Politalks.News/BiharPolitics. वामपंथी विचारधारा छोड़ कांग्रेस का हाथ थामने वाले कन्हैया कुमार फिलहाल जोरदार चर्चाओं में हैं. लेकिन इस बात का खुलासा बाद में होगा कि कन्हैया को कांग्रेस में शामिल कराने का दांव प्रशांत किशोर ने कैसे और किस मकसद से किया था. अगले साल कई राज्यों में होने वाले चुनावों में कन्हैया का क्या इस्तेमाल होता है यह भी देखने वाली बात होगी. लेकिन कम से कम अभी बिहार में एक नया समीकरण बनता दिख रहा है. भाजपा और जनता दल यू गठबंधन के मुकाबले विपक्ष के युवा नेताओं का एक नया गठबंधन बन सकता है, जिससे एक समावेशी सामाजिक समीकरण भी बन रहा है. इसमें राजद के नेता तेजस्वी यादव, कांग्रेस के कन्हैया कुमार और लोक जनशक्ति पार्टी के चिराग पासवान शामिल हो सकते हैं.
चिराग का महागठबंधन में जाना लगभग तय!
चिराग पासवान ने हालांकि अभी भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए को छोड़ा नहीं है लेकिन बिहार में तेजस्वी यादव से मुलाकात कर उन्होंने अपने इरादे का संकेत दिया है. अगर केंद्र सरकार दिल्ली में उनके दिवंगत पिता रामविलास पासवान को मिला 12, जनपथ का बंगला खाली कराती है और बिहार में नीतीश कुमार इस बात पर अड़े रहते हैं कि एनडीए में चिराग के लिए कोई जगह नहीं है तो उनकी मजबूरी हो जाएगी कि वे एनडीए से बाहर अपने लिए संभावना तलाशे. हालांकि बिहार में राजद के साथ उनकी पार्टी का गठबंधन मनमाफिक नतीजे नहीं दे पाता है. फिर भी अकेले रहने से बेहतर होगा कि वे राजद, कांग्रेस के गठबंधन में शामिल हों.
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पिछड़ा-सवर्ण और दलित का बन रहा समीकरण!
बिहार की राजधानी पटना में चल रही चर्चाओं के मुताबिक चिराग एनडीए छोड़ कर यूपीए का हिस्सा बन सकते हैं. ऐसा होता है तो तेजस्वी यादव, कन्हैया कुमार और चिराग पासवान की एक त्रिमूर्ति बनेगी. इससे तीन बड़े समूहों का प्रतिनिधित्व होता है. तेजस्वी अन्य पिछड़ी जातियों का प्रतिनिधित्व करते हैं तो कन्हैया सवर्ण जातियों का और चिराग पासवान दलित समूहों का प्रतिनिधित्व करते हैं. वोट के लिहाज से बिहार का सबसे बड़ा समूह मुस्लिम का है, जिसकी आबादी 16 फीसदी के करीब है. वह वोट लगभग पूरी तरह से राजद, कांग्रेस गठबंधन के साथ जुड़ा है.
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भाजपा-जदयू के पास नहीं त्रिमूर्ति की काट!
तेजस्वी, कन्हैया और चिराग इन तीनों की खास बात यह है कि ये तीनों युवा हैं और बिहार की राजनीति का भविष्य माने जा रहे हैं. तीनों अपने अपने लक्षित मतदाता समूह को संबोधित करने में सक्षम हैं. तीनों अच्छे वक्ता हैं और जनता के बीच उनकी उपस्थिति खास जातीय समूह से बाहर दूसरे समूहों के युवाओं को आकर्षित करती है. उनके मुकाबले भाजपा के पास कोई ऐसा युवा चेहरा नहीं है, जिसकी पूरे राज्य या देश में भी पहचान हो और जो अच्छा वक्ता हो और सामाजिक समीकरण बनाने में सक्षम हो. जदयू में सिर्फ नीतीश का चेहरा है तो भाजपा में एक सम्राट चौधरी को छोड़ दें तो दूसरा कोई युवा नेता नहीं है, जो तेजस्वी, कन्हैया और चिराग की त्रिमूर्ति का मुकाबला कर सके. भाजपा ने ऐसे थके हुए चेहरों को राज्य सरकार में जगह दी है, जिनसे भाजपा का अपना कार्यकर्ता भी कनेक्ट नहीं कर पा रहा है ऐसे में तीन युवा नेताओं का साथ आना जदयू और भाजपा के लिए भारी पड़ सकता है.