सियासी चर्चा: संसद सत्र से पहले विपक्ष को ‘पैगासस’ का झुनझुना थमाना सरकार के लिए ‘सुविधाजनक’

क्या एक बार फिर बजट सत्र चढ़ेगा हंगामे की भेंट? सत्र से ठीक पहले पैगासस पर हुआ है बड़ा फैसला, शीतकालीन सत्र में किया गया था सांसदों का निलंबन, मानसून सत्र चढ़ा था पैगासस के हंगामे की भेंट, पिछला बजट सत्र कोरोना और चुनाव के चलते हुआ था प्रभावित, हंगामे के बीच नई व्यवस्था को लेकर चर्चाएं तेज, क्या हंगामे के बीच कोई चर्चा की भी रहनी चाहिए गुंजाइश, क्या हो सकती है ऐसी कोई व्यवस्था?

क्या एक बार फिर बजट सत्र चढ़ेगा हंगामे की भेंट?
क्या एक बार फिर बजट सत्र चढ़ेगा हंगामे की भेंट?

Politalks.News/BudgetSession2022. महामहिम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद (Ramnath Kovind) के अभिभाषण के साथ आज सोमवार 31 जनवरी से संसद के बजट सत्र 2022 (Budget Session-2022) का आगाज हो गया है. सियासी गलियारों में चर्चा है कि क्या एक बार फिर हंगामे की भेंट चढ़ेगा बजट सत्र? मानसून सत्र और शीतकालीन सत्र के बाद क्या अब बजट सत्र भी हंगामे की भेंट चढ़ने वाला है? ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि बजट सत्र के ठीक दो दिन पहले बीते शनिवार को अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने पैगासस जासूसी कांड (Pegasus news) को लेकर बड़ा खुलासा किया है. NYT की रिपोर्ट में कहा गया है कि पैगासस भारत सरकार (Central Govt Of India) ने खरीदा था. अब इस मु्द्दे को लेकर संसद में हंगामा होना तय माना जा रहा है. दूसरी तरफ बजट सत्र में सरकार को कमरतोड़ महंगाई, बेरोजगारी और अर्थव्यवस्था की बुरी दशा पर जवाब देना था लेकिन अब विपक्ष पैगासस जासूसी कांड पर हंगामा करता रहेगा और मोदी सरकार के लिए सुविधानजनक होगा. पिछले दो साल से ऐसा ही माहौल बना हुआ है विपक्ष हंगामा करता रहता है और सरकार मनमाने तरीके से सभी बिल पास करवा रही है.

यहां तक कि सियासी गलियारों में तो चर्चा है कि कई बार ऐसा लगता है कि केंद्र सरकार खुद ही हंगामे के हालात बनाती है और विपक्ष को कोई न कोई मुद्दा देकर उसे संसद के दोनों सदनों से बाहर रहने को मजबूर करती है. पिछले दो सालों की बात करें तो केन्द्र की मोदी सरकार हर सत्र से ठीक पहले कुछ न कुछ झुनझुना विपक्ष के हाथ में थमा देती है. याद करें पिछले शीतकालीन सत्र को तो सत्र के पहले ही दिन सरकार ने विपक्ष के एक दर्जन सांसदों को पूरे सत्र के लिए राज्यसभा से निलंबित कर दिया. सियासी जानकारों ने भी इस फैसले को पूरी तरह से गलत करार दिया था. सांसदों को संसद के मॉनसून सत्र में हंगामा करने के लिए शीतकालीन सत्र में निलंबित किया गया था. इस मसले पर पूरे सत्र में कामकाज ठप्प रहा. विपक्ष ने जमकर हो हल्ला किया. लेकिन इस बीच खास कर राज्यसभा में, जहां सरकार के पास बहुमत नहीं है वहां से सरकार ने कई बिल पास करवा लिए. उससे पहले यानी मॉनसून सत्र में पैगासस का मुद्दा छाया रहा और उस पर विपक्ष ने कामकाज ठप्प किया. अब फिर से बजट सत्र से पहले पैगासस जासूसी कांड का जिन्न बाहर आ गया है, जिसको लेकर ये तय माना जा रहा है कि संसद के इन बजट सत्र में जमकर हंगामा होगा.

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यही नहीं पिछले शीतकालीन और मानूसन सत्र से पहले भी संसद का बजट सत्र कोरोना महामारी के संकट की वजह से प्रभावित हुआ और पश्चिम बंगाल समेत पांच राज्यों में चल रहे विधानसभा चुनाव की वजह से समय से पहले स्थगित कर दिया गया. दरअसल, उस समय किसानों का आंदोलन भी चल रहा था और विपक्ष उस मसले पर भी हंगामा किए हुए था. इससे भी पहले यानी 2020 के शीतकालीन सत्र ऐन किसान आंदोलन के बीच हो रहा था और उसी दौरान राज्यसभा में विपक्ष की वोटिंग की मांग को ठुकरा कर तीनों विवादित कृषि कानूनों को जोर-जबरदस्ती पास कराया गया था. उलटे विपक्ष के सांसदों को ही सदन से निलंबित भी कर दिया गया था और सांसदों ने पूरी रात संसद परिसर में महात्मा गांधी की मूर्ति के आगे धरना दिया था. उससे पहले के दो सत्र भी कोरोना की महामारी के चलते आधे-अधूरे तरीके से हुए. माना जा रहा है कि पिछले दो साल से लगातार संसद की कार्यवाही आधे-अधूरे तरीके से हो रही है.

ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह कि NYT के पैगासस जासूसी कांड पर किए गए नए खुलासे का संसद के बजट सत्र पर क्या असर होगा? इससे विपक्ष को पेगासस पर नया मुद्दा मिल गया है. फिर विपक्ष इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री से जवाब देने की मांग करेगा, चर्चा कराना चाहेगा और संयुक्त संसदीय समिति से इसकी जांच कराने की मांग करेगा. जाहिर है कि सरकार इसके लिए तैयार नहीं होगी. सरकार के पास बचाव का एक तर्क है कि सुप्रीम कोर्ट ने कमेटी बना दी है तो अब उस कमेटी को जांच करने दिया जाए, दूसरी जांच की कोई जरूरत नहीं है.

सियासी जानकारों का कहना है कि, सबको पता है कि सुप्रीम कोर्ट की बनाई कमेटी की जांच कहां तक जाएगी? संसदीय समिति की तरह इस समिति को विशेषाधिकार नहीं होंगे और वह उतने की दस्तावेजों और सरकार के सौदों की जांच कर पाएगी, जितने की जांच कराना सरकार चाहेगी. इस बात का अंदाजा खुद विपक्ष को भी है. इसलिए उसका हंगामा जारी रहेगा. दोनों तरफ से आरोप-प्रत्यारोप होंगे और अंत नतीजा यह निकलेगा कि विपक्षी सांसद संसद भवन परिसर में आंदोलन कर रहे होंगे और सरकार सारे कामकाज आसानी से निपटा रही होगी. बजट भी बिना चर्चा के ही पास हो तो हैरानी नहीं होनी चाहिए.

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आपको बता दें, भारत की संसदीय प्रणाली को लेकर राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में अभी ऐसा सिस्टम ही विकसित नहीं हुआ है कि विपक्ष किसी मुद्दे का विरोध भी करे, प्रदर्शन भी करे और जब संसद सत्र चल रहा हो तो सार्थक चर्चा भी हो. यह ऐसी विडंबना है कि विपक्षी पार्टियां जो भी विरोध-प्रदर्शन करेंगी वह संसद सत्र के दौरान होगा. महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर संसद से बाहर कोई बड़ा प्रदर्शन होना दिखाई नहीं देता है. लेकिन जनता की गाढ़ी कमाई से चलने वाली संसद के दौरान विपक्ष को महंगाई की भी याद आती है. हालांकि महंगाई को लेकर कांग्रेस ने जयपुर जाकर जरूर एक रैली की लेकिन उसका कोई मतलब नहीं है, यह लगातार चलने वाली प्रक्रिया होनी चाहिए.

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