Haryana Politics: लोकसभा चुनाव से ठीक पहले एक और बड़ा सियासी उलटफेर. हरियाणा में सरकार की साझी बनी जननायक जनता पार्टी ने अचानक प्रदेश की खट्टर सरकार से अपना समर्थन वापिस ले लिया. बताया जा रहा है कि लोकसभा सीटों के बंटवारे को लेकर बात न बनने के चलते ऐसा किया गया. गठबंधन टूटते ही सीएम मनोहर लाल खट्टर ने पद से और पूरी कैबिनेट ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. शाम को नायब सिंह सैनी हरियाणा का मुख्यमंत्री बनाया गया. अब सियासी तबके में यह चर्चा चल रही है कि खट्टर ने खुद मर्जी से इस्तीफा दिया या फिर केंद्र के निर्देश पर ऐसा किया गया.
यह भी पढ़ें: राजनीति की सियासी पिच पर फ्रंट फुट पर खेलने की तैयारी में युसूफ पठान
माना जा रहा है कि ये सियासी खेल का एक हिस्सा है जिसे लोकसभा के साथ साथ आगामी विधानसभा चुनाव के लिए खेला गया है.
खट्टर को पद से हटाया
69 वर्षीय मनोहर लाल खट्टर ने बतौर मुख्यमंत्री साढ़े नौ साल का सफर तय किया है. पिछली बार भी प्रदेश के सीएम वही थे. खट्टर दो बार करनाल से विधायक रहे हैं और पंजाबी समुदाय से आते हैं. लगातार सीएम रहने से पार्टी को प्रदेश में एंटी इंकम्बेंसी का खतरा हो सकता है. वहीं यहां का जाट समुदाय का वोट अब तक कांग्रेस, जजपा और इनेलोद में बंटता रहा है. बीजेपी और जजपा गठबंधन से जाट वोट जजपा के समर्थन में न आने की आशंका है. संभवत: यही वजह रही कि दोनों राजनीति दल चुनाव से पहले ही अलग अलग हो गए. इधर, खट्टर को करनाल से ही लोकसभा में उतारने की तैयारी हो रही है. आलाकमान उन्हें केंद्र में बड़ी व नयी भूमिका दे सकता है.
सैनी को सीएम क्यों बनाया
हरियाणा एक जाट बाहुल्य प्रदेश है लेकिन यहां 30 फीसदी वोटर्स ओबीसी समुदाय से आते हैं. 54 वर्षी नायब सिंह सैनी खुद भी करनाल से हैं और ओबीसी समुदाय से आते हैं. उन्हें अक्टूबर 2023 में ओपी धनखड़ की जगह प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था. वैसे तो सैनी को खट्टर का करीबी माना जाता है. माना जा रहा है कि सैनी को लाने में भी खट्टर की सहमति बताई जा रही है. बीजेपी के इस कदम को ओबीसी समुदाय पर पकड़ मजबूत करने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है. ओबीसी सीएम बनने से बीजेपी को इस समुदाय की अपने पक्ष में वोट बढ़ने की उम्मीद है. राज्य में सरकार का कार्यकाल 3 नंबर तक है और अक्टूबर में चुनाव संभव है. सैनी के बिना विधायक रहे सीएम बने रहने की अवधि 11 सितंबर तक है और उससे पहले आचार संहिता लगना तय है. ऐसे में वे बिना विधायकी चुनाव लड़े सीएम रह सकते हैं.
गठबंधन टूटा लेकिन सरकार सुरक्षित
हरियाणा के 2019 विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 40 सीटें जीती लेकिन बहुमत के 46 के जादुयी आंकड़े से दूर रह गयी. ऐसे में 10 सीटों वाली जजपा से गठबंधन कर सरकार बना ली. अब लोकसभा की 10 में से जजपा अपने लिए दो से तीन सीटों की मांग कर रही है जबकि बीजेपी का मानना है कि वो सभी सीटों पर अकेली चुनाव लड़ने में सक्षम है. प्रदेश के डिप्टी सीएम और जजपा प्रमुख दुष्यंत चौटाला अपनी मांग को लेकर अड़े रहे और इसी वजह से गठबंधन टूट गया. हालांकि गठबंधन टूटने से सरकार को कोई खतरा नहीं है. 90 सदस्यों वाली हरियाणा विधानसभा में बीजेपी के 41 विधायक हैं. 6 निर्दलीय और एक हरियाणा लोकहित पार्टी का बीजेपी को समर्थन हासिल है. यानी बीजेपी के पास 48 विधायक हैं, जो बहुमत के आंकड़े से पार है. ऐसे में सरकार को कोई खतरा नहीं है. अगर निर्दलीय अपना समर्थन वापिस लेते हैं तो सैनी सरकार का गिरना तय है.