Politalks.News/PunjabElection. पंजाब विधानसभा चुनाव (Punjab Assembly Election 2022) के लिए आम आदमी पार्टी (Punjab Assembly Election 2022) ने भगवंत मान (Bhagwant Maan) को अपना मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित किया है. खुद पार्टी सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने इसका ऐलान करते हुए बताया कि पब्लिक वोटिंग से इसका फैसला लिया गया है. केजरीवाल ने कहा कि 21 लाख से ज्यादा पंजाब के लोगों ने पब्लिक वोटिंग में अपना मत दिया था, जिसमें से 93.3 फीसदी ने भगवंत मान का नाम लिया.
वहीं दूसरी ओर आम आदमी पार्टी के इस फैसले को लेकर सियासी गलियारों में चर्चा है कि केजरीवाल की पहली पसंद मान नहीं थे. केजरीवाल पंजाब जैसे संवेदनशील और सीमावर्ती राज्य के लिए मान को उपयुक्त नहीं मानते थे. वकेजरीवाल हमेशा भगवंत मान को एक अगंभीर नेता मानते रहे हैं. फिर भी मजबूरी में उनके नाम की घोषणा करनी पड़ी. सियासी जानकारों का कहना है कि केजरीवाल ने अंत तक नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh sidhhu), बलवीर सिंह राजेवाल और सोनू सूद (Sonu Sood) का इंतजार किया लेकिन जब नहीं बात तो आखिरकार मान के नाम पर मुहर लगानी पड़ी. इस मुश्किल से निकलने के लिए आम आदमी पार्टी ने जनता से रायशुमारी करवाई है.
‘मान न मान’ ….आखिरकार मान के नाम पर लगनी ही थी मुहर!
बता दें, भगवंत मान स्टैंडअप कॉमेडियन थे और एक हिंदी न्यूज चैनल पर भी ‘मान न मान’ नाम से उनका प्रोग्राम आता था. उसी मान न मान वाले अंदाज में अरविंद केजरीवाल को मजबूरी में भगवंत मान के नाम का ऐलान करना पड़ा. पंजाब में और देश में भी कुछ भोले लोग जरूर होंगे, जिनको लगता होगा कि जनता की मर्जी से मान को चुना गया है, लेकिन असलियत में भगवंत मान का नाम पहले तय हो गया था और मोबाइल पोल के जरिए उस पर लोगों की मुहर लगवाने का दिखावा हुआ.
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केजरीवाल का नाम चला था खबरों में
सियासी जानकारों का कहना है कि पंजाब में भगवंत मान के नाम की मजबूरी कई कारणों से थी. पहली मजबूरी तो चुनावी थी. पिछला चुनाव आम आदमी पार्टी ने बिना सीएम दावेदार पेश किए लड़ा था, जिससे यह मैसेज गया कि अरविंद केजरीवाल खुद भी सीएम बन सकते हैं. उस समय मीडिया में यह चर्चा हो रही थी कि दिल्ली जैसे अर्ध राज्य के मुख्यमंत्री के तौर पर केजरीवाल कुछ नहीं कर पा रहे हैं इसलिए वे पंजाब के मुख्यमंत्री बन कर दिखाएंगे कि वे क्या कर सकते हैं और उसके बाद प्रधानमंत्री पद के लिए उनकी दावेदारी को गंभीरता से लिया जाएगा. लेकिन इस प्रचार से आप का नुकसान हुआ. ऐसा माना जा रहा है इसलिए केजरीवाल ने सतर्कता दिखाते हुए इस बार पहले ही ऐलान किया आप की सरकार बनी तो सिख ही मुख्यमंत्री होगा. पिछली बार नुकसान कम करने के लिए पार्टी ने भगवंत मान को अघोषित दावेदार के तौर पर विधानसभा का चुनाव लड़वाया भी था लेकिन वे हार गए थे.
बड़े चेहरे भगवंत मान की बगावत का डर!
आप की दूसरी मजबूरी मान ने खुद पैदा की हुई थी. भगवंत मान किसी भी हाल में अपने नाम की घोषणा के लिए अड़े थे. बताया जा रहा है कि मान तो बगावत तक करने को तैयार थे. पार्टी नेतृत्व की मजबूरी यह है कि पिछले छह सात साल में पार्टी के लगभग सारे बड़े नेता पार्टी छोड़ कर जा चुके हैं. सुच्चा सिंह छोटेपुर से लेकर एचएस फुल्का और बैंस बंधुओं में से भी कोई पार्टी के साथ नहीं है. ऐसे में पार्टी के पास ले-देकर दिखाने के लिए एक ही नेता बचे हैं भगवंत मान. अगर ऐन चुनाव के समय वे तेवर दिखाते और प्रचार से दूर रहते तो पार्टी को मुश्किल होती.
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सिद्धू, राजेवाल और सूद से नहीं बनी बात को मान के नाम का ऐलान!
आप की तीसरी मजबूरी यह थी कि बाहर से कोई बड़ा चेहरा लाने का प्रयास कामयाब नहीं हो सका. ऐसा माना जा रहा है कि आखिरी समय तक अरविंद केजरीवाल ने नवजोत सिंह सिद्धू के कांग्रेस छोड़ कर आप में शामिल होने का इंतजार किया गया. लेकिन वे नहीं आए. वहीं किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल को लाकर सीएम का चेहरा बनाने की बात हो रही थी लेकिन उन्होंने अलग चुनाव लड़ने का फैसला किया. इसी तरह कोरोना महामारी के दौरान मसीहा बन कर उभरे फिल्म अभिनेता सोनू सूद को दिल्ली के मेंटर अभियान का ब्रांड एंबेसेडर इसलिए बनाया गया था ताकि उनको पंजाब में चेहरा बनाया जा सके, लेकिन सूद की बहन कांग्रेस के साथ चली गईं. इसके बाद पार्टी के सभी दरवाजे जब बंद हो गए तो आखिरकार पार्टी ने भगवंत मान के नाम की घोषणा कर दी.