Politalks.News/Maharashtra. कभी राम मंदिर निर्माण के भूमि पूजन तक का विरोध करने वाले और कभी मराठा कार्ड खेलकर अपनी राजनीति चमकाने वाले मनसे प्रमुख राज ठाकरे को अब प्रभु श्री राम की अयोध्या नगरी याद आई है. बता दें कि अगले महीने मार्च के पहले सप्ताह में राज ठाकरे ‘रामलला की शरण‘ में आ रहे हैं. महाराष्ट्र की सियासत में बुरी तरह पिछड़ चुके मनसे प्रमुख अब अयोध्या में अपनी राजनीति की नई दिशा तय करने के लिए तैयार हैं. बड़ा सवाल यह है कि ‘आखिर रामजी की अयोध्या कितने राजनीतिक दलों और नेताओं की किस्मत चमकाएगी’ ? भारतीय जनता पार्टी का उदय अयोध्या में राम मंदिर निर्माण बनाने को लेकर ही हुआ था. पार्टी के नेताओं ने भाजपा को स्थापित करने में ‘जय श्रीराम के नारे’ का भी खूब सहारा लिया.
यहां हम आपको याद दिला दें, बीती 5 अगस्त को जब उत्तर प्रदेश के अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन किया जा रहा था. इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, संघ प्रमुख मोहन भागवत और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मौजूद थे. राम मंदिर निर्माण के लिए हुए भूमि पूजन पर भारतीय जनता पार्टी, आरएसएस विश्व हिंदू परिषद समेत तमाम हिंदू संगठनों और देश की करोड़ों जनता ने हर्षोल्लास व्यक्त किया था और इसे वर्षों बाद आई ‘शुभ घड़ी’ भी बताया था. लेकिन अयोध्या से 1,512 किलोमीटर दूर मुंबई में बैठे महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना यानी मनसे प्रमुख राज ठाकरे ने एतराज जताते हुए कहा था कि, भाजपा और पीएम मोदी को कोराना संकटकाल में मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन करने की क्या जरूरत थी?
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अब हम बात करेंगे महाराष्ट्र की शिवसेना पार्टी की. भाजपा के बाद शिवसेना भी हिंदुत्व विचारधारा वाली पार्टी है. शिवसेना के नेता बढ़-चढ़कर बयान देते रहे हैं कि अयोध्या में मस्जिद विध्वंस में भाजपा के बराबर ही हमारे शिवसैनिकों की अहम भूमिका रही है. पिछले कुछ वर्षों से शिवसेना प्रमुख और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे भी अयोध्या रामलला की शरण में आ चुके हैं. उद्धव ठाकरेे मौजूदा समय में महाराष्ट्र की सत्ता के सिंहासन पर विराजमान हैं.
मुख्यमंत्री बनने के बाद अयोध्या पहुंचकर उद्धव ठाकरे ने रामलला से आशीर्वाद लिया था. भाजपा शिवसेना के नेता दबी जुबान से मानते रहे हैं कि उनकी राजनीति चमकाने में अयोध्या का बड़ा हाथ रहा है.
बीजेपी औए शिवसेना की सफलता से ले सबक राज ठाकरे ने भी अपनाई ‘हिंदुत्व विचारधारा’
शिवसेना संस्थापक बाल ठाकरे की उंगली पकड़कर सियासत सीखने वाले राज ठाकरे महाराष्ट्र में अपने राजनीतिक वजूद को बचाए रखने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं. भाजपा और शिवसेना की तर्ज पर अब महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) भी अपने कदम आगे बढ़ाना चाहती है यानी राज ठाकरे अब ‘हिंदुत्व विचारधारा’ को आगे बढ़ाने में लगे हुए हैं. राज ठाकरे पहली बार अयोध्य अपनी राजनीति के लिए नई दिशा तलाशने जा रहे हैं.
मनसे प्रमुख ठाकरे भले ही रामलला के दर्शन करने अयोध्या आ रहे हों, लेकिन पार्टी उनके इस दौरे की जिस तरह से सार्वजनिक घोषणा कर रही है. इससे जाहिर होता कि ये उनका महज धार्मिक दौरा नहीं होगा बल्कि पार्टी एक सियासी संदेश देने की कोशिश भी कर रही है, ऐसा संदेश जो पार्टी की हिंदुत्व की छवि को मजबूत करे, क्योंकि राज ठाकरे ‘मराठी मानुष’ की छवि के दम पर सियासत की बुलंदी को छूने में अभी तक सफलता नहींं मिली.
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बता दें कि 9 मार्च 2006 को राज ठाकरे ने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना बनाई थी, अगलेेे महीने एमएनएस को 15 साल पूरे होने जा रहे हैं. जब राज ठाकरे ने अपनी पार्टी बनाई थी तब वे शिवसेना से अलग दिखना चाहतेेे थे. उन्होंने हिंदुत्ववादी विचारधारा को प्राथमिकता न देते हुए महाराष्ट्र के क्षेत्रीय मुद्दों पर ज्यादा फोकस रखा. उस समय राज ठाकरे कहते फिरते थे कि ‘मुझे मराठी मानुष से ही मतलब हैै’. हालांकि शुरुआती दिनों में राज ठाकरे राजनीति में सफल भी हुए थे. अपने पहले ही विधानसभा चुनाव यानी साल 2009 में राज ठाकरे ने 13 सीटें जीतकर दिखा दिया था कि आने वाले समय में महाराष्ट्र में पार्टी सत्ता पर काबिज हो सकती है? लेकिन कुछ फैसले गलत क्या हुए कि उनकी पार्टी की नींव हिलने लगी. इसके बाद साल 2014 के विधानसभा चुनाव में एमएनएस ने 220 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे, लेकिन उसे सिर्फ एक सीट मिली. इसके बाद 2019 के विधानसभा चुनाव में फिर 1 सीट मिली. ऐसे ही तीनों लोक सभा चुनाव में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना अपना खाता भी नहीं खोल सकी है.
मौजूदा समय में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) महाराष्ट्र में एक विधायक और एक पार्षद वाली पार्टी बन गई है. बता दें कि कुछ समय से शिवसेना को हिंदुत्व के मुद्दे पर नरम पड़ते देख राज ठाकरे ने मौका लपक लिया है और अयोध्या जाने का एलान किया है. एमएनएस के सितारे फिलहाल गर्दिश में हैं और पार्टी के तमाम नेताओं और खुद राज ठाकरे को लगने लगा है कि अब ‘मराठा कार्ड के साथ अगर हिंदुत्व‘ का साथ भी मिल जाए तो पार्टी दोबारा अपनी पुरानी चमक में लौट सकती है.
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पार्टी के झंडे को बदलकर मराठा कार्ड के साथ खेला ‘भगवा कार्ड’
आपको बता दें, पिछले साल जनवरी में राज ठाकरे ने अपनी पार्टी का चौरंगी झंडा बदलकर ‘भगवा रंग‘ दिया और शिवाजी की मुहर को अपनाया था. राज ठाकरे ने मंच पर सावरकर की फोटो सजाकर हिंदुत्व की दिशा में कदम बढ़ाने के मंसूबे जाहिर करते हुए कहा था कि ये वो झंडा था, जो पार्टी की स्थापना करते वक्त उनके मन में था और हिंदुत्व उनके डीएनए में है. पार्टी के झंडे के बदलाव को लेकर अटकलें लगाई जा रही थी कि राज ठाकरे अब हिंदुत्व विचारधारा को आगे बढ़ाने के लिए तैयार होने लगे हैं.
गौरतलब है कि शिवसेना हिंदुत्व की राजनीति पर चलने वाली बीजेपी के साथ मिलकर महाराष्ट्र की सियासत में लंबे समय तक कदमताल करती रही. 25 सालों तक दोनों पार्टियों का साथ वर्ष 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद टूट गया. राज ठाकरे अब इस कोशिश में हैं कि शिवसेना के कांग्रेसी खेमे में जाने के बाद खाली हुई हिंदुत्व की भरपाई को वो भर सकें. वहीं शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने अपनी वैचारिक विरोधी मानी जाने वाली कांग्रेस और एनसीपी के साथ हाथ मिलाकर सत्ता की कमान अपने हाथों में ले ली है. जिसके बाद से बीजेपी लगातार शिवसेना पर हिंदुत्व के मुद्दे से किनारा कर लेने का आरोप लगाती आ रही है.
ऐसे में मौके की नजाकत को भांपते हुए हिंदुत्व के नारे के साथ राज ठाकरे भारतीय जनता पार्टी से कुछ समझौता करने में लगे हुए हैं, कुछ दिन पहले ही अभी उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से भी गुप्त मुलाकात भी की थी. ऐसे में माना जा रहा है कि अयोध्या जाकर राज ठाकरे अपनी हिंदुत्ववादी छवि को मजबूत करने के साथ-साथ महाराष्ट्र में शिवसेना के पारंपरिक ‘हिंदू वोटबैंक‘ में सेंध लगाने में कामयाब हो सकते हैं, जो कांग्रेस-एनसीपी के चलते फिलहाल नाराज माने जा रहे हैं. गौरतलब है कि अगले साल मुंबई महानगरपालिका के साथ 9 अहम महानगर पालिकाओं के चुनाव महाराष्ट्र में होंगे. राज ठाकरे अपनी कट्टर मराठी छवि के चलते सियासत में पिछड़ते जा रहे हैं, अब देखना होगा रामलला की शरण और हिंदुत्व की विचारधारा पर मनसे प्रमुख अपनी पार्टी को कितनी धार दे पाते हैं.