Politalks.News/Delhi. लोकसभा चुनाव 2024 से पहले विपक्ष को एकजुट करने की कवायद कई सिरो पर हो रही है. कैसे बीजेपी और पीएम मोदी को मात दी जाए इसके लिए मुलाकातों का दौर जारी है. ऐसा लग रह है कि विपक्ष के नेताओं का म्यूजिकल चेयर गेम चल रहा है. सारे नेता एक आभासी कुर्सी के ईर्द-गिर्द संगीत की धुन पर चक्कर लगा रहे हैं. कुछ दिन पहले तक विपक्ष को एकजुट करने का ठेका NPC सुप्रीमो और कद्दावर नेता शरद पवार के पास था. चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने मुंबई जाकर पवार से मुलाकात की और उसके बाद दिल्ली में दोनों की मुलाकातें हुईं तो माना गया कि शरद पवार को विपक्षी राजनीति की धुरी बनाया जा रहा है. फिर एक दिन पवार के यहां विपक्षी नेताओं और देश के जाने-माने नागरिकों की बैठक बुलाई गई पर उस दिन पवार पीछे हट गए और यशवंत सिन्हा को श्रेय लेने दिया.
इस तरह इस घटनाक्रम में एनसीपी पीछे हटी और यशवंत सिन्हा के बनाए राष्ट्र मंच को आगे किया गया. हालांकि यशवंत सिन्हा भी तृणमूल कांग्रेस से हालही में जुड़े हैं. किसी जमाने में इनकी बीजेपी में तूती बोला करती थी. लेकिन वो अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी की बीजेपी थी. अब मोदी और शाह की बीजेपी में इनके सितारे गर्दिश में आ गए तो आनन-फानन में बीजेपी छोड़ी और अभी हाल ही में बंगाल चुनाव से पहले टीएमसी से जुड़े. मजे की बात ये है कि शरद पवार और यशवंत सिन्हा दोनों ही नेता 80 साल या उसके आसपास की उम्र वाले हैं. साथ ही दोनों स्ट्रीट फाइटर भी नहीं हैं. इसलिए परदे के पीछे की जोड़-तोड़ के लिए तो ठीक हैं पर सामने से मुकाबले के लिए इनका चेहरा आगे नहीं किया जा सकता.
अब इन दोनों के बाद तीसरा चेहरा जो उभर कर पिछले दिनों सामने आया वो पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का है. ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में प्रचंड जीत दर्ज की है. ममता दीदी ने मोदी-शाह की जोड़ी के जीत के तिलिस्म को तोड़ा भी है. तीसरी बार बंगाल में जीतने के बाद ममता खुद को राष्ट्रीय राजनीति में स्वाभाविक रूप से फिट मान रही हैं. ममता बनर्जी में सादगी के साथ सड़क पर उतर कर मुकाबला करने की भी क्षमता है. ममता बनर्जी ने दिल्ली के पांच दिन के दौरे में करीब-करीब सभी विपक्ष के दिग्गजों से मुलाकात की और जिनसे मुलाकात नहीं हो पाई उनसे अगले दौरे में मुलाकात का कार्यक्रम बनेगा.
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लेकिन ऐसा नहीं है कि ममता बनर्जी आखिरी चेहरा है, राजनीति में हमेशा किसी सरप्राइज के लिए तैयार रहना चाहिए. अगले साल उत्तरप्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव बाद अखिलेश या मायावती का चेहरा उभर कर आ सकता है. देश के गृहमंत्री और बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष अमित शाह ने हालही में लखनऊ में कहा था कि, ‘उत्तर प्रदेश को ही 2014 में भाजपा की पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनाने का श्रेय जाता है’. ऐसे में अगर यूपी में अखिलेश या मायावती योगी को मात देने में कामयाब हो जाते हैं तो स्वभाविक तौर पर दोनों भी विपक्ष का चेहरा हो सकते हैं.
इधर नीतीश कुमार के मन में भी कुछ चल रहा है. दिल्ली में जेडीयू की कार्यकारिणी की बैठक में भाग लेने के बाद नीतीश ने तीसरे मोर्चे की कवायद में जुटे हरियाणा के ताऊ ओमप्रकाश चौटाला से मुलाकात की. चौटाला चाहते हैं कि नीतीश तीसरे मोर्चे के रथ की कमान संभाले. वहीं जेडीयू के ही दिग्गज नेता उपेन्द्र कुशवाहा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पीएम मैटेरियल बता चुके हैं. ऐसे में नीतीश की महत्वकांक्षाएं भी कम नहीं हैं.
इधर महाराष्ट्र विकास आघाडी सरकार के मुखिया उद्धव बालासाहेब ठाकरे भी एक विकल्प हैं इस म्युजिकल चेयर गेम के. उद्धव ठाकरे के जन्मदिन के मौके पर शिवसेना प्रवक्ता और राज्यसभा सांसद संजय राउत ने उद्धव ठाकरे की जमकर तारीफ की थी. संजय राउत ने कहा था कि, ‘उद्धव ठाकरे सबको साथ लेकर चलने वाले नेता हैं. उद्धव राष्ट्र का नेतृत्व कर सकते हैं. संजय राउत के बयान के बाद राजनीतिक प्रतिक्रिया भी सामने आईं थी. राउत के उद्धव ठाकरे के देश के नेतृत्व करने की क्षमता वाले बयान पर एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने कहा था कि, ‘मुझे खुशी है. कोई भी व्यक्ति महाराष्ट्र से, देश का नेतृत्व करेगा तो यह खुशी की बात हैं’.
और अब जब बात प्रधानमंत्री के दावेदारों की की जा रही है तो कांग्रेस के युवराज और वायनाड सांसद राहुल गांधी को लेकर भी चर्चा की जानी चाहिए. पैगासस जासूसी मामले में विपक्ष को एकजुट करने में राहुल गांधी कामयाब होते दिख रहे हैं. शरद पवार और पीके की मुलाकातों के दौरान शिवसेना कह चुकी है कि राहुल गांधी से हाथ मिलाया जाना चाहिए. राहुल गांधी साधारण से दिखने वाले व्यक्ति हैं. वहीं देश की जनता अब उन्हें सीरियस भी लेने लगी है. ऐसे में अब अगर ऐसी कोई स्थिति बनती है तो राहुल के नाम पर भी सहमति बन ही जाएगी.