Politalks.News/National Congress. 10 मई, सोमवार को कांग्रेस और सोनिया गांधी के लिए अहम दिन है. पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी का निराशाजनक प्रदर्शन के बाद एक बार फिर पार्टी में ‘गहमागहमी‘ के बीच अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कांग्रेस वर्किंग कमेटी (सीडब्ल्यूसी) की बैठक बुलाई है. सोनिया के लिए सोमवार को होने वाली सीडब्ल्यूसी की बैठक इसलिए महत्वपूर्ण है कि उन्होंने अभी तक पार्टी के असंतुष्ट नेताओं का ‘विद्रोह‘ बहुत हद तक रोक रखा है. बात को आगे बढ़ाने से पहले यहां हम आपको बता दें कि इससे पहले सोनिया गांधी द्वारा इसी साल 22 जनवरी को बुलाई कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में गुलाब नबी आजाद, कपिल सिब्बल, आनंद शर्मा, मुकुल वासनिक और पी चिदंबरम आदि नेताओं ने तुरंत संगठन के चुनाव कराने की मांग की थी.
इनमें से कुछ उन 23 नेताओं में शामिल थे, जिन्होंने सोनिया को चिट्ठी लिखकर अपनी ‘नाराजगी‘ जाहिर की थी. वहीं गांधी परिवार के करीबी नेताओं ने इस मांग का विरोध किया था. जिनमें राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, एके एंटनी, अमरिंदर सिंह, मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ, ओमान चांडी शामिल रहे. इन्होंने कहा था कि कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के बाद होना चाहिए. इसके बाद कांग्रेस के इन नाराज नेताओं ने बात मान ली और चुनाव मई तक टाल दिए गए. आखिर में कांग्रेस के सभी नेताओं में तय हुआ कि जून 2021 तक पार्टी में ‘नया अध्यक्ष‘ चुन लिया जाएगा.
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आखिरकार अब पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव भी समाप्त हो चुके हैं. यानी अब कांग्रेस के नाराज वरिष्ठ नेताओं को गांधी परिवार से पार्टी के संगठन में बदलाव को लेकर सीधे जवाब का इंतजार है. वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से कल 11 बजे होने वाली सीडब्ल्यूसी की बैठक में सोनिया गांधी के सामने अपने नेताओं से नए अध्यक्ष का चुनाव, आगे की रणनीति समेत कई सवालों के जवाब तलाशने की बड़ी चुनौती होगी. बता दें कि पिछले दिनों कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पांच राज्यों के चुनाव में कांग्रेस के खराब परफॉरमेंस को लेकर निराशा जताते हुए कहा था कि पार्टी इन नतीजों को स्वीकार करती है और कार्यसमिति की बैठक में चुनाव में हुई गलतियों को सुधारने के लिए हार की वजह पर समीक्षा की जाएगी.
आपको बता दें, हाल ही में 2 मई को आए पांच राज्यों के चुनाव परिणामों में सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस पार्टी को हुआ है. असम और केरल में सत्ता में वापसी का प्रयास कर रही कांग्रेस को हार झेलनी पड़ी. वहीं पश्चिम बंगाल में उसका खाता भी नहीं खुल सका. उधर पुडुचेरी में उसे करारी हार का सामना करना पड़ा जहां कुछ महीने पहले तक वह सत्ता में थी. ऐसे ही तमिलनाडु में डीएमके-कांग्रेस गठबंधन को जीत तो मिली, लेकिन जीत का श्रेय राहुल गांधी को नहीं बल्कि स्टालिन को गया.
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अपनों की नाराजगी से ज्यादा विपक्ष में बने रहने की चुनौती आई गांधी परिवार के सामने
गांधी परिवार मौजूदा समय में कई ‘मुश्किलों‘ में घिरा हुआ है. पहला यह कि कांग्रेस का लगातार घटता जनाधार, दूसरा पार्टी के अंदर ही एक धड़ा पिछले वर्ष से संगठन में बदलाव और नए अध्यक्ष की ताजपोशी को लेकर नाराज बैठा है. और सबसे ज्यादा अब गांधी परिवार के लिए ‘सियासी वजूद’ बचाने की भी चुनौती सामने आ खड़ी हुई है. वह वजूद क्या है आइए हम आपको बताते हैं. मुख्यमंत्री और टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी ने अपने अकेले दम पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह को परास्त कर बंगाल की सत्ता पर कब्जा जमाया है, तभी से भाजपा के विरोधी दलों के नेताओं में दीदी एक ‘कद्दावर नेता‘ के रूप में उभर कर सामने आई हैं.
5 मई को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद ममता बनर्जी मोदी सरकार पर कोरोना महामारी को लेकर वैक्सीन समेत कई मुद्दों पर लगातार हमले कर रही हैं. दीदी का कोलकाता से सीधे ही दिल्ली में मोदी सरकार को ललकारना विपक्ष, आरजेडी, समाजवादी पार्टी, शिवसेना, एनसीपी, नेशनल कॉन्फ्रेंस समेत कांग्रेस के असंतुष्ट नेताओं को भी खूब रास आ रहा है. सही मायने में दीदी ने अपने आप को एक मजबूत विपक्ष के नेता के तौर पर भी तैयार कर लिया है. अभी तक राहुल और सोनिया गांधी ही मोदी सरकार के खिलाफ विपक्ष के नेता के तौर पर खड़े हैं. गांधी परिवार को अब आगे ममता बनर्जी से विपक्ष की नेता के दावेदार को लेकर चुनौती हो सकती है?
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गौरतलब है कि कांग्रेस में दो साल से सक्रिय अध्यक्ष नहीं है. पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था. इसके बाद सोनिया गांधी को अंतरिम अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. बिहार विधानसभा चुनाव और कुछ राज्यों के उप चुनावों में कांग्रेस के निराशाजनक प्रदर्शन के बाद गुलाम नबी आजाद और कपिल सिब्बल जैसे कुछ वरिष्ठ नेताओं ने पार्टी के सक्रिय अध्यक्ष की नियुक्ति की मांग फिर उठाई. वैसे कांग्रेस नेताओं का एक बड़ा धड़ा लंबे समय से इस बात की पैरवी कर रहा है कि राहुल गांधी को फिर से कांग्रेस की कमान संभालनी चाहिए. कई राज्योंं में कांग्रेस का सियासी जनाधार लगातार घट रहा है, तो दूसरी ओर क्षेत्रीय पार्टियां व उनके नेता राष्ट्रीय स्तर पर भी विपक्षी राजनीति में उसकी जगह के लिए बड़ा खतरा बनते नजर आ रहे हैं, ऐसे में देखना होगा कि कांग्रेस कल अपनी बैठक में किस नतीजे पर पहुंचती है और सोनिया गांधी पार्टी के नेताओं को कितना एकजुट कर पाने में सफल हो पाती हैं.