Rajasthan Politics: गुलाबी नगरी जयपुर में बीती शाम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करीब साढ़े चार बाद पधारे और जनसभा को संबोधित किया. चूंकि राजस्थान में चुनावी साल है इसलिए पीएम का आना कोई बड़ी बात नहीं. बात ये खास है कि प्रदेश की दो बार की मुख्यमंत्री रह चुकीं वसुंधरा राजे को मंच पर तो जगह मिली, लेकिन मंच से संबोधित करने का अवसर नहीं मिला. ऐसा भी कहा जा सकता है कि उन्हें मंच से संबोधित करने का अवसर दिया नहीं गया. वसुंधरा राजे केंद्रीय आलाकमान की कुछ नीतियों से नाराज है, इसमें तो कोई संशय नहीं है लेकिन सार्वजनिक तौर पर यूं राजे की अनदेखी करना सियासी गलियारों में यही संदेश दे रहा है कि अब उन्हें साइड लाइन करने की तैयारी की जा रही है. पिछले 20 वर्षों में राजस्थान बीजेपी का प्रतिधित्व करने वाली वसुंधरा राजे ही प्रदेश में बीजेपी का सबसे बड़ा चेहरा मानी जाती हैं. इसके बावजूद उन्हें इस तरह से क्यों साइड लाइन किया जा रहा है, अंदरखाने में इसकी काफी सारी वजह बताई जा रही हैं.
यह तो सही है कि जयपुर के दादिया गांव में हुई जनसभा में पूर्व सीएम वसुंधरा राजे का भाषण न होना प्रदेश की सियासत में चर्चा का विषय बना हुआ है. उनका भाषण न होना इस बात से भी थोड़ा चौंकाता है कि मंच से बीजेपी के उन नेताओं के भी भाषण कराए गए, जो राजे ने न सिर्फ राजनीतिक कद में अनुज हैं, बल्कि उम्र में भी काफी छोटे हैं. पीएम मोदी के सभा स्थल पर पहुंचने से पहले राजेंद्र सिंह राठौड़, सतीश पूनियां, केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, अर्जुन राम मेघवाल, कैलाश चौधरी, राज्यसभा सांसद किरोड़ी लाल मीणा और सांसद दीया कुमारी तक के भाषण कराए गए. उस दौरान वसुंधरा राजे मंच पर नजर तक नहीं आयी थीं.
यह भी पढ़ें: सत्ता के लिए जरूरी है मेवाड़-वागड़ का साथ! सियासी हवा में नहीं बहता यहां का मतदाता
पीएम मोदी के मंच पर आने के बाद वसुंधरा राजे को बशर्ते सीपी जोशी और मोदी के बीच की सीट मिली लेकिन जनता को संबोधन का अवसर केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी के राजस्थान अध्यक्ष सीपी जोशी को ही मिला. इस बात के अलग अलग मायने निकाले जा रहे हैं लेकिन राजनीतिक विशेषक इसे बीजेपी की सियासी गुटबाजी से जोड़कर देख रहे हैं. दरअसल, सीएम फेस न बनाए जाने से राजे नाराज बताई जा रही हैं. राजे समर्थक खुलकर इसके लिए विरोध जता रहे हैं. वहीं नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र सिंह राठौड़, केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, पूर्व बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनियां अपने आपको सीएम पद का दावेदार मान रहे हैं. इनमें कुछ नाम और भी हैं, जिनकी चर्चाएं चल रही है. इन सभी बातों को नियंत्रित करने के उद्देश्य से पीएम मोदी ने ये स्पष्ट संकेत दे दिए हैं कि राजस्थान में बीजेपी की पहचान अब वसुंधरा राजे नहीं बल्कि खुद पीएम मोदी और कमल का फूल है.
यहां सभी संभावित चेहरों के साथ साथ एक चेहरा ऐसा भी है जो वसुंधरा राजे को कड़ी टक्कर दे रहा है, जिसे आगामी वर्षों में राजस्थान का भावी मुख्यमंत्री माना जा रहा है. वो है दीया कुमारी. हालांकि सांसद रहते पिछले 4 वर्षों में उन्हें मंत्री पद से सुशोभित नहीं किया गया है लेकिन जिस तरह से प्रदेश एवं केंद्र की राजनीति में उनका कद बढ़ाया जा रहा है, वो देखने लायक है. वसुंधरा राजे के पिछले कार्यकाल में तत्कालीन विधायक दीया कुमारी के पैलेस पर जेडीए की कार्रवाई से इन दोनों के बीच तल्खी बढ़ी थी, जिस पर दीया कुमारी ने सीधे पीएम मोदी और तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह से मुलाकात की थी. उसके तुरंत बाद इस कार्रवाई को विराम दे दिया गया था. उस समय दीया कुमारी ने न चाहते हुए भी अपनी सियासी ताकत का अहसास करा दिया था.
दीया कुमारी और राजे के बीच सियासी दरार को देखते हुए ही दीया कुमारी को 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में टिकट नहीं दिया गया. बाद में उन्हें राजसमंद से लोकसभा का टिकट मिला, जहां उन्हें जीत हासिल हुई. दीया कुमारी को प्रदेश के हक में बोलते हुए कई बार देखा गया है. हाल में दीया को प्रदेश की कार्यकारिणी में भी शामिल कर उनकी भूमिका एवं उनका सियासी कद बढ़ाने की कोशिश को देखते हुए भी राजे थोड़ी नाराज बताई जा रही है.
बीजेपी की कई रैलियों एवं सभाओं से वसुंधरा राजे की दूरी भी केंद्रीय आलाकमान को नाराज कर रही है. बीजेपी की परिवर्तन यात्रा में राजे का खास योगदान नहीं रहा है. वहीं गहलोत सरकार के कथित भ्रष्टाचार के खिलाफ जब बीजेपी ने सचिवालय को घेरने की कोशिश की, राजे यहां से भी नदारद रही. दादिया में हुई पीएम मोदी की जनसभा में भी राजे प्रधानमंत्री के आने से पहले तक मंच से गायब रहीं और उनके आने के बाद ही मंच पर आयीं. यहां भी सीपी पीएम से बातचीत करते दिखे लेकिन राजे को ज्यादा समय के लिए चुप ही देखा गया.
एक तरफ पार्टी की ओर से वसुंधरा राजे की अनदेखी की जा रही है, वहीं दूसरी तरफ राजे भी पार्टी से अलग हटकर निजी स्तर पर अपना शक्ति प्रदर्शन दिखा रही है. केंद्रीय नेताओं के साथ भले ही राजे ने परिवर्तन रैलियों को हरी झंडी दिखाई हो लेकिन प्रदेश की 200 विधानसभाओं से गुजरी किसी रैली में हिस्सा नहीं लिया, बल्कि पीएम मोदी की सभा से ठीक दो दिन पहले 23 सितंबर को राजे के निवास पर हजारों की संख्या में महिलाओं ने पहुंच उनको रक्षा सूत्र बांधा था. इसके बाद राजे ने कहा था कि मैं राजस्थान छोड़कर कहीं नहीं जाउंगी. इसे राजे का शक्ति प्रदर्शन ही कहा जा रहा है.
मौजूदा समय में राजे का राजस्थान में वर्चस्व सीएम अशोक गहलोत से किसी भी तरह से कमतर नहीं है. ऐसे में राजे को यूं शक्ति प्रदर्शन और बीजेपी की रैलियों में शरीक न होना आलाकमान को चिंता में डाल रहा है. बीजेपी की मंशा किसी भी हालत में सत्ता हथियाना है लेकिन बागड़ौर खुद के हाथों में भी रखना है. यही वजह है कि वसुंधरा राजे के कई बार कहने के बावजूद बीजेपी नए चेहरे का संकेत दे रहा है और यही वजह है कि राजे को साइड लाइन किया जा रहा है. आचार संहिता लागू होने के बाद जनसभाओं में आने वाली तेजी में वसुंधरा राजे के सियासी सफर का स्पष्ट तौर पर पता चल जाएगा. तब तक राजे को इसी तरह के घटनाक्रमों से रूबरू होने के लिए तैयार रहना ही होगा.