Politalks.News/Delhi. संसद के शीतकालीन सत्र की शुरुआत भी मानसून सत्र की तर्ज पर हंगामेदार रही है. जहां एक और तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का बिल पास हो गया, तो वहीं दूसरी तरफ राज्यसभा की कार्यवाही के दौरान सदन ने विपक्षी दल के 12 सांसदों को इस सत्र की पूरी कार्यवाही के दौरान निलंबित कर दिया है. इन सांसदों पर यह कार्रवाई मानसून सत्र (11 अगस्त से) के दौरान अनुचित व्यवहार के चलते की गई. इस पर विपक्ष दलों ने आंखें लाल कर ली हैं. विपक्षी नेताओं ने इन सांसदों के निलंबन को अनुचित और अलोकतांत्रिक करार दिया और आरोप लगाया कि यह कार्रवाई उच्च सदन के सभी नियमों और प्रक्रियाओं का उल्लंघन है. इस मामले को लेकर मंगलवार को मल्लिकार्जुन खड़गे के कक्ष में विपक्षी नेताओं की बैठक होगी जिसमें आने की रणनीति तय की जाएगी. इधर खड़गे ने इस निलंबन को लोकतंत्र का गला घोंटना बताया है, तो प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा कि, ‘हमारा पक्ष तो सुना ही नहीं गया‘. ऐसे में अब सदन की कल की कार्यवाही पर विपक्ष जमकर हंगामा होने वाला है.
इन 12 सासंदों पर गिरी गाज
संसद सत्र के पहले दिन कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों के 12 राज्यसभा सदस्यों को पिछले मानसून सत्र के दौरान अशोभनीय आचरण करने के लिए, वर्तमान सत्र की शेष अवधि तक के लिए उच्च सदन से निलंबित कर दिया गया. उपसभापति हरिवंश की अनुमति से संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने इस सिलसिले में एक प्रस्ताव रखा, जिसे विपक्षी दलों के हंगामे के बीच सदन ने मंजूरी दे दी. जिन सदस्यों को निलंबित किया गया, उनमें मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के इलामारम करीम, कांग्रेस की फूलों देवी नेताम, छाया वर्मा, रिपुन बोरा, राजमणि पटेल, सैयद नासिर हुसैन, अखिलेश प्रताप सिंह, तृणमूल कांग्रेस की डोला सेन और शांता छेत्री, शिव सेना की प्रियंका चतुर्वेदी और अनिल देसाई तथा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के विनय विस्वम शामिल हैं.
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निलंबन अनुचित और अलोकतांत्रिक- विपक्ष
विपक्षी नेताओं ने निलंबन को अनुचित और अलोकतांत्रिक करार दिया है और आरोप लगाया कि कार्रवाई उच्च सदन के सभी नियमों और प्रक्रियाओं का उल्लंघन है. विपक्ष के नेताओं द्वारा हस्ताक्षरित संयुक्त बयान में कहा कि, ‘विपक्षी दलों के नेता एकजुट होकर 12 सदस्यों के अनुचित और अलोकतांत्रिक निलंबन की निंदा करते हैं, जो शीतकालीन सत्र की पूरी अवधि के लिए सदस्यों के निलंबन से संबंधित राज्यसभा की प्रक्रिया के सभी नियमों का उल्लंघन है’. संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर करने वालों में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और कांग्रेस, द्रमुक, सपा, राकांपा, शिवसेना, राजद, माकपा, भाकपा, आईयूएमएल, एलजेडी, जेडीएस, एमडीएमके, टीआरएस और आप के सदस्य हैं. इस बीच सरकार के सत्तावादी निर्णय का विरोध करने और संसदीय लोकतंत्र की रक्षा के लिए भविष्य की कार्रवाई पर विचार करने के लिए राज्यसभा के विपक्षी दलों के नेता मंगलवार को बैठक करेंगे. इस बैठक में आगे की रणनीति तय की जाएगी.
यह लोकतंत्र का गला घोंटने जैसा है- खड़गे
12 सांसदों के निलंबन पर राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि, ‘हम (विपक्षी दलों के नेता) भविष्य की कार्रवाई पर चर्चा करने के लिए कल बैठक कर रहे हैं. अगर दूसरों के लिए आवाज उठाने वालों की आवाज दबाई जाती है, तो यह लोकतंत्र का गला घोंटने जैसा है. हम इसकी निंदा करते हैं, सभी दल इसकी निंदा करते हैं’.
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‘सांसदों में डर पैदा करने के लिए ऐसा किया गया’
सांसदों के निलंबन को खड़गे ने लोकतंत्र विरोधी कदम बताया. खड़गे ने कहा कि, ‘इस निरंकुश सरकार ने सांसदों में डर पैदा करने के लिए ऐसा किया है. 12 सांसदों के खिलाफ कार्रवाई के लिए प्रस्ताव लाना पूरी तरह से अवैध, गलत और नियमों के खिलाफ है. मानसून सत्र में हुई इस घटना के लिए पिछले सत्र में ही कार्रवाई होनी चाहिए थी’
हमारा पक्ष तो सुना ही नहीं गया- चतुर्वेदी
शिवसेना सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा कि, ‘अगर आप सीसीटीवी फुटेज देखें तो यह रिकॉर्डेड है कि कैसे पुरुष मार्शलों ने महिला सांसदों के साथ धक्का-मुक्की की थी. एक तरफ ये सब और दूसरी तरफ आपका फैसला? यह कैसा असंसदीय व्यवहार है?’ चतु्र्वेदी ने आगे कहा कि, ‘डिस्ट्रिक्ट कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक, वहां भी आरोपी की बात को सुना जाता है. उनके लिए वकील भी उपलब्ध कराए जाते हैं. कभी-कभी सरकारी अधिकारियों को उनका पक्ष लेने के लिए भेजा जाता है, मगर यहां हमारा पक्ष नहीं लिया गया’.