maharashtra politics
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Maharashtra politics: महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव के संघर्ष में महज गिनती के दिन शेष रह गए हैं. चुनावी दौरों के केवल दो दिन बचे हैं और सभी प्रचार में जमकर पसीना बहा रहे हैं. कमाल की बात ये है कि न तो महायुति और न ही महाविकास अघाड़ी ने मुख्यमंत्री चेहरे का, यहां तक कि संभावित चेहरे का भी कोई जिक्र अभी तक नहीं किया है. महायुति में सीएम पद के लिए देवेंद्र फडणवीस, एकनाथ शिंदे और अजित पवार में कश्मकश चल रही है. इसका फैसला जीते हुए विधायकों की संख्या के आधार पर किया जाएगा. महाविकास अघाड़ी गठबंधन में स्थिति और भी पेचिदा है. यहां उद्धव ठाकरे को छोड़कर कोई भी सीएम पद पर खड़ा दिखाई नहीं दे रहा है. इस बीच एनसीपी एसपी सुप्रीमो शरद पवार ने ‘महाराष्ट्र में पहली महिला मुख्यमंत्री’ की बहस छेड़ चुनावी माहौल को एक नया मोड़ दे दिया है. यह न केवल उनका मास्टर स्ट्रोक है, बल्कि महाराष्ट्र की महिला वोटर्स को साधने का एक तरीका भी है.

महाराष्ट्र के चुनावी इतिहास की बात करें तो यहां पहला विधानसभा चुनाव साल 1962 में हुआ था. यहां हर बार पहले कांग्रेस और 1999 से 2013 तक एनसीपी और कांग्रेस ने संयुक्त सरकार बनाकर प्रदेश पर राज किया. इस बीच केवल एक बार जनता पार्टी ने दो साल के लिए राज्य में सरकार बनायी. 2014 में पहली बार महाराष्ट्र में बीजेपी का कमल खिला था. बीजेपी ने शिवसेना की मदद से राज्य में सत्ता काबिज की लेकिन 2019 में दोनों के मनमुटाव के चलते महाविकास अघाड़ी का उदय हुआ. 15 महीने सरकार चलाने के बाद फिर से बीजेपी ने एकनाथ शिंदे के सहयोग से सरकार पर कब्जा कर लिया. इन 62 साल के राजनीतिक इतिहास में कभी कोई महिला महाराष्ट्र की मुख्यमंत्री नहीं बन सकी है.

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अब शरद पवार ने पहली बार महाराष्ट्र की महिला मुख्यमंत्री को लेकर अपनी इच्छा बताई है. इसे चुनाव में महिला कार्ड के तौर पर भी देखा जा सकता है, ताकि महिला वोटर्स को संदेश दिया जा सके. शिरूर तालुका के वडगांव रसाई में प्रचार के दौरान शरद पवार ने कहा, ‘महाराष्ट्र में हर बार यह चर्चा होती है कि पहली महिला मुख्यमंत्री कब मिलेगी? महाराष्ट्र ने हमारे शासन के दौरान महिलाओं को 30% आरक्षण देने का ऐतिहासिक निर्णय लिया. इसके बाद ही पूरे देश में महिला आरक्षण लागू किया गया. आज ग्राम पंचायत से लेकर लोकसभा तक महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है. अब मैं महाराष्ट्र में एक महिला मुख्यमंत्री बनते हुए देखना चाहता हूं.’

हालांकि उनके इस बयान के बाद सवाल उठने लगे कि क्या वो अपनी बेटी सुप्रिया सुले के लिए बैटिंग कर रहे हैं? सच में अगर ऐसा कोई निर्णय लिया भी जाता है तो निश्चित तौर पर शरद पवार सुप्र‍िया सुले का नाम आगे बढ़ाएंगे. जब से अजित पवार छोड़कर गए, तब से एनसीपी में शरद पवार के बाद सुप्र‍िया सुले ही पार्टी की जिम्‍मेदारी संभाल रही हैं. हर मोर्चे पर उन्‍हें शरद पवार के साथ देखा जाता है. शरद पवार के एनसीपी के अध्यक्ष पद छोड़ने के ऐलान के बाद सुप्रिया सुले को भी नया कार्यकारी अध्यक्ष नियु​क्त किए जाने का ऐलान हुआ था. एनसीपी में टूट और अजित पवार की दगाबाजी की असल वजह भी यही थी. खुद शरद पवार ने कुछ दिनों पहले अजित पवार पर निशाने साधते हुए कहा था, ‘उन लोगों की वजह से सुप्र‍िया सुले को जिम्मेदारी नहीं दी और वही लोग छोड़कर चले गए.’

चूंकि शरद पवार महाविकास अघाड़ी के शिल्पीकार हैं. कहीं न कहीं शरद पवार चाहेंगे कि सुप्र‍िया को बड़ी जिम्मेदारी दिलाई जाए. अगर वे कोई बात कहते हैं तो उन्हें दलों के नेता यूं ही नहीं नकार पाएंगे. ऐसे में महाविकास अघाड़ी की सरकार बनाने लायक सीटें आने पर शरद पवार का रुख क्या रहता है, यह देखने वाला होगा.

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