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Manipur News: मणिपुर में करीब दो महीने से कुकी और मैतेई समुदाय के बीच हिंसा अब तीव्र हो चली है. इस जानलेवा हिंसा में अब तक 131 से अधिक लोग जान गंवा चुके हैं 400 से अधिक घायल हुए हैं. इतना ही नहीं, 65 हजार से अधिक लोगों के घर छोड़ने की सूचना है. बीती रात कांगपोकपी जिले में हुई गोलीबारी में 3 लोगों की जान चली गई. अब सूचना आ रही है कि जल्द ही मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है. मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (ST) श्रेणी में आरक्षण देने के विरोध में हो रही तीव्र हिंसा के बाद अब मणिपुर के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह कभी भी इस्तीफा दे सकते हैं. सीएम किसी भी पल राज्यपाल अनुसुइया उइके से मुलाकात कर सकते हैं. वहीं मणिपुर की जनता ने प्रदर्शन करते हुए राज्य सरकार को एक्शन लेने की बात कही है.

मणिपुर की लोकल मीडिया से मिल रही जानकारी के मुताबिक आज सुबह स्थानीय महिलाओं के एक दल ने राजभवन के सामने प्रदर्शन करने की कोशिश की. कथित तौर पर महिलाओं की मांग है कि मुख्यमंत्री इस्तीफा न देकर हिंसा फैलाने वालों के खिलाफ सख्त एक्शन लें. इधर, खबर ये भी है कि बीजेपी शासित राज्य के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह हिंसा की जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे सकते हैं. इसी वजह से उनके राज्यपाल से मिलने की अटकलें लगाई जा रही हैं. सूत्रों के हवाले से आई खबरों की मानें तो राज्य में बेकाबू होते हालातों को देखते हुए केंद्र ने सीएम बीरेन सिंह दो विकल्प दिए थे या तो वे इस्तीफा दे दें या केंद्र हालात सुधारने के लिए खुद दखल देगा. माना जा रहा है कि बीरेन सिंह दूसरे विकल्प की ओर जा सकते हैं.

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आपको बता दें कि मणिपुर में 3 मई से कुकी और मैतेई समुदाय के बीच हिंसा जारी है. हिंसा में अब तक 131 से अधिक की मौत हो चुकी है जबकि 400 से अधिक घायल हुए हैं. आगजनी की 5 हजार से ज्यादा घटनाएं हुई हैं और अब तक 144 लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है. हिंसा को देखते हुए राज्य में इंटरनेट पर प्रतिबंध लगाया गया है और 36 हजार सुरक्षाकर्मियों समेत 40 आईपीएस की तैनाती की गई है.

क्या है मणिपुर हिंसा की वजह —

गौरतलब है कि मणिपुर की आबादी करीब 38 लाख है. यहां तीन प्रमुख समुदाय हैं- मैतेई, नगा और कुकी. मैतई ज्यादातर हिंदू हैं जबकि नगा-कुकी ईसाई धर्म को मानते हैं और ST वर्ग में आते हैं. इनकी आबादी करीब 50% है. राज्य के करीब 10% इलाके में फैली इंफाल घाटी मैतेई समुदाय बहुल ही है. नगा-कुकी की आबादी करीब 34 प्रतिशत है. ये लोग राज्य के करीब 90% इलाके में रहते हैं. मैतेई समुदाय की मांग है कि उन्हें भी अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया जाए. समुदाय ने इसके लिए मणिपुर हाई कोर्ट में याचिका लगाई. समुदाय की दलील थी कि 1949 में मणिपुर का भारत में विलय हुआ था. उससे पहले उन्हें जनजाति का ही दर्जा मिला हुआ था. इसके बाद हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से सिफारिश की कि मैतेई को अनुसूचित जनजाति (ST) में शामिल किया जाए.

मैतेई जनजाति वाले मानते हैं कि सालों पहले उनके राजाओं ने म्यांमार से कुकी काे युद्ध लड़ने के लिए बुलाया था. उसके बाद ये स्थायी निवासी हो गए. इन लोगों ने रोजगार के लिए जंगल काटे और अफीम की खेती करने लगे. इससे मणिपुर ड्रग तस्करी का ट्राएंगल बन गया है. यह सब खुलेआम हो रहा है. इन्होंने नागा लोगों से लड़ने के लिए आर्म्स ग्रुप बनाया.

वहीं नगा और कुकी दोनों जनजाति मैतेई समुदाय को आरक्षण देने के विरोध में हैं. इनका कहना है कि राज्य की 60 में से 40 विधानसभा सीट पहले से मैतेई बहुल इंफाल घाटी में हैं. ऐसे में अनुसूचित श्रेणी में मैतेई को आरक्षण मिलने से उनके अधिकारों का बंटवारा होगा. सियासी समीकरणों पर एक नजर डाले तो मणिपुर के 60 विधायकों में से 40 विधायक मैतेई और 20 विधायक नगा-कुकी जनजाति से आते हैं. बस इसी विरोधाभास में इन जातियों में हिंसा भड़क रही है. राज्य के तेंगनुपाल, चुराचांदपुर, बिष्णपुर, इंफाल ईस्ट और इंफाल वेस्ट हिंसा प्रभावित जिलों में शामिल हैं. हिंसा को काबू करने की अब तक की राज्य सरकार की सभी कोशिशें नाकाफी साबित हुई हैं. इसी को देखते हुए सियासी बाजार गर्म है कि जल्दी ही राज्य के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह इस्तीफा देंगे और राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाकर सख्ती से हिंसा पर काबू पाया जाएगा.

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