Maharashtra Politics: महाराष्ट्र की राजनीति पिछले कुछ सालों से उतार चढ़ाव से भरी है. यहां परस्पर विरोधी साथी तो हैं लेकिन विचारधारा का मेल अभी तक नहीं हो पाया है. ऐसी ही कुछ दास्तां एनसीपी अध्यक्ष अजित पवार के साथ है जो भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा को अब तक समझ नहीं पाएं हैं. ‘बंटोगे तो कटोगे’ नारे के बाद अजित पवार का जो एक्शन है, वो अब बीजेपी वालों के गले नहीं उतर रहा है. हालांकि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव की चौसर पर मुहरे बिछने के बाद फिलहाल ‘खेला’ होना मुश्किल है लेकिन संभावना के गलियारों में यह चर्चा आम है कि चुनाव के बाद अजित पवार महायुति से अलग होकर ‘एकला चालो’ पर विचार कर सकते हैं. वहीं अन्य पार्टियों से बीजेपी में आए नेताओं के लिए भी इस नारे को स्वीकार करना असंभव सा लग रहा है.
‘उन्हें समझने में थोड़ा वक्त लगेगा’
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा दिए गए ‘बंटोगे तो कटोगे’ नारे के बाद अजित पवार ने इसका विरोध किया था. इस पर प्रतिक्रिया देते हुए महाराष्ट्र के वर्तमान डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि अजित पवार दशकों तक ऐसी विचारधाराओं के साथ रहे, जो धर्मनिरपेक्ष और हिंदू विरोधी है. ऐसे में उन्हें जनता का मूड समझने में थोड़ वक्त लगेगा. उन्होंने ये भी कहा कि फडणवीस ने गुरुवार को कहा कि यह नारा महाविकास अघाड़ी (MVA) के चुनावी कैंपेन का जवाब है. हमारे सहयोगी इस नारे का असल मतलब नहीं समझ पाएं हैं.
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ऐसा कहते हुए राज्य के पूर्व सीएम और बीजेपी नेता फडणवीस ने अजित पावर के बयानों पर चुप्पी तो साध ली लेकिन वे अपने अंदर के डर को खत्म नहीं कर पाए हैं. अजित पवार पर भरोसा करना थोड़ा मुश्किल है क्योंकि पार्टी तोड़ने या साथ छोड़ने का काम बीते 5 सालों में उनके लिए कोई नया नहीं है. अगर चुनाव के बाद ऐसी कोई परिस्थितियां बनती है कि अजित पवार को किंगमेकर बनने का अवसर मिले तो उनका सीएम पद की डिमांड करना या विरोधी खेमे से हाथ मिलाना अचरज की बात नहीं होगी.
‘हमारा नारा सबका साथ सबका विकास’
इससे पहले महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम और भाजपा-शिवसेना गठबंधन महायुति में शामिल अजित पवार ने कहा था कि ‘बटेंगे तो कटेंगे का नारा उत्तर प्रदेश और झारखंड में चलता होगा, महाराष्ट्र में नहीं चलेगा. मैं इसका समर्थन नहीं करता. महाराष्ट्र के लोगों को ये पसंद नहीं है. हमारा नारा है- सबका साथ सबका विकास.’
अजित पवार ने कहा कि महाराष्ट्र की राजनीतिक संस्कृति छत्रपति शिवाजी महाराज, राजर्षि शाहू महाराज और महात्मा फुले जैसी शख्सियतों से बनी है, जो एकता और सामाजिक सदभाव के लिए खड़े थे. ऐसे में महाराष्ट्र की तुलना दूसरे राज्यों से नहीं कर सकते. सार्वजनिक तौर पर अजित पवार का यह बयान निश्चित तौर पर बीजेपी सहित महायुति के लिए परेशानी खड़ी कर रहा है. जनता का मूड बदलने के भय से ही शिवसेना सुप्रीमो एकनाथ शिंदे ने अभी तक चुप्पी साधे रखी है.
पंकजा मुंडे और चव्हाण भी जता चुके नाराजगी
महाराष्ट्र से बीजेपी एमएलसी पंकजा मुंडे ने भी इस तरह के नारों पर नाराजगी जाहिर की थी. उन्होंने कहा था कि नेता का काम है कि इस धरती पर रहने वाले हर व्यक्ति को अपना समझे. हमें महाराष्ट्र में इस तरह के विषय नहीं लाने चाहिए. योगी आदित्यनाथ ने ये उत्तर प्रदेश के संदर्भ में कहा था, जहां अलग तरह की राजनीतिक परिस्थितियां हैं. उनकी बात का वही अर्थ नहीं, जो समझा जा रहा है. महाराष्ट्र को इस तरह के नारों की जरूरत नहीं है.
उन्होंने यह कहते हुए भी हलचल मचा दी कि हम इसका केवल इसलिए समर्थन नहीं कर सकते क्योंकि हम भी उसी पार्टी से हैं. कांग्रेस से बीजेपी में आए अशोक चव्हाण भी इस बारे में अपनी असहमति दर्ज करा चुके हैं.
नेगेटिव इंपैक्ट बीजेपी के वोट बैंक पर
राजनीतिक विशेषज्ञों की माने तो ‘बंटोगे तो कटोगे’ जैसे नारे का एक नेगेटिव इंपैक्ट भारतीय जनता पार्टी के वोट बैंक पर मराठवाड़ा में पढ़ने वाला है. पिछली बार मराठवाड़ा से 19 सीटें बीजेपी को मिली थी, लेकिन इस बार यह संख्या 10 से भी कम रह सकती है.
इसी वजह है – नांदेड़ और बीड. इन दोनों विधानसभा क्षेत्रों में 38 से 40 फीसदी मुसलमान है. यह मुस्लिम समुदाय कन्वर्टेड है. यानी मराठा या ब्राह्मण कम्युनिटी से मुस्लिम बना है. नांदेड़ और बीड कभी निजाम का इलाका हुआ करता था. निजाम ने यहां के हिंदुओं को मुस्लिम धर्म अपनाने को मजबूर किया था. यही वजह है कि यहां का हिंदू समुदाय मुस्लिमों को अपने से अलग नहीं मानता है. ऐसी स्थिति में दोनों नेता न चाहते हुए भी पार्टी लाइन के खिलाफ जाकर बयानबाजी कर रहे हैं ताकि उनके वोट बैंक पर असर ना पड़े.
नांदेड़ से अशोक चव्हाण की बेटी चुनावी मैदान में है, जबकि बीड की परली विधानसभा सीट से पंकजा मुंडे के चचेरे भाई धनंजय मुंडे चुनाव लड़ रहे हैं. यहां की कुछ सीटों पर अजित पवार की एनसीपी पार्टी के उम्मीदवार भी चुनाव मैदान में हैं. ऐसे में बीजेपी के इस तरह के नारे उन लोगों के लिए आत्मघाती साबित हो सकते हैं जिन्होंने हाल ही में बीजेपी की विचारधारा को अपनाया है. यही वजह है कि पार्टी में ही पार्टी नेताओं के सुर इसके विरोध में उठ रहे हैं. अब चुनावी परिणाम के बाद अजित पवार के रिएक्शन पर सभी की नजरें टिकी हुई हैं.