Politalks.News/Uttarpradesh. उत्तरप्रदेश के लखीमपुर हिंसा कांड में मारे गए 9 लोगों को लेकर भले ही राजनीतिक पार्टियों ने जमकर अपनी रोटियां सेंकी हों,लेकिन इसमें भी कोई दो राय नहीं है कि लखीमपुर को लेकर कांग्रेस की अति सक्रियता ने यूपी में विपक्षी एकता की संभावना को ओर खत्म कर दिया है. राजनीतिक पंडितों का कहना है कि, ‘योगी आदित्यनाथ अब भाजपा को मजे से वापस चुनाव जीतवा देंगे! अब आप सोचेंगे यह हम क्या कह रहे हैं लेकिन यह बिलकुल सियासत के उस सिद्धांत की तरह कि ‘राजनीति में जो दिखता है वो होता नहीं और जो होता है वह दिखता नहीं.’ आइए आपको विस्तार से बताते हैं कि सियासत के विशेषज्ञों को ऐसा क्यों लग रहा है.
तो ऐसा इसलिए कहा जा रहा है कि लखीमपुर की घटना पर प्रियंका गांधी की सक्रियता ने दूसरी विपक्षी पार्टियों जैसे समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी में जबरदस्त खुन्नस पैदा कर दी है. मतलब खुन्नस इस बात कि कांग्रेस यूपी में है कुछ नहीं और प्रियंका इतना बवाल बना दे रही है. लखीमपुर के पूरे एपिसोड को देखा जाए तो इसमें कोई संदेह नहीं की घटना के बाद प्रियंका का तुरंत लखनऊ पहुंचना, लखीमपुर की और जाते हुए रोके जाने पर पुलिस से बेध़डक बात करना, जिस कमरे में प्रियंका को रखा गया वहा सफाई के लिए झाडू लगाने के वीडियो और गंभीर भाव भंगिमा में बात करते हुए मीडिया को बाइट देने जैसे घटनाक्रम से प्रियंका गांधी ने अखिल भारतीय पैमाने पर छाप छोड़ी है. दिग्गजों का मानना है कि यूपी का तो पता नहीं इसका कांग्रेस को पंजाब में जरूर फायदा मिलेगा. लखिमपुर में किसानों, सिख किसानों के साथ जो हुआ उससे दुनिया भर में सिख आबादी को मैसेज गया है तो वहीं पंजाब, यूपी और हरियाणा के किसानों ने भी क्या ठानी होगी, इसका अनुमान आप लगा सकते है.
आपको बता दें, उत्तरप्रदेश के सियासी गलियारों में चर्चा यह है कि उत्तरप्रदेश में कांग्रेस है कहां? जो प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव में वह प्रियंका गांधी के बूते वोट पका सके? लेकिन यह भी सच है कि, अगर अब समाजवादी पार्टी और प्रियंका गांधी एक साथ आ जाएं तो अब यूपी में एक और एक ग्यारह हो सकते है. लेकिन इसके लिए दोनों यदि मिलकर चुनाव लड़े और लोकदल, आप और छोटे दलों से भी प्रत्यक्ष-प्ररोक्ष चुनावी तालमेल बना ले तो भाजपा का हारना नामुमकिन नहीं है. मतलब अखिलेश यादव विधानसभा की 403 चुनावी सीटों में से सवा सौ या डेढ सौ सीटे बांट कर (खुद पौने तीन सौ सीटों पर लड़े जो कम नहीं है) एलांयस में चुनाव लड़े तो योगी सरकार को हराना गारंटीशुदा है. लेकिन अब एक तो कांग्रेस जबरदस्ती ज्यादा सीटें मांगेगी, दूसरे अखिलेश यादव के कांग्रेस से पिछले चुनाव के अनुभव, बिहार में तेजस्वी एलांयस में कांग्रेस की अधिक सीटों से खराब परफोरमेंस और प्रियंका गांधी के आगे की असहजता से एलांयस बन सकना असंभव सा है. कांग्रेस महज बुलबुला है यह सोचते हुए अखिलेश यादव अब कांग्रेस, और आप एलायंस की जरूरत को गंभीरता से नहीं लेंगे.
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अगर सपा, कांग्रेस और अन्य दलों का ये गठबंधन नहीं होता है तो यूपी में नतीजा वहीं आएगा जो इस सप्ताह गुजरात के गांधीनगर शहर में आया है. आपको बता दें, गांधीनगर के लोकल चुनाव में कांग्रेस और आप ने एक-दूसरे के वोट काट कर भाजपा को छप्पर फाड़ बहुमत से जिताया है. ऐसे में यह तय माना जा रहा है कि यूपी में सपा-लोकदल का एलायंस अलग लड़ेगा, बसपा अलग लड़ेगी, औवेसी और छोटी पार्टियों का एलायंस अलग लड़ेगा तो कांग्रेस अलग लड़ेगी. वहीं आप पार्टी अलग लड़ेगी और विपक्ष के इन पांच सूमहों के अलग-अलग चुनाव ल़ड, आपस में वोट काटने से योगी आदित्यनाथ मजे से ढाई सौ से पौने तीन सौ सीटें जीत कर वापस मुख्यमंत्री बनेंगे.
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आपको बता दें कि लखीमपुर की घटना के बाद उत्तरप्रदेश में चुनाव अब ‘महंत साहब’ यानी योगी आदित्यनाथ का हो गया है. किसानों के साथ अकेले जिस फुर्ती से योगी ने समझौता पटाया और संगठन या दिल्ली की कोई कमान नहीं बनने दी तो उत्तरप्रदेश के आगामी चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी हो या अमित शाह या संगठन का कोई भी नेता, सबकी भूमिका गेस्ट कलाकार वाली होगी. योगी ही अपने विधायकों के टिकट तय कराएंगे, विरोधियों के टिकट कटवाएंगे. इसलिए कि योगी के पास दलील है कि केंद्र सरकार की नीतियों- रीति-नीति से किसान व लोग नाराज हैं. महंगाई, बेरोजगारी, किसान आंदोलन सबमें योगी का क्या मतलब? वे प्रदेश के हिंदुओं को बचाए हुए है और हिंदु धर्मगुरू हैं तो चुनाव जीतना उनके बूते होगा या केंद्र सरकार के बूते. तय माने ज्यों-ज्यों चुनाव निकट आएंगे, योगी आदित्यनाथ का हिंदू शोर भी बढ़ेगा और हिंदु-मुस्लिम भी होगा जबकि विपक्ष आपस में लड़ता हुआ.