Politalks.News/ModiSarkar. रूस और यूक्रेन के बीच जारी जंग (War continues between Russia and Ukraine) के बीच क्रूड ऑयल की कीमतें रिकॉर्ड ऊंचाई (Crude oil prices record high) पर पहुंच गई हैं. बीते दिन ब्रेंट क्रूड 100 डॉलर प्रति बैरल के पार पहुंच गया. ऐसे में आशंका जताई जा रही कि इसका असर भारत में भी पड़ सकता है और पेट्रोल-डीजल की कीमतों में उछाल हो सकता है. इसको लेकर सियासी चर्चाओं (Political discussion) का दौर भी शुरू हो गया है. कि, ‘केन्द्र की मोदी सरकार केवल 7 मार्च को होने वाले मतदान के अंतिम चरण का इंतजार कर रही है, इसके बाद इस चुनौती से निपटने के लिए केन्द्र सरकार की ओर से ‘महंगाई का तांडव’ शुरू होगा’. मजे की बात यह है कि 5 राज्यों के चुनाव के चलते करीब 110 दिन से पेट्रोल और डीजल के दाम नहीं बढ़ाए गए हैं. जबकि इस काल खंड में कच्चे तेल के दामों में अप्रत्याशित वृद्धि दर्ज की गई है.
…तो क्या चुनाव के बाद बढ़ेंगे दाम?
सियासी गलियारों में चर्चा है कि उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव चल रहे हैं. इन चुनावों के नतीजों का ऐलान 10 मार्च को होगा. ऐसे में अंदेशा लगाया जा रहा है कि पेट्रोल-डीजल के दाम चुनाव के नतीजों के आने के बाद तेजी से बढ़ सकते हैं. कुछ जानकार तो यहां तक कह रहे हैं कि पेट्रोलियम कंपनियां 10 मार्च का भी इंतजार नहीं करेगी, 7 मार्च को मतदान का अंतिम चरण होना है बस उसी दिन से जेब कटना शुरू हो जाएगी. इस बीच आपको याद दिला दें कि 3 नवंबर, 2021 को केंद्र सरकार द्वारा पेट्रोल-डीजल पर लगने वाली एक्साइज ड्यूटी घटाए जाने के बाद से अब तक पेट्रोल-डीजल के दाम नहीं बदले हैं. केन्द्र सरकार ने पांच राज्यों के चुनाव की तैयारी के तौर पर एक साथ दाम घटाए थे. केन्द्र सरकार के बाद सत्ताधारी पार्टी भाजपा नीत राज्यों ने एक के बाद एक वैट कम किया जिसके दबाव में गैर शासित राज्यों को भी वैट में कटौती करनी पड़ी. लगभग सभी राज्यों ने अपने यहां लगने वाले वैट में भी कटौती की थी. इस होड़ में जनता को राहत मिली थी और पेट्रोल-डीजल के रेट्स कम हो गए थे.
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पांच राज्यों के ऐलान के साथ ही 110 दिन से नहीं बढ़े हैं पेट्रोल-डीजल के भाव
आपको बता दें कि पेट्रोल और डीजल की खुदरा कीमत पिछले 110 दिन से स्थिर हैं. पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों की घोषणा से पहले ही कीमतों का बढ़ना रूक गया था और तब से ‘कथित’ तौर से हर दिन कीमत तय करने वाली पेट्रोलियम मार्केटिंग कंपनियों ने कीमत नहीं बढ़ाई है. नवंबर-दिसंबर में जब कीमतों का बढ़ना रूका था तब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत कम हो रही थी और एक समय यह कम होकर 63 डॉलर प्रति बैरल हो गई थी तो कीमत नहीं बढ़ने का कारण समझ में आ रहा था. लेकिन अभी इसकी कीमत सौ डॉलर प्रति बैरल से ज्यादा हो गई है. यूक्रेन में रूस के सेना भेजने के साथ ही मंगलवार को कच्चे तेल की कीमत 100 डॉलर प्रति बैरल हो गई. बावजूद इसके पेट्रोलियम कंपनियों ने कीमतें नहीं बढ़ाई हैं.
जब क्रूड था 73 डॉलर प्रति बैरल तो भाव था 120 पार और अब….
इससे भी बड़ी मजेदार बात यह है कि केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण अब भी यहीं ‘सच्ची झूठी’ कथा सुना रही हैं कि खुदरा मूल्य पेट्रोलियम कंपनियां तय करेंगी. अगर पेट्रोलियम कंपनियां तय करेंगी तो क्यों नहीं कीमत बढ़ा रही हैं? 63 डॉलर से बढ़ कर कच्चे तेल की कीमत 73 डॉलर हुई थी तो भारत में पेट्रोल की कीमत 120 रुपए लीटर पहुंच गई थी और अब जब आज कच्चा तेल 100 डॉलर से ऊपर है और पेट्रोलियम कंपनियां कीमत नहीं बढ़ा रही हैं? सियासी जानकारों का कहना है कि ये ‘सियासी इकॉनोमिक्स’ किसी के गले नहीं उतर रहा है.
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7 मार्च बाद आपकी जेब कटना तय !
सियासी गलियारों में चर्चा है कि क्या वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण गारंटी देती है कि 7 मार्च को पांच राज्यों में मतदान खत्म होने के बाद भी कंपनियां इसी तरह चुपचाप रहेंगी? कम से कम इतनी गारंटी तो करें कि अगर कच्चे तेल की कीमत 100 डॉलर से घटने लगती है तो कंपनियां खुदरा कीमत नहीं बढ़ाएंगी? सियासी जानकार कह रहे है कि ऐसा नहीं होगा, पिछले तीन महीने में पेट्रोलियम कंपनियों का मुनाफा जितना कम हुआ है उन सबकी भरपाई सात मार्च के बाद की जाएगी. खुद वित्त मंत्री ने कहा कि कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों से भारत की वित्तीय स्थिरता के लिए चुनौती पैदा हो रही है’. तो यह तय मानकर चलिए की विधानसभा चुनाव का नतीजा कुछ भी रहे पेट्रोल और डीजल के बढ़े दामों का असर हर जेब पर पड़ने वाला है.