Rajasthan Politics: राजस्थान के चर्चित फ़ोन टैपिंग मामले को लेकर सियासत गर्मा गई है. प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के ओएसडी रहे लोकेश शर्मा के खुलासों के बाद जमकर बयानबाजी का दौर भी लगातार जारी है. अब इस मामले की उच्च स्तरीय जांच करवाने को लेकर वरिष्ठ भाजपा नेता व पूर्व नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ ने मुख्यमंत्री भजनलाल को पत्र लिखा है.
राजेंद्र राठौड़ ने मुख्यमंत्री भजनलाल को पत्र लिखकर कहा है कि वर्ष 2020 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार के समय मुख्यमंत्री रहे अशोक गहलोत के पूर्व ओएसडी लोकेश शर्मा द्वारा दो दिन पहले 24 अप्रैल को चुने हुए जनप्रतिनिधियों के फोन टैपिंग से जुड़े प्रकरण को लेकर खुलासे किये. जिसमें पूर्व ओएसडी ने मीडिया के समक्ष तत्कालीन कांग्रेस सरकार पर जो गंभीर आरोप लगाये हैं, उससे स्पष्ट तौर पर प्रमाणित हो रहा है कि पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने तत्कालीन उच्चपदस्थ अधिकारियों के साथ मिलीभगत कर संविधान प्रदत अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करते हुए कानून व नियमों की धज्जियां उड़ाई और सरकारी एजेंसियों पर बेजा दबाव बनाकर अवैधानिक ढंग से जनप्रतिनिधियों के फोन टैप करवाये. पूर्व ओएसडी के द्वारा मानेसर गये कांग्रेस सरकार में पूर्व उपमुख्यमंत्री रहे सचिन पायलट सहित उनके करीब 19 सहयोगी विधायकों के फोन टैप करवाये जाने का प्रमाण देना और स्वीकार करना अत्यन्त गंभीर प्रकरण है.
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राजेंद्र राठौड़ ने कहा कि यह दुर्भाग्य की बात है कि मुख्यमंत्री जैसे जिम्मेदार एवं संवैधानिक पद पर रहते हुए अशोक गहलोत द्वारा ना केवल गैर कानूनी तरीके से फोन टैप करवाये गये अपितु पुलिस प्रशासन की पूरी मशीनरी का भी दुरुपयोग किया गया. अवैध फोन टैप के इस षडयंत्र में उच्च पदस्थ प्रशासनिक अधिकारी एवं पुलिस अधिकारी शामिल थे जो आज भी उच्च पदों पर पदस्थापित है. इस संबंध में उच्च स्तरीय कमेटी द्वारा निष्पक्ष जांच करवाकर इनके विरुद्ध सख्त कार्रवाई की दरकार है.
राजेंद्र राठौड़ ने आगे लिखा कि मैं आपका ध्यान इंडियन टेलीग्राफ एक्ट 1885 की धारा 5 (2) एवं नियमों की ओर आकर्षित करना चाहता हूं जिसके अनुसार देश की अखण्डता, सम्प्रभुता या जन सुरक्षा, गंभीर अपराध कारित किये जाने की संभावनाओं में या पड़ोसी देश के मित्रवत रिश्तों में संभावित रुकावट इत्यादि को देखते हुए केन्द्र सरकार या राज्य सरकार लिखित में कारणों का उल्लेख करते हुए प्राधिकृत अधिकारी किसी भी संदेश या टेलीफोन को इंटरसेप्ट कर सकेगा. यानी विधिक कानूनी प्रक्रिया अपनाकर और सक्षम स्तर से अनुमति के उपरांत ही टेलीफोन रिकॉर्डिंग की जा सकती है. लेकिन विगत कांग्रेस सरकार के समय जो फोन टैपिंग की प्रक्रिया अपनाई गई उसमें कहीं भी यह नही लगता कि देश की अखण्डता, सम्प्रभुता या जन सुरक्षा का गंभीर अपराध कारित किये जाने की संभावना रही.
राजेंद्र राठौड़ ने कहा कि यह फोन टैपिंग तत्कालीन मुख्यमंत्री ने अपने धुर विरोधियों की बातचीत को सुनने के लिए ही करवाये थे. टेलीफोन या मैसेज को इंटरसेप्ट किसके आदेश से किस रीति से किया जा सकता है, इसका विस्तृत उल्लेख Indian Telegraph Rule 1951 में भी विस्तृत रूप से है जिसका भी उल्लंघन तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने किया. संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुसार व्यक्ति का जीवन, आचरण, निजता की पूर्ण स्वतंत्रता उसका संवैधानिक अधिकार है. आम आदमी की निजता में दखल उसके मौलिक अधिकार में दखल है.
राठौड़ ने आगे लिखा कि विगत कांग्रेस सरकार तथा उच्च पदों पर पदस्थ पुलिस एवं प्रशासन के अधिकारियों द्वारा षड्यंत्र पूर्वक इंडियन टेलीग्राफ एक्ट 1885, इंडियन टेलीग्राफ रुल्स 1951, संविधान के अनुच्छेद 21 एवं माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्णयों की खुलकर धज्जियां उड़ाई और संवैधानिक प्रक्रियाओं व नियमों को ताक पर रखने का काम किया. अब यक्ष प्रश्न यह है कि किसकी अनुमति व किन अधिकारियों ने अपने आकाओं को खुश करने के लिए जनप्रतिनिधियों के फोन टैप करवाये ? क्या फोन टैपिंग प्रक्रिया में तमाम संवैधानिक प्रक्रियाओं का पालन किया गया था? इस सबकी उच्च स्तरीय जांच होना आवश्यक है जिससे दोषियों के खिलाफ समुचित कार्रवाई हो सके. राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पूर्व ओएसडी ने तत्कालीन कांग्रेस सरकार पर फोन टैपिंग के जो गंभीर आरोप लगाये हैं उसके लिए उच्च स्तरीय कमेटी का गठन कर इस षड्यंत्र में शामिल आकाओं के साथ तत्कालीन उच्च पदस्थ प्रशासनिक व पुलिस अधिकारियों जिनकी प्रथम दृष्टया संलिप्तता अब उजागर हो गई है, के विरुद्ध शीघ्र उच्च स्तरीय जांच करवाकर आवश्यक कार्रवाई करवायें.