Shankaracharya Swami Avimukteshwarananda Saraswati on Mohan Bhagwat and Politics. हाल ही में की गई आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत की धर्म से जुड़ी एक विवादास्पद टिप्पणी के बाद राजनीति के साथ धार्मिक सियासत में भी उबाल आ गया है. मोहन भागवत की टिप्पणी पर अब शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने नाराजगी जाहिर करते हुए सवाल उठाया है. रायपुर पधारे शंकराचार्य ने संघ प्रमुख से सवाल करते हुए कहा कि जब गीताजी में भगवान ने स्वयं कहा है कि वर्ण उन्होंने बनाए हैं तो भागवतजी ने कौन से अनुसंधान के आधार पर यह बात कही है, उन्हें बताना चाहिए. हाल में भागवत ने कहा था कि समाज में वर्णों का निर्माण भगवान ने नहीं, बल्कि पंडितों ने किया है. इस पर शंकराचार्य ने कहा कि उनका (मोहन भागवत) बहुत लंबा सामाजिक जीवन है, कुछ कहते होंगे तो जिम्मेदारी से कहते होंगे, अब उन्होंने कौन सा ऐसा अनुसंधान कर लिया जिससे पता चल गया कि वर्ण पंडितों ने बनाया है. इसके साथ ही शंकराचार्य ने हिंदू राष्ट्र की मांग को भी गलत बताया. उन्होंने इसे जुमलेबाजी बताते हुए कहा कि इसका खाका सामने रखे बिना इस पर बात करना बेमानी है.
बता दें कि संघ प्रमुख मोहन भागवत ने रविवार को संत रोहिदास जयंती पर मुंबई में हुए कार्यक्रम में कहा था कि जाति भगवान ने नहीं बनाई है, जाति पंडितों ने बनाई जो गलत है. भगवान के लिए हम सभी एक हैं. हमारे समाज को बांटकर पहले देश में आक्रमण हुए, फिर बाहर से आए लोगों ने इसका फायदा उठाया.
भागवत के इस बयान पर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने अपना मत व्यक्त करते हुए कहा, भागवत जी बड़े आदमी हैं. हम समझते हैं कि जो कुछ कहेंगे जिम्मेदारी से कहेंगे. ऐसे व्यक्ति नहीं हैं कि वे कोई बात बोलें और हम डांट दें. अब उन्होंने कौन सा ऐसा अनुसंधान कर लिया जिससे पता चल गया कि वर्ण पंडितों ने बनाया है. अब हमको जब तक पता न चल जाए कि उन्होंने किस आधार पर इतनी बड़ी बात कह दी तब तक हम क्या बोलें.
हिंदू राष्ट्र की मांग गलत, यह सब जुमलेबाजी
शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने हिंदू राष्ट्र की मांग को
भी गलत बताया. उन्होंने कहा कि यह सब जुमलेबाजी है. जो लोग भी यह मांग उठा रहे हैं वह हिंदू राष्ट्र का खाका सामने क्यों नहीं रखते. हिंदू राष्ट्र होगा तो राजनीतिक व्यवस्था में क्या बदलेगा. इसका खाका सामने रखे बिना इस पर बात करना बेमानी है. शंकराचार्य ने कहा कि हिंदू राष्ट्र से कुछ नहीं होगा. कहने को तो रावण भी हिंदू था और कंस भी एक ब्राह्मण था और एक क्षत्रिय, लेकिन उनका हिंदू राष्ट्र कभी किसी का आदर्श नहीं रहा. करपात्री जी रामराज्य की मांग करते थे, वह शासन का आदर्श है. जहां प्रजा सुखी है, सबके मन में एक दूसरे के प्रति प्रेम भाव है. जहां का राजा प्रजा के प्रति समर्पित है. वह प्रजा हित में कुछ भी छोड़ने को तैयार है.
अब संतों-महंतों का काम भी खुद करने लगे हैं राजनेता
स्वामी शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि धर्म का काम अलग है और राजनीति का काम अलग. जिस दिन से हम राजनीति में आ गए उस दिन से धर्माचार्य नहीं रहे. फिर भले ही हम इसी तरह का कपड़ा पहनें. अगर कोई महात्मा जैसा दिखने वाला व्यक्ति गेरुआ कपड़ा पहने संसद या विधानसभा में दिख रहा हो तो यह मत समझिए कि वह धार्मिक है. हालांकि उनका कपड़ा उतरवा लेना चाहिए नियम के अनुसार.
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शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि अब राजनेता संतों-महंतों का काम भी खुद करने लगे हैं और धार्मिक ग्रंथों के बारे में बयान दे रहे हैं. अब राजनेता मंदिर बनाने के लिए शिलान्यास कर रहे हैं. अब राजनेता वह हर काम कर रहे हैं जो एक धर्माचार्य को करना चाहिए. सवाल यह है कि धर्माचार्य का काम धर्माचार्य को क्यों नहीं करना चाहिए. भारत की सरकार में जो बैठता है वह संविधान की शपथ लेता है. संविधान कहता है कि हम धर्म निरपेक्ष हैं. जब आप धर्म निरपेक्ष हो तो धर्म स्थान का प्रबंधन आप कैसे कर रहे हैं.’
शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद कहा कि चाहे भाजपा हो, कांग्रेस हो, सपा-बसपा हो, दक्षिण की पार्टियां हों, उत्तर की पार्टियां हों जो भी राजनीतिक दल के सदस्य के रूप में पंजीकृत हुआ वह धर्मनिरपेक्ष हो जाता है, क्योंकि राजनीतिक दलों ने रिटेन में धर्मनिरपेक्षता की शपथ लेकर खुद को रजिस्टर कराया है. जो भी राजनीतिक पार्टी का सदस्य बन गया, वह धर्म निरपेक्ष हो गया. ऐसे में एक ही साथ आप धार्मिक भी हो और धर्मनिरपेक्ष भी हो, दोनों नहीं हो सकते.
उन्होंने कहा कि हम अभी धार्मिक हैं क्योंकि किसी राजनीतिक दल से नहीं जुड़े हुए हैं. हम धर्म के मामले में बोल सकते हैं, लेकिन जैसे ही किसी राजनीतिक दल से जुड़े, हम धर्मनिरपेक्ष हो जाएंगे.
जिस धर्मग्रंथ पर देश की आस्था, उसे कुचला जा रहा
शंकराचार्य ने कहा कि हमारे राजनेता अपने वोट के लिए कुछ भी कर सकते हैं. आज की तारीख में भारत में सबसे अधिक किसी ग्रंथ को पढ़ा या सुना जाता है अथवा उसकी व्याख्या होती है तो वह रामचरित मानस है. जिस धर्मग्रंथ पर पूरा भारत आस्था रखता है, उस मानस की प्रतियों को आप फाड़ रहे हो, जला रहे हो, पैरों से कुचल रहे हो- यह अच्छा नहीं है.
शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि आप राजनीतिक कारणों से दो वर्ग पैदा कर रहे हो. एक वर्ग को अपने में मिला लोगे तो आपके वोट बढ़ जाएंगे-आपको सत्ता मिल जाएगी. आपको सत्ता मिले हमें क्या बाधा है, लेकिन यह तरीका अपनाकर आप सत्ता लोगे जिससे समाज दो फाड़ हाे जाए?
धर्माचार्यों को भी राज्यसभा में मनोनीत करने की मांग
शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने धर्माचार्यों को भी राज्यसभा में मनोनीत करने की मांग करते हुए कहा कि राज्यसभा में क्रिकेटर चले गए, अभिनेता चले गए, लेकिन धर्म के क्षेत्र से किसी का चयन नहीं हुआ. धर्म के क्षेत्र से कोई पॉलिटिक्स कर रहा हो, वह अलग है, लेकिन यह कहकर कि भले ही राजनीति से इनका कुछ लेना-देना न हो, लेकिन धर्म के क्षेत्र से आए हैं जिसका समाज में बहुत बड़ा योगदान है, इसलिए हम इनको यहां ले रहे हैं. जो धार्मिक लोग दिन-रात लोगों को जोड़ने के काम में लगे हुए हैं. ऐसे धार्मिक व्यक्ति कभी भी तोड़ने का काम नहीं करते.