Politalks.News/Rajasthan. संयुक्त अरब अमीरात के एक समाचार पत्र गल्फ न्यूज की वेबसाइट पर छपा लेख- ‘सचिन पायलट बनाए जा सकते हैं राजस्थान के मुख्यमंत्री‘ ने आज प्रदेश में पहले से जारी सियासी उथल-पुथल को और तेज कर दिया है. सोशल मीडिया पर जबरदस्त वायरल हो रही गल्फ न्यूज की वेबसाइट पर यह लेख स्वाती चतुर्वेदी ने लिखा है. गल्फ न्यूज के इस लेख का सार ये है कि ‘अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के कार्यकाल के आखिरी दौर में यानी 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले ‘यंग तुर्क’ सचिन पायलट को प्रतिष्ठित पद (मुख्यमंत्री) मिल सकता है. 2018 कांग्रेस को सत्ता में लौटाने के लिए भी सचिन पायलट ने संघर्ष किया था.’
गल्फ न्यूज पर प्रकाशित इस लेख में लिखा गया है कि, ‘कांग्रेस आलाकमान भी मानती है सचिन पायलट ने राजस्थान में कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में करीब सात साल तक ‘अथक‘ परिश्रम किया. पायलट सियासी संकट के दौरान आलाकमान के मनाने पर विद्रोह छोड़ सरकार के साथ आए थे. आलाकमान ने पायलट से वादा किया था कि उनके समर्थकों को सम्मान दिया जाएगा. पिछले एक साल में सचिन पायलट असामान्य रूप से ‘धैर्यवान‘ रहे हैं. कांग्रेस आलाकमान से मिले वादे को पूरा करने के इंतजार में पायलट धैर्यवान रहे हैं. लेकिन एक साल बाद भी सचिन पायलट से किए वादों पर हालात जस के तस बने रहे, क्योंकि कांग्रेस ‘हाईकमान‘ को कोरोना महामारी का हवाला देकर स्थिति को टाला जाता रहा.’
प्रकाशित लेख में आगे लिखा गया है, ‘लेकिन सचिन पायलट ने आलाकमान की ओर से किए गए वादों पर जब कुछ नहीं होता देखा तो ‘लाल बटन‘ दबा दिया, इस पर आलाकमान ने प्रभारी अजय माकन और महासचिव केसी वेणुगोपाल को सीएम गहलोत से बात करने के लिए भेजा, ताकि सीएम गहलोत को मनाया जा सके की पायलट के समर्थकों के साथ किए गए पावर शेयरिंग के वादे को पूरा करने का समय आ गया है. अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या गांधी परिवार के पास सीएम गहलोत को पद छोड़ने के लिए मजबूर करने की राजनीतिक ताकत है?’
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गल्फ न्यूज ने विश्वसनीय सूत्रों के हवाले से लिखा है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से बात की और कहा कि बदलाव तो होना ही है. अब यह देखा जाना बाकी है कि क्या सीएम गहलोत पंजाब के एक और शक्तिशाली क्षेत्रीय क्षत्रप पंजाब के सीएम अमरिंदर सिंह के उदाहरण का अनुसरण करेंगे, जिन्होंने सार्वजनिक नाराजगी के बावजूद नवजोत सिंह सिद्धू को पंजाब कांग्रेस प्रमुख बनाने के ‘हाईकमान’ के आदेश को स्वीकार कर लिया था. या फिर क्या गहलोत बदलाव का विरोध करेंगे?
गल्फ न्यूज़ के इस लेख में आगे लिखा है कि, ‘सचिन पायलट खेमे के समर्थक बताते हैं पायलट ने भारतीय जनता की पार्टी की सरकार में संघर्ष किया है. कांग्रेस को मुश्किल समय से निकाला है. जबकि सचिन पायलट को विरासत में राजनीति मिली थी बावजूद इसके वे कांग्रेस की अगली पीढ़ी में एक वास्तविक जननेता हैं. व्यापक रूप से एक कठिन कार्यकर्ता माने जाने वाले पायलट ने अपने आधार को सुरक्षित रखने के लिए खूब दौड़ लगाई है.’
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प्रकाशित लेख के अनुसार, ‘पायलट कैंप के अनुयायी कहते हैं कि, ‘भारत में हर कोई अपने पड़ोस में एक मिस यूनिवर्स पसंद करता है, लेकिन घर पर नहीं,’ यह एक लाक्षणिक बिंदु है कि पायलट और उनकी सामूहिक स्वीकृति कांग्रेस नेताओं में असुरक्षा पैदा करती है. चुनाव प्रचारक के रूप में पायलट की अन्य राज्यों में अत्यधिक मांग में, अभी भी पायलट जनता के बीच जाते हैं तो सीएम गहलोत का खेमा असहज हो जाता है.’
यही नहीं, गल्फ न्यूज़ के इस लेख में आगे यह भी लिखा है कि, ‘जाहिर तौर पर सीएम गहलोत को गांधी परिवार द्वारा उनके बेटे वैभव गहलोत के राजनीतिक भविष्य के बारे में कुछ आश्वासन दिया गया है. गांधी परिवार ने पहले ही पंजाब में सार्वजनिक रूप से संकेत दे दिया था कि नवजोत सिंह सिद्धू कैप्टन अमरिंदर सिंह के उत्तराधिकारी हैं और अब राजस्थान में भी ऐसा ही करना चाहते हैं. बड़ी राजनीतिक चर्चा यह है कि गहलोत उस योजना के भाग ‘ए’ के लिए सहमत हो गए हैं जिसमें उनके मंत्रिमंडल में फेरबदल शामिल है, जो अगस्त की शुरुआत तक होने की संभावना है. लेकिन पार्ट ‘बी’ जिसमें सीएम गहलोत द्वारा पायलट के लिए रास्ता बनाना शामिल है, डील ब्रेक होने की संभावना है, लेकिन अमरिंदर के उदाहरण के बाद, केंद्रीय कांग्रेस नेतृत्व आशावादी है.’
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लेख में आगे लिखा गया है कांग्रेस से नाराज ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पहले कांग्रेस छोड़ दी थी और मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार गिरा दी थी. मोदी सरकार के हालिया कैबिनेट फेरबदल में उन्हें भाजपा ने पुरस्कृत किया और नागरिक उड्डयन मंत्री बनाया. वहीं सचिन पायलट के समकालीन, जितिन प्रसाद ने भी हाल ही में भाजपा में जॉइन की है. युवा तुर्कों का पार्टी से बाहर निकलना केंद्रीय नेतृत्व के लिए देरी से जगाने का एक परिणाम है. ऐसे में पार्टी नेतृत्व अब सचिन पायलट को खोना नहीं चाहता है. अपनी ओर से सचिन पायलट स्पष्ट हैं कि वह भाजपा में शामिल नहीं होंगे, बल्कि अपने कार्यकर्ताओं और जनता के लिए लड़ते रहेंगे. पायलट ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि वह अपने जनसंपर्क को जारी रखेंगे और अपने आधार को राजस्थान में कमजोर नहीं होने देंगे.