Politalks.News/TamilNaduElection. वर्ष 2019 में हुए लोकसभा चुनाव के बाद भारतीय जनता पार्टी ने पश्चिम बंगाल और असम को लेकर अपनी रणनीति बनानी शुरू कर दी थी. भाजपा केंद्रीय नेतृत्व इन दोनों राज्यों में अपना परंपरागत हिंदू कार्ड को आधार बनाकर दो वर्षों से सियासी जमीन तैयार करने में जुटा रहा. केंद्र सरकार के द्वारा लागू किए गए एनआरसी और सीएए का भाजपा को सबसे अधिक फायदा बंगाल और असम में ही दिखने लगा. इन दोनों राज्यों में भले ही एक वर्ग विरोध कर रहा था लेकिन हिंदुत्व वादी एजेंडे में भाजपा सफल भी रही. विधानसभा चुनाव में भाजपा का सबसे अधिक फोकस बंगाल-असम पर ही लगा रहा. इन राज्यों में भारतीय जनता पार्टी ने हिंदुओं को एकजुट करने के लिए ‘जय श्री राम’ का नारा भी खूब जोर-शोर से उछाला.
लेकिन अब बीजेपी को दक्षिण भारत के राज्यों तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी में समय रहते अपनी बंगाल-असम जैसी रणनीति न बना पाने का मलाल जरूर होगा. इन तीनों राज्यों में भी विधानसभा चुनाव हो रहे हैं. अब बात करें तमिलनाडु की तो इस राज्य में भाजपा को अपनी साख बचाने के लिए इन दिनों ‘तगड़ी मशक्कत‘ करनी पड़ रही है. इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि तमिलनाडु में भाजपा अभी तक अपने हिंदुत्व के एजेंडे को धार नहीं दे पाई है. अभी तक की गई चुनावी जनसभाओं में भाजपा के छोटे से लेकर दिग्गज नेताओं ने तमिलनाडु में जय श्री राम नारे का सहारा नहीं लिया.
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वहीं दूसरा कारण यह भी है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के लिए तमिलनाडु की जनता को रिझाने के लिए सबसे बड़ी बाधा भाषा की आ रही है, प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह पिछले दिनों चुनावी सभाओं में तमिल लोगों के सामने इसे सार्वजनिक रूप से स्वीकार भी कर चुके हैं. तमिलनाडु में हिंदी का विरोध इतना तगड़ा है कि भाजपा के शीर्ष नेता इसे भली-भांति जानते भी हैं. इसलिए पीएम मोदी को यह भी कहना पड़ा है कि ‘तमिल भाषा न सीख पाने का उन्हें आज भी बहुत अफसोस है‘. ऐसे ही अमित शाह ने भी कुछ चुनावी जनसभाओं में तमिलनाडु की जनता के सामने तमिल भाषा न बोल पाने पर ‘क्षमा‘ भी मांगी है. यही कारण है कि मोदी और अमित शाह को चुनावी रैलियों के दौरान एक ट्रांसलेटर (दुभाषिया) का सहारा लेना पड़ रहा है.
यहां हम आपको बता दें कि तमिलनाडु में बीजेपी 234 सीटों में से केवल 20 सीटों पर ही चुनाव लड़ रही है. भाजपा एआईडीएमके के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ रही है, लेकिन बीजेपी अपने साथ-साथ सहयोगी दलों के सीटों पर भी उनकी जीत के लिए प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह को कड़ी मेहनत करनी पड़ रही है. बीजेपी एआईडीएमके की सत्ता को बचाए रखने के लिए हरसंभव कोशिश में जुटी है और पीएम नरेंद्र मोदी एक के बाद एक रैली कर माहौल बनाने में जुटे हैं. वहीं पूर्व मुख्यमंत्री एम करुणानिधि के पुत्र एमके स्टालिन के अगुवाई में डीएमके-कांग्रेस मिलकर सत्ता में वापसी के लिए पूरा जोर लगाए हुए हैं.
पीएम मोदी को आईबीतमिल पारंपरिक वेशभूषा और मंदिरों की याद
यहां हम आपको बता दें कि तमिलनाडु में 234 सीटों पर एक चरण में 6 अप्रैल को वोट डाले जाएंगे. इसके लिए अब भाजपा पूरी तरह एक्टिव मूड में आ गई है. बंगाल चुनाव रैली के बाद पीएम मोदी ने तमिलनाडु में डेरा डाल रखा है. पिछले 24 घंटों में पीएम मोदी ने तमिलनाडु में ताबड़तोड़ जनसभाएं कर डाली. बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुरुवार देर शाम तमिलनाडु में विश्व प्रसिद्ध मदुरै के सुन्दरेश्वरर मंदिर पहुंचे. यहां पर प्रधानमंत्री मोदी ने पूजा-अर्चना की. इस दौरान मोदी वहां की पारंपरिक वेशभूषा (तमिल धोती पहनकर माथे पर तिलक की छाप लगाकर) तमिल की जनता को लुभाने की कोशिश की. यहां पीएम मोदी ने दर्शन कर सियासी तौर पर बड़ा संदेश देने की कवायद की है. बता दें कि तमिलनाडु की संस्कृति का सबसे बड़ा प्रतीक मदुरै का मीनाक्षी मंदिर ही है, जिसकी दीवारों पर युगों से लेकर सदियों तक का इतिहास उकेरा गया है. इस मंदिर को लेकर तमिलनाडु की जनता में बहुत ही गहरी आस्था जुड़ी हुई है.
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शुक्रवार को प्रधानमंत्री ने काफी आक्रामक अंदाज में तमिलनाडु में दो चुनावी जनसभाएं की. पहलेेे पीएम मोदी ने मंदिरों के शहर मदुरै में जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि मदुरै दुनिया की सबसे पुरानी भाषा है. तमिल के साथ निकटता से जुड़ी हुई है. यहां, एक तमिल संगम के बारे में सोचता है. प्रधानमंत्री ने कहा कि, ‘मैं तमिल संस्कृति और साहित्य को अधिक लोकप्रिय बनाने के लिए काम करने वाले सभी लोगों की सराहना करना चाहता हूंं.’ उसके बाद पीएम मोदी ने कन्याकुमारी में भी एक चुनावी रैली की. गौरतलब हैैै कि भाजपा ने पिछले दिनों जारी किए गए अपने घोषणापत्र में तमिलनाडु के प्रचीन मंदिरों को संत-महात्माओं को सौंपने का वादा किया है.
बीजेपी ने अपने मेनिफेस्टो में कहा है कि अगर राज्य की सत्ता में वो आती है, तो सभी प्राचीन मंदिरों को संत-महात्माओं को सौंप दी जाएगी, राज्य सरकार उनका प्रबंधन नहीं करेगी बल्कि संत समाज करेगा. तमिलनाडु में मंदिर की जिम्मेदारी की मांग लंबे समय से संत समाज करता रहा है, जिसे बीजेपी ने अपने घोषणा पत्र में शामिल कर उन्हें साधने की कवायद की है. प्रचीन मंदिरों को संत-महात्माओं को सौंपने का वादा और पीएम मोदी के मीनाक्षी मंदिर में दर्शन और पूजन के सियासी मायने निकाले जा रहे हैं. अब देखना होगा भाजपा का तमिलनाडु में यह मंदिर दांव चुनावों में कितना सफल हो पाता है.