karnataka election result: कर्नाटक विधानसभा चुनाव में शुरूआत से ही बीजेपी लीडिंग पोजिशन पर थी. पीएम नरेंद्र मोदी ने जब प्रचार के अंतिम चरणों में कर्नाटक की धरती पर कदम रखा तो एक बारगी तो ऐसा लगा कि बीजेपी ने बाजी मार ली. कांग्रेस के घोषणा पत्र में बजरंग दल को बैन करने वाले ऐलान के बाद तो कांग्रेस एक बार बैकफुट पर थी लेकिन ऐन वक्त पर कांग्रेस ने मास्टर कार्ड खेलते हुए पार्टी की बड़ी नेता सोनिया गांधी को मैदान में उतारा और एक ही पल में पूरा गेम ही पलटकर रख दिया. वहीं राहुल गांधी और प्रियंका गांधी द्वारा स्थानीय मुद्दों पर वार, वहीं कर्नाटक अध्यक्ष डीके शिवकुमार एवं पूर्व सीएम सिद्धारमैया द्वारा पिछले 4 सालों में की गई मेहनत ने जो कमाल किया है, उसका परिणाम सभी के सामने है.
कांग्रेस ने कर्नाटक की 224 विधानसभा सीटों में से 136 पर कब्जा जमा लिया और अकेले सरकार बनाने का ऐलान कर दिया है. वहीं बीजेपी केवल 65 के आंकड़े को छू पायी है. एग्जिट पोल में किंगमेकर बनती दिख रही जेडीएस के हाथ केवल 19 सीटें लगी जो पिछली बार के मुकाबले आधी हैं. 4 सीटों पर अन्य का कब्जा रहा. इस चुनाव में डीके शिवकुमार, सिद्धारमैया और सीएम बोम्मई अपनी अपनी सीटों पर जीते लेकिन सरकार में 13 मंत्रियों को हार का सामना करना पड़ा है. इससे सरकार के प्रति जनता की नाराजगी की झलक स्पष्ट नजर आ रही है.
यह भी पढ़ेंः पदयात्रा करना कोई गुनाह नहीं, यह वक्त पानी पिलाने नहीं, एकजुट होकर चुनाव लड़ने का है- खाचरियावास
कर्नाटक चुनाव में जो एक बात गौर करने वाली रही, वो रही बीजेपी द्वारा ऐसे मुद्दे उठाए गए जो कर्नाटक की राजनीति में किसी भी तरीके से वाजिब नहीं थे. अली-बली एवं बजरंग बली के जरिए हिंदूओं की आस्था को कुरेदना, सोनिया गांधी के भाषण में संप्रभुता शब्द इस्तेमाल किए जाने को लेकर अदालत का गेट खटखटाना, भाषणों पर मानहानि के मामले दर्ज कराना और ‘द केरला स्टोरी’ फिल्म का भरी जनसभा में जिक्र करना, ये ऐसे तमाम मुद्दे रहे, जिनको बीजेपी ने चुनावों में भुनाने की कोशिश की लेकिन उनके हाथ क्या लगा. कांग्रेस के स्थानीय मुद्दे बीजेपी के इन तमाम मुद्दों पर भारी पड़ गए. कर्नाटक में कांग्रेस की जीत से विपक्षी दल की एकता को भी बल मिला है. कर्नाटक में कांग्रेस की जीत पर सभी विपक्षी दलों ने बधाई दी है. इस हाल के साथ बीजेपी का दक्षिण भारत पर सत्ता का इकलौता प्रदेश भी हाथ से फिसल गया है.
कांग्रेस का बहुमत से भी 20-25 सीटें हासिल करने से पिछली बार कांग्रेस और जेडीएस के साथ घटित हुई घटना की संभावना भी पूरी तरह से समाप्त हो गई है. पिछली बार कांग्रेस ने 80 और जेडीएस ने 37 यानी कुल 117 विधायकों के साथ सरकार बनाई थी. ये संख्या बहुमत से केवल 4 सीट अधिक थी. कांग्रेस ने केवल बीजेपी को सत्ता से दूर रखने के लिए अपने से आधी सीट आने के बावजूद एचडी कुमारास्वामी को मुख्यमंत्री बनाना भी स्वीकार कर लिया. इसका परिणाम ये निकला कि सरकार केवल 14 महीने चल सकी क्योंकि जेडीएस के 13 और कांग्रेस के 3 विधायकों ने इस्तीफे देकर बीजेपी की गुलामी स्वीकार कर ली और सरकार अल्पमत के चलते गिर गई.
कर्नाटक में बीजेपी का गुजरात फाॅर्मूला भी बुरी तरह से पिट गया. बीजेपी ने चुनाव के अंतिम साल में येदुरप्पा को सीएम की कुर्सी से हटाकर बोम्मई को बिठा दिया. इससे उनका वोट बैंक कई टुकड़ों में बंट गया. हालांकि उनकी सीट येदुरप्पा के बेटे को दे दी गई लेकिन इससे परिणाम नहीं बदल सका और बीजेपी के खाते में ऐसी हार आई जो उन्होंने सपने में भी नहीं सोची होगी.
खैर, कांग्रेस के लिए अंत भला तो सब भला वाली कहावत सही साबित हुई है. अब विधायक दल की बैठक में सीएम का चुनाव किया जाना शेष है. यहां डीके शिवकुमार और पूर्व सीएम एवं कर्नाटक कांग्रेस के वरिष्ठ सदस्य सिद्धारमैया दौड़ में हैं. सिद्धारमैया का ये अंतिम चुनाव है, जैसा कि उन्होंने ऐलान किया है. ऐसे में उनका दावा मजबूत है लेकिन डीके की मेहनत को नजरअंदाज किया जाना भी नामुमकिन है. ऐसे में ढाई-ढाई साल के सीएम पर बात बन सकती है. हालांकि पाॅलिटाॅक्स का तो यही मानना है कि कर्नाटक कांग्रेस के अध्यक्ष डीके शिवकुमार के सिर पर ही मुख्यमंत्री का ताज सजने वाला है. वहीं सिद्धारमैया को प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पर सुशोभित किया जा सकता है.