Hanuman Beniwal Big Statement: राजस्थान में छात्रसंघ चुनाव स्थगित करने को लेकर छात्र नेताओं में रोष है. छात्र नेताओं की छात्र संघ चुनाव करवाने की मांग को इन दिनों राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के मुखिया व नागौर सांसद हनुमान बेनीवाल पुरजोर तरीके से उठा रहे है. आज फिर सांसद बेनीवाल ने छात्र संघ चुनाव की मांग उठाते हुए कांग्रेस व भाजपा पर करारा हमला किया. सांसद बेनीवाल ने कहा कि कांग्रेस-भाजपा दोनों ही छात्र संघ चुनावों में हार के डर चुनाव नहीं करवाना चाह रहे है, इन्हें डर है कि चुनाव में तीसरा मोर्चा या निर्दलीयों की जीत होगी तो विधानसभा चुनाव में इनका माहौल खराब है. प्रदेश में कांग्रेस भाजपा दोनों ही पार्टियां मिला जुली का खेल खेल रही है. इसके साथ ही सांसद बेनीवाल ने राज्यपाल के पद को फालतू बताते हुए केंद्र सरकार से इस पद को खत्म करने की भी अपील की.
सांसद हनुमान बेनीवाल ने आज प्रेस वार्ता कर कहा कि छात्र संघ चुनाव करवाने को लेकर सरकार पर दबाव बनाने की 14 सितंबर को जयपुर में 1 लाख से ज्यादा छात्र राजस्थान की सरकार को घेरेंगे. यह रैली विद्याधर नगर स्टेडियम में आयोजित होगी. जहां सरकार के खिलाफ युवा हुंकार भरेंगे. इससे पहले राजस्थान के सभी विश्वविद्यालय और संभाग मुख्यालय पर छात्र शक्ति छात्रसंघ चुनाव नहीं कराने का विरोध दर्ज कराएगी.
सांसद बेनीवाल ने कहा कि राज्य सरकार की ओर से छात्र संघ चुनाव पर रोक लगाने का विरोध अभी भी जारी है. मैं राजस्थान सरकार के छात्र संघ चुनाव नहीं कराने के फैसले की घोर निंदा करता हूं. छात्र संघ चुनाव बंद होने पर विश्वविद्यालय और कॉलेज के छात्रों ने संघर्ष की शुरुआत की और छात्र संघ चुनाव कराने का बीड़ा उठाया. इसे लेकर छात्रों ने आमरण अनशन किया, पुलिस की लाठियां खाई, मुकदमे दर्ज हुए, टंकी पर भी चढ़े, लेकिन आमरण अनशन उनके सामने किया जाता है जो सरकार संवेदनशील हो. यह संवेदनहीन सरकार है.
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सांसद बेनीवाल ने भाजपा को कटघरे में खड़ा करते हुए कहा कि विपक्ष ने सत्ता पक्ष से हाथ मिला लिया और अंदर्खाने ये बात कर ली कि विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और कहीं ऐसा ना हो कि पिछली बार की तरह जयपुर, जोधपुर सहित सभी बड़े विश्वविद्यालय हाथ से चल जाए. प्रदेश के आगामी चुनाव से पहले किरकिरी हो जाएगी. कांग्रेस-भाजपा को डर था कि कोई तीसरी ताकत राजस्थान में खड़ी हो जाएगी. छात्रसंघ चुनाव नहीं कराने को लेकर भाजपा की मूक सहमति है. यही वजह है कि भाजपा के किसी भी बड़े नेता का बयान और एबीवीपी ने एक भी आंदोलन नहीं किया.
सांसद बेनीवाल ने कहा कि एक जमाना था जब वो भी इसी राजस्थान विश्वविद्यालय में अध्यक्ष रहे और भाजपा-कांग्रेस में भी कई नेता इसी छात्र राजनीति से निकले हैं. छात्र संघ चुनाव राजनीति की पहली सीढ़ी होती है और जो लोग बिना छात्र संघ चुनाव लड़े राजनेता बनते हैं, उनमें एक कुंठा हमेशा रहती है कि ये तो कॉलेज या यूनिवर्सिटी प्रेसिडेंट था. मुख्यमंत्री गहलोत में भी यही कुंठा थी. इसलिए उन्होंने छात्रसंघ चुनाव ही बैन कर दिया. सांसद बेनीवाल ने कहा कि सभी संगठनों को साथ आने का आह्वान किया था, लेकिन विधानसभा चुनाव नजदीक है और इन्हीं में से कुछ पूर्व छात्र नेता कांग्रेस या बीजेपी से टिकट मांग रहे हैं. इसलिए वो नहीं आए लेकिन उनके बिना भी छात्र संघ चुनाव कराने के लिए एक आंदोलन किया जाएगा और ये बिना किसी झंडे के तले होगा. इसमें छात्र नेता आगे रहेंगे और वो खुद बैक सपोर्ट में पीछे रहेंगे. सरकार पर दबाव बनाया जाएगा कि चुनाव की घोषणा इसी साल में करें.
सांसद बेनीवाल ने कहा कि प्रदेश का राज्यपाल ही कुलाधिपति होता है जो यूनिवर्सिटी का मालिक होता है लेकिन कमजोर राज्यपाल होता है, जिन्हें पता ही नहीं की क्या हो रहा है. कई जगह राज्यपाल और मुख्यमंत्री आमने-सामने हो जाते हैं लेकिन यहां तो राज्यपाल की उम्र भी ज्यादा हो गई है, और ज्यादातर गवर्नर 80 उम्र के पार के बनाते हैं, जिन्हें राजनीति से हटाना होता है, उन्हें गवर्नर बनाकर बैठा दिया जाता है. सांसद बेनीवाल ने गवर्नर के पद को फालतू बताते हुए कहा कि इनका चाय, नाश्ता और खाने का खर्चा देखें जबकि गवर्नर सिर्फ डाकिए का काम करता है. इसलिए देश में गवर्नर का पद ही नहीं होना चाहिए. ये सिर्फ फालतू का खर्चा है, और इसके अलावा भी जितने भी फालतू के पद हैं, उनको भी खत्म किया जाए. सांसद बेनीवाल ने प्रधानमंत्री मोदी पर तंज कहा कि वैसे भी उन्हें शौक है कि देश में वो दो ही लोग रहे, तो फिर वो भी हो जाएगा.
सांसद बेनीवाल ने कहा कि मुख्यमंत्री ने चुनाव नहीं करने का फैसला लिया, इससे राजस्थान में परमानेंट चुनाव बंद हो जाएंगे, क्योंकि पहले वसुंधरा सरकार भी छात्र संघ चुनाव बंद कर चुकी है. इस बार सरकार ने सेमेस्टर सिस्टम लागू करने और लिंग दोह कमेटी की सिफारिशों का हवाला देकर छात्रसंघ चुनाव बंद किए हैं. जबकि नई एजुकेशन पॉलिसी 2020 में लागू हो चुकी है तो फिर 3 साल सरकार और विश्वविद्यालय प्रशासन ने क्या किया और यही सेमेस्टर सिस्टम दिल्ली यूनिवर्सिटी में भी लागू है फिर भी वहां छात्रसंघ चुनाव हो रहे हैं तो यहां क्यों नहीं. यही नहीं पहले छात्र संघ अध्यक्ष का एक रुतबा हुआ करता था, लेकिन लिंग दोह कमेटी की सिफारिशों को लाकर छात्र संघ को कमजोर किया गया और सरकार का इंटरफेयर भी बढ़ गया. उनकी सरकार बनी तो एक बिल लाकर लिंगदोह कमेटी की सिफारिशें खत्म की जाएंगी.