हैं. यहां ज्योति मिर्धा को उनके सामने चुनावी मैदान में लाया जा सकता है. यहां जाट वोटर्स के साथ बीजेपी समर्थक भी मिर्धा का साथ देंगे. ऐसे में बेनीवाल को खासी परेशानी हो सकती है.

वहीं अगर ज्योति को लोकसभा चुनावों में उतारा जाता है तो खींवसर से बेनीवाल को चौधरी चुनौती देंगे. 2018 के विधानसभा चुनाव में बेनीवाल ने चौधरी को हराया था. इस बार वे पिछली हार का बदला लेना चाहेंगे. इसके लिए मिर्धा और चौधरी जाट वोटर्स को अपनी तरह करने का पूरा प्रयास करेंगे.

इधर, बीजेपी से गठबंधन तोड़ने के बाद से ही बेनीवाल केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ काफी मुखर हैं. इससे स्पष्ट है कि रालोपा आगामी चुनावों में बीजेपी से संभवत: कोई गठबंधन नहीं करने के मूड में है. ऐसे में मिर्धा और चौधरी का साथ हनुमान बेनीवाल को उनके ही गढ़ में कितना रोकने में कामयाब हो पाता है, ये देखना रोचक रहने वाला है.

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