होली पर दिवाली के गीत गा गए राहुल पीएम मोदी से नहीं तो कम से कम अपनी बहन प्रियंका से ही सीखें!

महंगाई हटाओ रैली में राहुल गांधी ने गाया अपना ही राग, हिंदू-हिंदुत्व, गांधी और गोडसे, सत्याग्रह और सत्ताग्रह जैसे शब्दों में उलझ गया राहुल का भाषण, जबकि जनता सीधे-सीधे सुनना चाहती थी महंगाई पर बात, पेट्रोल डीजल के महंगे होने पर भाषण, सियासी गलियारों में चर्चा यह मुद्दा बौद्धिक कार्यक्रमों या सेमिनार वगैरह में बोलने के लिए तो ठीक था, जनसभा में इससे लोग हुए बोर

मोदी से नहीं तो कम से कम अपनी बहन प्रियंका से ही सीखें राहुल गांधी!
मोदी से नहीं तो कम से कम अपनी बहन प्रियंका से ही सीखें राहुल गांधी!

Politalks.News/RahulGandhi. बीते रविवार को जयपुर में हुई कांग्रेस की राष्ट्रव्यापी ‘महंगाई हटाओ’ (Mahangai Hatao MahaRally) महारैली जबरदस्त हिट रही है. रैली के मंच से कांग्रेसी दिग्गजों ने जमकर मोदी सरकार को कोसा और आमजन से जुड़े मुद्दे पर कांग्रेस (Congress) ने सिम्प्थी लेने की भी कोशिश तो की, लेकिन कांग्रेस की रैली को लेकर सियासी गलियारों में एक चर्चा जोरों पर है. कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी (rahul gandhi) ने महंगाई विरोधी रैली में एक बड़ा मौका गंवा दिया. राहुल गांधी पता नहीं किन दार्शनिक बातों में उलझे रहे, जिससे उनके भाषण का असली मैसेज लोगों तक नहीं पहुंच सका और महंगाई जैसे गंभीर मुद्दे पर अपनी बात रखने की बजाय राहुल अपनी हिंदुत्व (Hindutva) की थ्योरी जनता के सामने रख गए. राजनीतिक जानकारों का मानना है कि, ‘सभा में जनता सीधा आक्रमण और लच्छेदार भाषण से जोश में आती है ना कि ‘बौद्धिक’ से!’

जयपुर में हुई कांग्रेस की महंगाई हटाओ महारैली में राहुल गांधी हिंदू और हिंदुत्ववादी, गांधी और गोडसे, सत्याग्रह और सत्ताग्रह जैसे भारी भरकम जुमलों में उलझे रहे. राहुल ने मोदी सरकार पर सीधे-सीधे महंगाई, गरीबी, बेरोजगारी, आर्थिक संकट, चीन-पाकिस्तान और कोरोना काल के मिस मैनेजमेंट और सांप्रदायिक विभाजन की राजनीति पर हमला नहीं किया. इन सभी आमजन से जुड़े मुद्दों की बजाय राहुल दार्शनिक और वैचारिक व्याख्या में लग गए. सियासी गलियारों में चर्चा है कि यह मुद्दा बौद्धिक कार्यक्रमों या सेमिनार वगैरह में बोलने के लिए तो ठीक था, जनसभा में इससे लोग बोर हुए और राहुल के कहने का अभिप्राय भी लोगों को समझ में नहीं आया.

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इसके साथ ही दिल्ली के सियासी गलियारों में और यहां तक कांग्रेस मुख्यालय के गलियारों में भी सुनाई दिया कि राहुल गांधी को नरेंद्र मोदी से सीखना चाहिए और नहीं तो कम से कम अपनी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा से ही सीख लेनी चाहिए. इसी जयपुर की रैली में ही राहुल की बहन और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने राहुल से पहले भाषण दिया था. प्रियंका ने मोदी और योगी सरकार के पर सीधा हमला किया. महंगाई का मुद्दा उठाया और आम लोगों की समस्याएं बताईंज़ लेकिन प्रियंका किसी दार्शनिक विमर्श में शामिल नहीं हुईं.

वहीं दूसरी तरफ प्रधानमंत्री मोदी जहां भी भाषण देते हैं वे लोगों से जुड़ जाते हैं. पीएम मोदी जिस जगह जाते हैं उनके मन की बात करते हैं. यहां तक की वहीं की लोकल भाषा में ही भाषण की शुरुआत करते हैं. पीएम मोदी विपक्ष को बहुत सीधे शब्दों में निशाना बनाते हैं और कई बार बिना कुछ बोले ही मैसेज पहुंचा देते हैं. जैसे वाराणसी में गंगा में डुबकी लगा कर और हाथ में गंगाजल लिए मंदिर तक पैदल जाकर पीएम मोदी ने बिना बोले बहुत बड़ा मैसेज दिया. फिर जब बोले तो हिंदू धर्म और भगवान शिव के दार्शनिक पक्ष पर नहीं बोला, बल्कि सीधे सीधे औरंगजेब और सालार मसूद का नाम लेकर सांप्रदायिक विभाजन का दांव चला. साथ ही काशी को पंजाब से भी जोड़ गए.

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इसके बिलकुल विपरीत राहुल गांधी जयपुर में महंगाई के मुद्दे पर हुई इतनी विशाल रैली में महंगाई की जगह हिन्दू और हिंदुत्ववादी पर अपनी बात कह गए. जिसकी ना तो जनता को अपेक्षा थी ना ही खुद उनकी कांग्रेस पार्टी को. इसीलिए सियासी गलियारों में राहुल की इस पर तंज कसते हुए कहा जा रहा है कि राहुल गांधी होली पर दीवाली के गीत गाकर चले गए, अब राहुल कब तक ऐसे ही मौका गंवाते रहेंगे ये तो भगवान ही जानते हैं.

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