महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद प्रदेश की राजनीति एक अलग दोराहे पर आकर खड़ी हो गयी है. पहले शरद पवार और अजित पवार के बीच आपसी दूरियां खत्म होने की अफवाहों ने जोर पकड़ा. उसके बाद दो दशक से दूर रहे राज ठाकरे और उद्दव ठाकरे की अदावत समाप्त होने लगी. इधर, बीजेपी की ओर से सीएम देवेंद्र फडणवीस ने उद्दव ठाकरे को साथ आने का निमंत्रण दिया तो वे भी आदित्य ठाकरे के साथ उनसे मिलने पहुंच गए. अब दोनों के बीच सुलह की अटकलें लगने लगी है. इस बीच ऑपरेशन सिंदूर को लेकर उद्दव ने केंद्र सरकार पर निशाना भी साध दिया. ऐसे में शिवसेना यूबीटी प्रमुख के इस फैसले पर कई तरह की संभावनाएं घर करने लगी है.
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दरअसल, पार्टी के मुखपत्र ‘सामना’ को दिए गए इंटरव्यू में उद्दव ठाकरे ने ऑपरेशन सिंदूर को लेकर सवाल उठाया कि जब सेना ने साहस दिखाया, तो फिर सरकार ने उनके कदम क्यों रोके? क्या सरकार किसी दबाव में थी? उन्होंने कहा कि सेना की बहादुरी का श्रेय किसी सरकार को नहीं जाना चाहिए. केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि उन्हें देश की नहीं, सिर्फ व्यापार की चिंता है. उन्होंने ये भी कहा कि आज देश के पास प्रधानमंत्री नहीं है, सिर्फ भाजपा के पास है और जो लोग देश चला रहे हैं, वे संविधान को मानने के लिए भी तैयार नहीं हैं.
ठाकरे ब्रांड नहीं, एक पहचान
राज्य में बदलते सियासी समीकरणों के बीच केंद्र की मोदी सरकार पर इस तरह का निशाना साधना सीएम फडणवीस के साथ राजनीतिक नजदीकियां बढ़ने की अटकलों पर पानी फिराता हुआ नजर आ रहा है. इधर, उद्दव ने यह कहते हुए भी शिवसेना और एकनाथ शिंदे पर निशाना साध दिया कि ठाकरे’ एक ब्रांड नहीं महाराष्ट्र, मराठी मानुष और हिंदू अस्मिता की पहचान है. कुछ लोग इस पहचान को मिटाने की कोशिश की, लेकिन खुद ही मिट गए. उन्होंने यह भी कहा कि जिनके पास कुछ नहीं है और जो अंदर से खोखले हैं, उन्हें ठाकरे ब्रांड की मदद लगती है. यही इस ब्रांड की खासियत है. शिंदे गुट इस ब्रांड की चोरी कर रहा है और खुद को इसका भक्त बताकर अपना महत्व बढ़ाने की कोशिश कर रहा है.
शिवसेना और एकनाथ पर भी हमला
उद्धव ने कहा कि चुनाव आयोग एक पत्थर है. उस पत्थर पर सिंदूर लगा देने से उसे ‘शिवसेना’ नाम और धनुष-बाण चिह्न किसी और को देने का अधिकार नहीं मिल जाता. यह नाम मेरे पिता और दादा ने दिया है. हमारा चुनाव चिह्न किसी और को दे सकता है या फ्रीज कर सकता है, लेकिन ‘शिवसेना’ नाम किसी और को नहीं दे सकता. वहीं एकनाथ शिंदे पर कड़ा हमला करते हुए उद्दव ने कहा कि ऐसे लोग परावलंबी ही होते हैं. उनके पास दूसरा कोई विकल्प नहीं है. दिल्ली जाकर कितने पैर धोएंगे और चाटेंगे? उनके पास आत्मसमर्पण करने और मालिकों की पार्टी (भाजपा) में विलीन हो जाना ही आखिरी विकल्प बचा है.
एक को प्यार, दूसरे को दुत्कार
लोकसभा चुनाव में बीजेपी को बहुमत न मिलने पर उदृव ने कहा, ‘आप सभी को एक बार मूर्ख बना सकते हो. किसी एक को हमेशा मूर्ख बना सकते हो, लेकिन सभी को हमेशा के लिए मूर्ख नहीं बना सकते. लोग अब धीरे-धीरे जादू से बाहर निकलने लगे हैं. भाजपा तोड़ो, फोड़ो और राज करो की अंग्रेजों की नीति अपना रही है.’ यह सब केंद्र सरकार के लिए था लेकिन राज्य की सरकार के प्रति उद्दव का सॉफ्ट कॉर्नर दिख रहा है. ऐसे में बड़े भाई को दुत्कार और छोड़ के लिए बेशुमार प्यार वाली उद्दव ठाकरे की सोच समझ से परे है. अब इस दोराहे में कौनसा मोड आने वाला है, यह तो भविष्य में ही छुपा हो सकता है.



























