पॉलिटॉक्स ब्यूरो. 9 नवंबर को तत्कालीन सीजेआई रंजन गोगोई के नेतृत्व वाली 5 सदस्यीय बैंच के अयोध्या मामले पर सुनाये फैसले पर शुक्रवार को 6 नई पुनर्विचार याचिकाएं दाखिल की गई. इनमें से 5 याचिकाएं मौलाना मुफ्ती हसबुल्लाह, मुहम्मद उमर, मौलाना महफूजुर रहमान, हाजी नहबूब तथा मिशबाहुद्दीन की तरफ से दाखिल की गई है. इन सभी याचिकाओं को आॅल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) का समर्थन प्राप्त है. एक याचिका मुहम्मद अयूब की तरफ से दाखिल की गई है. अब तक कुल सात पुनर्विचार याचिकाएं अयोध्या फैसले पर आ चुकी हैं. इससे पहले दो दिसंबर को उत्तर प्रदेश जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष तथा अयोध्या मामले में मूल पक्षकार रहे ए.सिद्दिक के वारिस मौलाना सैयद अशद रशीदी ने भी पुनर्विचार याचिका दाखिल की थी. (Petition on Ayodhya)
अधिवक्ता एमआर शमशाद के माध्यम से दाखिल कई गई पांचों याचिकाओं को वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन और जफरयाब जिलानी ने अंतिम रूप दिया. हालांकि अयोध्या मामले में मुस्लिम पक्ष के वकील रहे राजीव धवन के 3 दिसंबर को फेसबुक पर दिए गए बयान के बाद ये माना जा रहा था कि अब वे मुस्लिम पक्षकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष नहीं रखेंगे लेकिन बाद में धवन ने कहा कि वह मुस्लिम पक्ष को बांटना नहीं चाहते. ऐसे में अब उम्मीद जताई जा रही है कि आगे की सुनवाई में धवन ही मुस्लिम पक्ष की बात रखेंगे. (Petition on Ayodhya)
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एक याचिका में कहा गया है कि 9 नवंबर के फैसले में कानून का उल्लंघन करने वालों और मस्जिद को ढहाने वालों को माफ कर दिया गया. संविधान के अनुच्छेद 142 के अंतर्गत सुन्नी वक्फ बोर्ड को पांच एकड़ भूमि आवंटित करने का निर्देश देना गलत है क्योंकि इस मामले में कभी ऐसी मांग की ही नहीं गई. जबकि जमीयत उलमा-ए-हिंद की ओर से दाखिल याचिका में कहा गया कि बाबरी मस्जिद के पुनर्निर्माण का निर्देश दिए जाने से ही इस मामले में ‘पूर्ण न्याय’ होगा. उन्होंने फैसले से 14 बिंदुओं पर पुनर्विचार की अर्जी लगाई. (Petition on Ayodhya)
हसबुल्लाह की ओर से दाखिल याचिका में मुस्लिम समुदाय के साथ घोर अन्याय की बात कही गई है. इसमें कहा गया है कि पूरी विवादित जमीन का मालिकाना हक हिंदू पक्षकारों को इस आधार पर नहीं दिया जा सकता कि वह पूरी तरह उनके कब्जे में थी. यह भी स्वीकार्य तथ्य है कि दिसंबर 1949 तक मुसलमान इस स्थान पर नमाज पढ़ते थे.
गौरतलब है कि पांच जजों की संविधान पीठ ने 9 नवंबर को सर्वसम्मति से दिए ऐतिहासिक फैसले में पूरी विवादित जमीन जो 2.77 एकड बताई जा रही है, को रामलला को सौंपने की बात कही. साथ ही मस्जिद निर्माण के लिए 5 एकड़ जमीन सुन्नई वक्फ को देने का आदेश दिया. इस मामले में उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने पुनर्विचार याचिका दाखिल करने से इनकार कर दिया है. (Petition on Ayodhya)