Politalks.News/AssemblyElections. आज बात करेंगे अभिनेता से बने नेताओं की या पार्टियों के लिए नेता बने अभिनेताओं की. अभिनेता फिल्मी पर्दे पर अपनी एक्टिंग से दर्शकों को अपना प्रशंसक बनाता है, वहीं नेता जमीनी स्तर पर जनता के बीच लोकप्रिय होता है. लेकिन यह सच है कि नेता और अभिनेता दोनों ही अपने-अपने क्षेत्र में माहिर होते हैं. नेता जनता के बीच तो अभिनेता दर्शकों में अपना ‘जादू‘ चलाते हैं. आज हम बात करेंगे हाल ही में सम्पन्न हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव की. तमिलनाडु से लेकर बंगाल तक सियासत के मैदान में उतरे फिल्म अभिनेताओं के बारे में.
पांच राज्यों के चुनाव परिणाम जानने के बाद ऐसा लगता है कि जनता ने एक बार फिर फिल्म स्टार्स को राजनीति में ‘नकार‘ दिया है. लोगों ने इन चुनावों में अपने नेताओं पर ही ‘भरोसा‘ जताया. पहले हम बात करेंगे तमिलनाडु में राजनीति चमका रहे हिंदी और तमिल फिल्मों के सुपरस्टार कमल हासन की. तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता और एम करुणानिधि के निधन के बाद कमल हासन ने ‘सक्रिय राजनीति’ शुरू की थी. बता दें कि अभिनेता कमल ने तीन साल पहले अपनी पार्टी ‘मक्कल नीडि मैम‘ बनाई थी. उसके बाद में लगातार तमिल राजनीति में अपनी पार्टी का विस्तार करते चले गए.
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2020 के आखिरी महीनों में कमल हासन ने हिंदी-तमिल सिनेमा के सुपरस्टार और अपने मित्र रजनीकांत को अपने ‘पाले‘ में लाने के लिए पूरा जोर लगा दिया था. लेकिन खराब स्वास्थ्य के चलते रजनीकांत ने कमल हासन के साथ चुनाव प्रचार करने से मना कर दिया. (बता दें कि रजनीकांत ने भी विधानसभा चुनाव से पहले अपनी पार्टी बनाने का एलान कर दिया था लेकिन ऐनमौके पर उनकी बिगड़ी तबीयत ने उन्हें इसकी इजाजत नहीं दी). अब रजनीकांत भी सोच रहे होंगे, जो हुआ वह अच्छा ही हुआ. अब चर्चा को आगे बढ़ाते हैं.
इन विधानसभा चुनाव में अभिनेता कमल हासन तमिलनाडु के कोयंबटूर दक्षिण से मैदान में उतरे थे, जिसमें भाजपा की उम्मीदवार वनति श्रीनिवासन ने उन्हें हरा दिया. कोयंबटूर की जनता ने कमल को पूरी तरह ‘नकार’ दिया. कमल की हार यह साबित करती है कि फिल्मों को पसंद करने वाले लोगों ने भी उन्हें राजनेता के रूप में पसंद नहीं किया. मोदी सरकार के सबसे ‘मुखर विरोधी‘ रहे कमल को भाजपा की उम्मीदवार ने ही हरा दिया. जबकि तमिलनाडु में भाजपा का कोई खास जनाधार भी नहीं है.
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दूसरी ओर भाजपा में ही कुछ महीने पहले शामिल हुईं हिंदी और तमिल फिल्मों की अभिनेत्री खुशबू सुंदर भी चुनाव हार गईं. अपने जमाने की लोकप्रिय खुशबू ने 2010 में डीएमके के साथ अपना राजनीतिक सफर शुरू किया था. वर्ष 2014 से लेकर 2020 तक कांग्रेस पार्टी के साथ रहीं. अक्टूबर 2020 में कांग्रेस छोड़ भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गईं. खुशबू चेन्नई के ‘हजार लाइट्स‘ निर्वाचन क्षेत्र से उम्मीदवार थीं. लेकिन जनता ने अभिनेत्री खुशबू को भी नकार दिया. भाजपा में शामिल होने के समय खुशबू अपनी राजनीति की लंबी पारी खेलना चाहती थी लेकिन उन्हें जनता ने मौका नहीं दिया.
सही मायने में इस बार तमिलनाडु में फिल्म स्टार्स का जादू चल ही नहीं पाया. जबकि पूरे देश में तमिलनाडु ही ऐसा राज्य है जहां अभिनेता और अभिनेत्रियों की ‘दीवानगी‘ सबसे अधिक देखी जाती है. एमजी रामचंद्रन, एम करुणानिधि, जयललिता ने फिल्मी पर्दे से राजनीति की पारी शुरू की थी. शुरुआत से ही तमिलनाडु की राजनीति इन्हीं तीनों के इर्द-गिर्द ही घूमती रही.
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बंगाल में अभिनेता मिथुन भाजपा को जिता नहीं सके उल्टा दीदी से दुश्मनी बढ़ा बैठे
सबसे बुरा हाल रहा हिंदी सिनेमा के सुपरस्टार मिथुन चक्रवर्ती का, बहुत ही सोच समझ कर मिथुन ने भारतीय जनता पार्टी ज्वाइन की थी. बंगाल की सक्रिय राजनीति में पहली बार मिथुन ने चुनाव मैदान में आकर इतनी अधिक जनसभाएं और रोड शो किए. भाजपा हाईकमान ने अभिनेता चक्रवर्ती को ‘स्टार प्रचारक‘ के तौर पर चुनाव मैदान में उतारा था. बंगाल की जनता ने अभिनेता मिथुन की चमक भी फीकी कर दी. ‘मिथुन चक्रवर्ती बंगाल में भाजपा की नैया पार नहीं लगा सके उल्टा दीदी से दुश्मनी कर बैठे‘. सही मायने में मिथुन भाजपा की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर सके.
हालांकि मिथुन भाजपा के टिकट पर चुनाव नहीं लड़े थे, वे सिर्फ प्रचार करने के लिए लाए गए थे.तृणमूल से राज्यसभा सांसद भी रह चुके मिथुन चक्रवर्ती ने भाजपा में आने के बाद जिस तरह अपनी रैली में भीड़ जुटाई थी और उन्हें ‘बंगाल का बेटा’ के रूप में पेश किया गया था, उसके बाद सियासी अटकलें जोरों पर थीं कि शायद भाजपा को बहुमत मिल जाए तो मिथुन भी मुख्यमंत्री की कुर्सी के उम्मीदवार हो सकते हैंं? लेकिन मिथुन का जादू नहीं चला. बंगाल चुनाव में जनता ने ममता पर ही भरोसा जताया.
भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ने वाले सेलिब्रिटीज में से सिर्फ फैशन डिजाइन अग्निमित्रा पॉल को छोड़कर बाबुल सुप्रियो, लॉकेट चटर्जी और यश दासगुप्त जैसे दिग्गज एक्टर और सिंगर चुनाव हार गए. बाबुल तो यहां के लोकसभा सांसद और केंद्र सरकार में मंत्री भी हैं, लेकिन ममता की ‘आंधी’ में वह विधानसभा भी जीत नहीं पाए. बाबुल के सामने तृणमूल के अरुप विश्वास चुनाव जीते हैं. दूसरी ओर तृणमूल कांग्रेस की ओर से बांग्ला फिल्म अभिनेत्री सयानी घोष और सयंतिका बनर्जी भी चुनाव हार गई हैं.
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ऐसे ही असम और केरल में भी फिल्मी सितारों का राजनीति के मैदान में जनता के बीच स्टारडम फीका रहा. इस बार भी राजनीतिक मुद्दों और नेताओं के सामने फिल्मी सितारों की चमक कमजोर रही. यहां हम आपको बता दें कि बहुत कम ही ऐसे अभिनेता रहे हैं जो राजनीति में अपना बड़ा मुकाम बना पाए हैं. अमिताभ बच्चन, राजेश खन्ना, धर्मेंद्र, शत्रुघ्न सिन्हा, विनोद खन्ना, हेमा मालिनी और साल 2019 के लोकसभा चुनाव में राजनीति के मैदान में उतरे धर्मेंद्र के पुत्र और अभिनेता सनी देओल ने लोकसभा का चुनाव जीतकर संसद पहुंचे. लेकिन इन अभिनेताओं को क्षेत्र की जनता कभी भी नेता के रूप में स्वीकार नहीं कर पाई. इसका बड़ा कारण है कि यह अभिनेता चुनाव जीतने के बाद क्षेत्र की जनता के बीच लंबे समय तक गायब रहते हैं. सही मायने में अभिनेताओं को राजनीति के मैदान में उतरने से पहले नेताओं से ‘नेतागिरी‘ के हुनर सीखने होंगे.