पाॅलिटाॅक्स न्यूज/मध्यप्रदेश. राज्यसभा चुनाव में जोर अजमाईश के बाद अब प्रदेश में होने वाले उपचुनाव के लिए सभी पार्टियों ने कमर कस ली है. एमपी में विधानसभा की 24 सीटों पर होने वाले उपचुनाव किसी भी तरह से 230 सीटों पर हुए विधानसभा चुनाव से कम नहीं होंगे. असल में इन उपचुनावों के बाद ही सरकार का स्थायी भविष्य तय होगा. एमपी में ज्योतिरादित्य सिंधिया की कांग्रेस से बगावत के चलते बीजेपी ने शिवराज सिंह की सरकार तो बना ली, लेकिन शिवराजसिंह को सरकार बनाए और बचाए रखने के लिए उपचुनावों में जीत का सिलसिला कायम रखना पड़ेगा.
भाजपा कार्यकर्ताओं में 24 सीटों मेें से अधिकांश सीटों पर उनके स्थानीय नेताओं का रोष और सर्वे में ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ भाजपा में आए 22 विधायकों की नेगेटिव रिपोर्ट बीजेपी के लिए परेशानी का सबब बनी हुई है. खास बात यह है कि इन 24 सीटों में से 23 सीटों पर कांग्रेस का कब्जा रहा है. इन्हीं में से 22 विधायक कांग्रेस का साथ छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए हैं. इन्हीं 22 विधायकों के इस्तीफे देने के कारण उपचुनाव होने जा रहे हैं.
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क्या है मध्यप्रदेश विधानसभा का गणित
मध्यप्रदेश में विधानसभा की 230 सीटें हैं, इनमें से 24 सीटों पर उपचुनाव होना है. कांग्रेस के 22 बागी विधायकों के इस्तीफे देने और दो विधायकों का निधन होने से 2 सीटों पर उपचुनाव होना है. विधानसभा में बहुमत का आंकड़ा 116 है. भाजपा के पास फिलहाल 109 विधायक हैं, वहीं कांग्रेस के पास 92 विधायक हैं. अगर कांग्रेस समर्थित निर्दलीय, सपा और बसपा को मिला दें तो यह आंकड़ा 99 हो जाता है और अगर निर्दलीय, सपा और बसपा उपचुनाव के बाद भी कांग्रेस के साथ बने रहते हैं तो कांग्रेस को 24 में से 17 सीटें जीतनी होंगी. अगर कांग्रेस इसमें सफल हो जाती है तो मध्य प्रदेश में सत्ता परिवर्तन होगा और मध्यप्रदेश एक बार फिर कमलनाथ की सरकार बनेगी.
क्या है कांग्रेस की रणनीति
2019 में हुए चुनाव में कांग्रेस की कमान कमलनाथ और ज्योतिरादित्य दोनों ने मिलकर संभाल रखी थी. अब ज्योतिरादित्य के बीजेपी में जाने के बाद चुनाव की कमान कमलनाथ के हाथ में है. हालांकि दिग्विजय सिंह इसमें निर्णायक रण्नीतिकार माने जा रहे हैं. टीम कांग्रेस ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को जनता के साथ विश्वासघात करने वाले शख्स के रूप में प्रचारित कर रही है. ज्योतिरादित्य के साथ बीजेपी में आए कांग्रेस के 22 विधायकों के विधानसभा क्षेत्र में भी कांग्रेस ने यही अभियान चला रखा है.
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कांग्रेस के नेता जनता के बीच जाकर यह बात स्थापित करने में लगे हैं कि इन विधायकों ने बीजेपी से मिले करोड़ों रूपए के लालच में जनता के साथ विश्वासघात किया है. जनता के वोटों का अपमान किया है. धन कमाने के लिए नैतिकता को ताक में रखकर जनता के साथ छल किया है. लगभग सभी 22 विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस इसी रणनीति पर काम कर रही है. इसके साथ ही भाजपा को भी जनता के विधायकों की खरीद फरोख्त करने वाली पार्टी के रूप में प्रचारित किया जा रहा है.
भाजपा की बढ़ी दुविधा
आरएसएस सर्वे के बाद मध्यप्रदेश में भाजपा के दिग्गज दुविधा में पड़ गए हैं कि आखिर क्या करें और क्या नहीं. आरएसएस की ओर से कराए गए सर्वे में सामने आया है कि जो 22 विधायक कांग्रेस से बगावत करके भाजपा में आए हैं, अगर उन्हें टिकट दिया जाता है तो उनमें से अधिकांश की हार तय है. ऐसे में बीजेपी नेताओं को समझ नहीं आ रहा है कि इससे बचने के लिए क्या कदम उठाएं जाएं.
एक तरफ बीजेपी इन 22 विधायकों को टिकट देने के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया से वचनबद्ध है. वहीं इन सीटों पर भाजपा के कर्मठ कार्यकर्ता भी अपनी दावेदारी ठोक रहे हैं और पार्टी से टिकट की मांग कर रहे हैं. ऐसे में पार्टी के अंदर एक तरह से बगावत की स्थिति बन रही है. बीजेपी के अधिकांश स्थानीय नेता कांग्रेस से आए इन विधायकों का बीजेपी के बैनर पर प्रचार नहीं करना चाहते हैं.
आरएसएस ने संभाली कमान
ऐसे में हालातों को समान्य करने और इसका रास्ता निकालने के लिए आरएसएस के नेताओं ने प्रदेश में कमान अपने हाथ में ले ली है. आरएसएस के नेताओं को इन विधानसभा क्षेत्रों में विस्तारक के तौर पर लगाया गया है. यह नेता बीजेपी में चल रहे असंतोष का आंकलन करने के साथ उसे संभालने की योजना पर काम कर रहे हैं. जिससे चुनाव में भाजपा को अपने ही कार्यकर्ताओं की बगावत का सामना नहीं करना पड़ जाए और केंद्रीय नेतृत्व की सारी योजना पर ही पानी ना फिर जाए.



























