रोडा एक्ट पर सियासत तेज: राठौड़ बोले- राज्यपाल पर आरोप लगाने के बजाय सरकार दे किसानों को राहत

रोडा एक्ट पर गर्माई मरुधरा की सियासत, राजभवन और गहलोत सरकार आमने-सामने, राजेन्द्र राठौड़ ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को लिखा पत्र, राज्य सरकार के खिलाफ खोला मोर्चा, किसानों के साथ वादाखिलाफी और धोखाधड़ी का लगाया आरोप

किसानों से वादा निभाए गहलोत सरकार- राठौड़
किसानों से वादा निभाए गहलोत सरकार- राठौड़

Politalks.News/Rajasthan. किसानों की जमीनों की नीलामी रोकने के बिल पर राजस्थान (Rajasthan) सरकार और राजभवन (Rajbhawan) आमने-सामने हो गए हैं. संयुक्त किसान मोर्चा और भारतीय किसान यूनियन का प्रतिनिधिमंडल राजभवन पहुंचा तो राज्यपाल ने कहा कि, ‘रोडा एक्ट में संशोधन के सम्बन्ध में कोई विधेयक राजभवन नहीं आया है’. दूसरी तरफ राजस्थान सरकार का कहना है कि, ‘सरकार ने 2 नवम्बर 2020 को सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) की धारा 60 (1)(b) में संशोधन किया था. जिससे 5 एकड़ जमीन पर किसान क्रेडिट कार्ड लोन लेने पर कुर्की और नीलामी पर रोक लग जाती, लेकिन यह बिल अभी तक राजभवन में विचाराधीन है’. इस पूरे मसले को लेकर उपनेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौड़ (Rajendra Rathore) ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (CM Ashok Gehlot) को पत्र लिखा है. राठौड़ ने पत्र में कांग्रेस द्वारा किसानों को धोखा देने का आरोप लगाया है. राठौड़ ने कहा है कि राजभवन को आरोपित करने की जगह किसानों से किया वादा निभाना चाहिए’

‘रोडा एक्ट के प्रावधानों में संशोधन का लाना चाहिए प्रस्ताव’
राजस्थान विधानसभा में उपनेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौड़ ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पत्र लिखकर कहा कि, ‘5 एकड के कम कृषि भूमि नीलामी के संबंध में संवैधानिक प्रमुख राज्यपाल महोदय और राजभवन को आरोपित करने की जगह (राजस्थान संशोधन) विधेयक-2020 के स्थान पर राजस्थान कृषि ऋण संक्रिया (कठिनाई का निराकरण) अधिनियम 1974 (रोडा एक्ट, 1974) के प्रावधानों में संशोधन का प्रस्ताव लाना चाहिए था जिससे की प्राकृतिक आपदा व अन्य कारणों से जो किसान बैंकों से प्राप्त अल्पकालीन अवधिपार फसली ऋणों का भुगतान समय पर नहीं कर पाते है उनकी 5 एकड़ तक की कृषि भूमि की कुर्की/ विक्रय होने से बच सके’.

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‘संसदीय परंपराओं के विपरीत की गई कर्जमाफी’
राजेन्द्र राठौड़ ने कहा कि, ‘राज्य के संवैधानिक प्रमुख महामहिम राज्यपाल महोदय व राजभवन की संसदीय परम्पराओं के विपरीत राज्य सरकार द्वारा कर्जमाफी की गई. आधी-अधूरी घोषणा के परिणामस्वरूप प्रदेश के हजारों किसानों की जमीनों की नीलामी से उत्पन्न विवाद में राजस्थान सिविल प्रक्रिया (राजस्थान संशोधन) विधेयक 2020 के माध्यम से किसानों की 5 एकड़ तक की कृषि भूमि की नीलामी नहीं होने का संशोधन राजभवन में लम्बित होने को लेकर आरोपित किया गया है’.

‘क्या हुआ कल्ला समिति का?’

राजेन्द्र राठौड़ ने कहा है कि, ‘मुख्यमंत्री द्वारा राष्ट्रीयकृत बैंक, अधिसूचित बैंक व ग्रामीण बैंकों से 2 लाख रूपये तक के 30 नवम्बर 2018 तक के अल्पकालीन अवधिपार ऋण की माफी के लिए वन टाईम सेटलमेंट के लिए कमर्शियल बैंक व केन्द्र सरकार से परामर्श कर ऋण माफी के लिए वर्ष 2019-20 के बजट भाषण के पैरा 25 व बजट 2021-22 के बजट भाषण के पैरा 68 तथा राज्यपाल अभिषाण वर्ष 2019 के पैरा 11 व वर्ष 2020 के पैरा 27 के माध्यम से समाधान किये जाने का आश्वासन दिया था. इसके पश्चात राज्य के किसानों को गुमराह करने के लिए बी.डी. कल्ला की अध्यक्षता में राष्ट्रीयकृत बैंक, अधिसूचित बैंक व ग्रामीण बैंकों के ऋणी किसानों का वन टाइम सेटलमेंट करने के लिए सरकार को सुझाव देने के लिए बनाई गई कल्ला कमेटी की दर्जनों बैठक व दक्षिणी राज्यों के दौरे के बाद तथा 3 साल बाद भी अनिर्णित रहना किसानों के साथ धोखा है’.

‘राज्यपाल को आरोपित करने का कृत्सित प्रयास’

राजेन्द्र राठौड़ ने कहा कि, ‘सरकार द्वारा दिये गये आश्वासन से राज्य के लगभग 16 लाख किसान जिन पर लगभग 12 हजार करोड़ के 30 नवम्बर 2018 के बाद के फसली ऋण बकाया थे, जिसके परिणामस्वरूप आज हजारों किसानों की कृषि भूमि के नीलामी प्रक्रिया प्रारम्भ हो चुकी है. किन्तु दुर्भाग्य है कि समस्या के कारगर समाधान को ढूढ़ने के स्थान पर सरकार अब राजभवन व राज्यपाल को आरोपित करने का कृत्सित प्रयास कर रही है’. राजेन्द्र राठौड़ ने कहा कि, ‘सरकार द्वारा सिविल प्रक्रिया संहिता जो केन्द्रीय अधिनियम है कि धारा 60 (1) के अर्न्तगत दिनांक 02 नवम्बर 2020 में संशोधन किया है वह संविधान की समवर्ति सूची का विषय है. जिसमें प्रविष्ठि संख्या 13 में सिविल प्रक्रिया संहिता का वर्णन किया है, जिससे स्पष्ट होता है कि उक्त विषय पर राज्य सरकार एवं केन्द्र सरकार को विधि बनाने के अधिकार प्राप्त है’.

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‘सरकार द्वारा सीपीसी में किये गये वर्तमान संशोधन को भी राष्ट्रपति की मंजूरी आवश्यक

उपनेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौड़ ने कहा कि, ‘अनुच्छेद 246 (2) में प्रावधान है कि किसी राज्य के विधान मण्डल को समवर्ती सूची में वर्णित विषयों के सम्बन्ध में विधि बनाने की शक्ति है, किन्तु अनुच्छेद 254 (2) में स्पष्ट प्रावधान किये गये है कि राज्य का विधान मण्डल जब केन्द्र द्वारा पारित किये गये. अधिनियमों के सम्बन्ध में किसी प्रकार का कोई संशोधन करता है तो उस संशोधन के सम्बन्ध में राज्यपाल महोदय उक्त संशोधन की मंजूरी के लिए राष्ट्रपति को उक्त संशोधन को भेजेगा. इससे स्पष्ट है कि सरकार द्वारा सीपीसी में किये गये वर्तमान संशोधन को भी राष्ट्रपति की मंजूरी आवश्यक है’.

‘सरकार के प्रावधान किसानों के लिए नहीं है उपयोगी’

भाजपाई दिग्गज राजेन्द्र राठौड़ ने कहा कि, ‘सरकार ने सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 की धारा 60 (1) (बी) में संशोधन द्वारा ऋणी किसान की 5 एकड़ तक की भूमि को कुर्की/ विक्रय से मुक्त करने का प्रावधान कर दिया है. परन्तु उक्त प्रावधान प्रदेश के किसानों के लिए किसी भी प्रकार से उपयोगी नहीं है’. राठौड़ ने कहा कि, ‘मैं, यहां सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 की धारा 60 (1) के प्रावधानों की ओर आकर्षित करना चाहूंगा, जिसमें स्पष्ट प्रावधान है कि न्यायालय के आदेश के द्वारा किसी व्यक्ति की भूमि, घर या अन्य निर्माण, माल, धन, बैंक नोट, चैक, विनिमय पत्र, हुण्डी, वचन पत्र, सरकारी प्रतिभूमियां, धन के लिए बंधपत्र या अन्य प्रतिभूमियां, ऋण निगम अंश कुर्क और विक्रय किये जा सकेगें जब न्यायालय की डिक्री उस व्यक्ति के विरूद्ध पारित की गई है और वह व्यक्ति निर्णित ऋणी है’.

‘किसान की 5 एकड़ तक की कृषि भूमि बैंकों द्वारा की गई वसूली से मुक्त हो जायेगी जो सरासर अनुचित’
उपनेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौड़ ने कहा कि, ‘धारा 60 (1) (ए) में प्रावधान है कि ऐसा व्यकि्त जिसके विरूद्ध डिक्री पारित की गई है और वह निर्णित ऋणी है तब उसके स्वयं, पत्नी और बच्चों के आवश्यक वस्त्रों, भोजन पकाने के बर्तन, चारपाई और बिछौने और ऐसे निजी आभूषण जिन्हें कोई स्त्री धार्मिक प्रथा के अनुसार अपने से अलग नहीं कर सकती कुर्क/ विक्रय नहीं की जा सकेंगी’. चूरू विधायक राजेन्द्र राठौड़ ने कहा कि, ‘धारा 60 (1)(बी) में प्रावधान है कि शिल्पकार के औजार और जहां निर्णित ऋणी कृषक है वहां उसके दूध देने वाले तथा ऐसे पशु जिनका 2 वर्ष भीतर बयाना संभव है, खेती के उपकरण और पशु और बीज जो न्यायालय की राय में उसे उसकी हैसियत में अपनी आजीविका कमाने के लिए समर्थ बनाने हेतु आवश्यक है और कृषि उपज या कृषि उपज के किसी ऐसे भाग को कृर्क और विक्रय नहीं किया जा सकेगा। सरकार ने इस उपधारा (बी) में संशोधन करके ”उसकी 5 एकड़ तक की कृषि भूमि“ जोड़ी है. जिससे सरकार का यह सोचना है कि इस प्रकार के संशोधन से किसान की 5 एकड़ तक की कृषि भूमि बैंकों द्वारा की गई वसूली से मुक्त हो जायेगी सरासर अनुचित है’.

उपनेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौड़ ने कहा कि, ‘बैंकों द्वारा किसानों को सहकार किसान कल्याण योजना के तहत किसानों की भूमि बैंकों के पक्ष में रहने पर ही ऋण देने का प्रावधान है. जिस पर किसानों को दिये गये 01 लाख 60 हजार से अधिक रूपये के ऋणों की वसूली के लिए राजस्थान कृषि ऋण संक्रिया (कठिनाई का निराकरण) अधिनियम 1974 (रोडा एक्ट, 1974) में प्रावधान दिये गये है। रोडा एक्ट की धारा 13 में स्पष्ट प्रावधान है कि बैंक अपने विहित प्राधिकारी के माध्यम से ऋण की वसूली कर सकता है’.

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भाजपाई दिग्गज राजेन्द्र राठौड़ ने कहा कि, ‘धारा 13 (1) में स्पष्ट प्रावधान किये गये है कि विहित प्राधिकारी द्वारा (जो राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित) बैंक के आवेदन पर ऋण या उधार की वसूली की जा सकेगी. वसूली उसी भूमि से की जा सकेगी जो बैंक में बंधक रखी गई है, अन्य अचल सम्पत्ति का विक्रय नहीं किया जा सकेगा जब तक की इस सम्बन्ध में कृषक अथवा उसके प्रत्याभूतिदाता को सुनवाई का एक अवसर नहीं दे दिया जाता. धारा 13 (2) में स्पष्ट प्रावधान किये गये है कि उपधारा 1 में वर्णित विहित प्राधिकारी द्वारा जारी आदेश सिविल न्यायालय की एक डिक्री का होना समझा जायेगा’.

चूरू विधायक राजेन्द्र राठौड़ ने कहा कि, ‘उक्त प्रावधानों से स्पष्ट है कि बैंक के विहित प्राधिकारी को सिविल न्यायालय की शक्ति इस अधिनियम में दे रखी है जिससे सरकार द्वारा सिविल प्रक्रिया संहिता में किया गया संशोधन महत्वहीन व प्रभावहीन हो गया है. उक्त संशोधन तभी लागू होगा जब किसान की भूमि 5 एकड़ हो एवं न्यायालय में उस सम्बन्ध में लम्बित मामलों में डिक्री पारित हो. इसके अतिरिक्त मामलों में बैंक का विहित प्राधिकारी कार्यवाही करने के लिए स्वतंत्र है और उस पर किसी भी प्रकार का कोई बंधन नहीं है कि वह उस किसान की भूमि को कुर्क/ विक्रय ना करे जिसने अल्पकालीन, अवधिपार फसली ऋणों की अदायगी नहीं की है’.

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