Politalks.news/BiharPolitics. पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजों से पहले अंदाजा लगाया जा रहा था कि इन चुनावों के परिणाम से बिहार की राजनीति (Bihar politics) में बदलाव होगा. सियासी कयास लगाए जा रहे थे कि, अगर भाजपा नहीं जीतती है या उसका प्रदर्शन बहुत अच्छा नहीं रहता है तो पार्टी के इकलौते बड़े सहयोगी नीतीश कुमार के तेवर बदलेंगे. लेकिन परिणाम आए हैं इसके बिल्कुल उलट, भाजपा उत्तर प्रदेश सहित चार राज्यों का चुनाव जीत गई. मजे की बात यह है कि इसके बावजूद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Chief Minister Nitish Kumar) के तेवरों में कोई कमी नहीं आई है. नीतीश ने सोमवार को विधानसभा में जिस अंदाज में स्पीकर विजय सिन्हा (Speaker Vijay Sinha) को फटकार लगाई, उससे ऐसा लग रहा है कि भाजपा से उनकी दूरी बढ़ रही है. सियासी जानकारों का कहना है कि नीतीश के तेवरों से लग रहा है कि क्या बिहार में सत्ता समीकरण बदलने जा रहा है? (Is the power equation going to change in Bihar?) माना जा रहा है कि राष्ट्रपति चुनाव तक बिहार में कुछ न कुछ बदलाव जरूर होगा.
आपको बता दें कि बिहार विधानसभा के स्पीकर विजय सिन्हा भाजपा के नेता हैं और दूसरी बार के विधायक हैं. दरअसल, सोमवार को बजट सत्र के दौरान जब बीजेपी विधायक ने लखीसराय में बीते लगभग 2 महीनों में 9 लोगों की हत्या का मामला उठाया तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भड़क गए और तमतमाते हुए सदन में आये और हंगामे करने वाले विधायकों की जमकर क्लास लगा दी. नीतीश कुमार यहीं नहीं रुके इस दौरान उन्होंने विधानसभा अध्यक्ष विजय सिन्हा पर भड़कते हुए उन्हें भी संविधान का पाठ पढ़ा दिया.
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अब सियासी जानकार बता रहे हैं कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बहाना खोज कर सिन्हा को जमकर फटकार लगाई. सदन में स्पीकर के ऊपर किसी मुख्यमंत्री के चिल्लाने और डांट-फटकार का यह पहला और ऐतिहासिक उदाहरण है. इसके बाद जनता दल यू और भाजपा के नेताओं के बीच जुबानी जंग शुरू हो गई. सोशल मीडिया में दोनों पार्टियों के नेता और समर्थक आपस में भिड़ गए. जदयू के नेता भाजपा पर गलत राजनीति करने का आरोप लगा रहे हैं तो भाजपा का आरोप है कि मुख्यमंत्री ने संसदीय गरिमा का सम्मान नहीं किया.
आपको यहां ये भी बता दें कि यह इकलौता मसला नहीं है, जिससे ऐसा लग रहा हो कि समीकरण बदल सकता है. राज्य सरकार के एक और सहयोगी मुकेश साहनी भी इन दिनों अपने तेवर दिखा रहे हैं. वे उत्तर प्रदेश में भाजपा की मर्जी के खिलाफ जाकर विधानसभा का चुनाव लड़े चुके हैं और अब बिहार में विधान परिषद के चुनाव में भी सात सीटों पर उम्मीदवार उतारने का ऐलान कर दिया है. पहले कहा जा रहा था कि भाजपा की ओर से मुकेश साहनी की पार्टी वीआईपी के लिए एक सीट छोड़ी जाएगी और जदयू की ओर से दूसरे सहयोगी जीतन राम मांझी को एक सीट दी जाएगी. लेकिन दोनों सहयोगियों को बीजेपी की तरफ से कोई सीट नहीं मिली है.
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सियासी जानकारों का मानना है कि मुकेश साहनी का अलग चुनाव लड़ना एनडीए के लिए अच्छा नहीं है. बिहार में पिछले काफी समय से यह अटकल चल रही है कि साहनी और मांझी पाला बदल कर राजद के साथ जा सकते हैं. इन दोनों के पास सात विधायक हैं. अगर ये साथ छोड़ते हैं तो एनडीए सरकार अल्पमत में आ जाएगी. दूसरी ओर राजद, कांग्रेस के साथ अगर मांझी, साहनी और ओवैसी जुड़ते हैं तो बहुमत का आंकड़ा बनता है, हालांकि अभी इसमें बहुत से अगर मगर बाकी हैं. ऐसा संभव है कि एनडीए छोड़ने पर मांझी और साहनी की पार्टी टूट जाए और कुछ विधायक भाजपा व जदयू में चले जाएं. लेकिन अगर जदयू और नीतीश कुमार खुद एनडीए से दूरी बनाते हैं तो अलग बात है. खैर जो हो पांच राज्यों के चुनाव के बाद बिहार की राजनीति दिलचस्प होती जा रही है. सियासी जानकारों का दावा है कि राष्ट्रपति चुनाव तक बिहार में कुछ न कुछ बदलाव जरूर होगा.