पॉलिटॉक्स न्यूज/एमपी. देश में कोरोना काल या फिर यूं कहें कोरोना संकट चल रहा है लेकिन मध्य प्रदेश की गलियों में कुछ और ही चल रहा है. हालांकि यहां 24 सीटों पर होने वाले उप चुनावों में अभी वक्त है लेकिन पोस्टर पॉलिटिक्स का दौर शुरु हो गया है. शुरुआत हुई छिंदवाड़ा से जहां पहले पूर्व सीएम कमलनाथ और उनके सुपुत्र नकुलनाथ के पोस्ट छपे थे. अब बीजेपी नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के ‘सिंधिया लापता’ वाले पोस्टर कई दिवारों पर चिपके हुए दिखाई दे रहे हैं. यही नहीं, गुमशुदा जनसेवक को तलाशने वाले को 5100 रुपये का इनाम देने की बात भी पोस्टर्स में छपी हुई है. इन पोस्टरों के बाद लगने लगा है कि राजनीतिक दलों ने एक दूसरे को घेरने की तैयारी शुरू कर दी है.
हालांकि कांग्रेस नेता और पूर्व मंत्री जीतू पटवारी ने मध्यप्रदेश में पोस्टरों की राजनीति को गलत बताया है. क्या ये पोस्टर कांग्रेस की ओर से लगाए गए हैं? सवाल पर पटवारी ने इन अफवाहों का खंडन करते हुए कहा कि मध्यप्रदेश की राजनीति का ये रूप कभी नहीं रहा. यहां राजनीति में भी शिष्टाचार धर्म का पालन किया जाता है.
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इससे पहले छिंदवाड़ा में पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और उनके सांसद पुत्र नकुलनाथ के लापता होने के पोस्टर लगाए गए थे. पोस्टर पर दोनों नेताओं की फोटो लगी थी और लिखा था ‘गुमशुदा की तलाश’. उसके नीचे लिखा हुआ था ‘जो इन्हें छिंदवाड़ा लेकर आएगा उसे 21 हजार रुपये का इनाम दिया जाएगा’. अब माना जा रहा है कि अपने नेता के लापता वाले पोस्टर से बौखलाई कांग्रेस ने पलटवार करने के उद्देश्य से जयविलास पैलेस और उसके आसपास के इलाकों में ‘गुमशुदा जनसेवक’ नाम से सिंधिया के पोस्टर लगा दिए.
पोस्टर पर बवाल हुआ तो सिंधिया समर्थकों ने कांग्रेस नेता सिद्धार्थ राजावत के खिलाफ थाने में शिकायत दे दी है. खुद बीजेपी के प्रदेश उपाध्यक्ष रामेश्वर शर्मा का कहना है कि बोल रहे हैं कि सिंधिया को गुमशुदा बताने वाले ये नहीं जानते कि वे लगातार ग्वालियर-चंबल संभाग पर नजर बनाये हुए हैं. रामेश्वर शर्मा ने कहा कि सिंधिया ने सिर्फ ग्वालियर-चंबल संभाग ही नहीं बल्कि मध्यप्रदेश के ज्यादातर जनप्रतिनिधियों से फोन पर लगातार संपर्क बनाया हुआ है.
हालांकि देश की राजनीति पटल पर पोस्टरों की राजनीति कोई नई बात नहीं. लेकिन जिस तरह से कोरोना संकट के दौरान भी मध्यप्रदेश में नेता एक-दूसरे पर इस हद तक कीचड़ उछालने में लगे हुए हैं वो शायद कहीं और देखने को नहीं मिलेगा. ये कहना भी गलत नहीं कि इस बार ज्योतिरादित्य सिंधिया पर सभी की नजरें गढ़ी हुई हैं क्योंकि कांग्रेस से बीजेपी में गए सिंधिया अपने साथ सरकार भी साथ ले गए. शिवराज सिंह के सिर फिर से मुख्यमंत्री का ताज सज गया. अब माना यही जा रहा है कि उप चुनावों में उनके कंधों पर एक बड़ी जिम्मेदारी होगी.
ग्वालियर-चंबल क्षेत्र की 16 सीटों पर सिंधिया का प्रभाव है और पिछले चुनाव में यहां से जीते सभी 16 विधायक उनके समर्थित हैं जो कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हो चुके हैं. उनमें से कईयों को उप चुनाव में टिकट मिलने की पूरी उम्मीद है. ऐसे में सिंधिया का रोल यहां काफी अहम है. वहीं बीजेपी का समर्थन मिलेगा, सो अलग. इधर, कांग्रेस इन सीटों को अपने अधिकार क्षेत्र में करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहती. इन सभी सीटों पर जीत की पतका फहराकर कांग्रेस न सिर्फ फिर से सत्ता वापसी का दावा पेश करेगी, साथ ही सिंधिया की विरासत को भी धूल चटाने का प्रयास करेगी. ऐसे में ये मुकाबला अब बीजेपी बनाम कांग्रेस नहीं बल्कि कांग्रेस बनाम सिंधिया बनता जा रहा है. हां, इस मुकाबले में मायावती की बसपा पार्टी सेंध लगाने का काम जरूर कर रही है.