पीएम मोदी ने कांग्रेस से छीना बड़ा चुनावी मुद्दा, अब बिहार चुनावों में बदलनी पड़ेगी रणनीति

केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में एनडीए सरकार ने खेला बड़ा राजनीतिक दांव, कांग्रेस के हाथों से फिसला अहम चुनावी मुद्दा, ऐजेंडे में बदला करना कांग्रेस और राजद दोनों के होगा लाजमी

caste census
caste census
Caste Census: केंद्रीय कैबिनेट की बुधवार को संपन्न हुई अति विशेष बैठक में जाति जनगणना को लेकर मोदी सरकार ने बड़ा फैसला लिया है. केंद्र ने निर्णय लिया है कि देश में जातिगत जनगणना करायी जाएगी. जनगणना में विभिन्न जातियों की भी गणना होगी. बिहार चुनावों से ऐन वक्त पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जाति जनगणना को मंजूरी देकर एक बड़ा राजनीतिक दांव खेला है. इससे कांग्रेस और खासकर राहुल गांधी के हाथ से उनका सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा फिसलता नजर आ रहा है. लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष एवं कांग्रेस नेता राहुल गांधी सहित विपक्ष जातिगत जनगणना की मांग को लेकर पिछले काफी समय से बीजेपी पर हमलावर थे, लेकिन अब एनडीए सरकार के इस कदम से सियासी समीकरण तेजी से बदलते हुए दिख रहे हैं. खासकर बिहार चुनाव में, जहां राजद और कांग्रेस दोनों को अब अपनी रणनीति में बदलाव करना जरूरी हो गया है.

दरअसल, जाति जनगणना होगी तो समाज में क‍िस जात‍ि के क‍ितने लोग हैं, पिछड़े कितने हैं, अति पिछड़ा वर्ग कितना है, उनके बारे में विस्तार से जानकारी मिल सकेगी. इससे आरक्षण का लाभ उन्हें द‍िया जा सकेगा. विपक्ष का कहना है कि कई राज्यों में पिछड़े वर्गों की संख्या ज्यादा है लेकिन उनकी भागीदारी उतनी नहीं है. राहुल गांधी भी अपनी हर जनसभा में कहते आ रहे हैं क‍ि उनकी सरकार बनी तो जात‍ि जनगणना कराएंगे और आरक्षण की 50 फीसदी की सीमा को पार कर जाएंगे. ऐसे में पीएम मोदी ने जातिगत जनगणना वाला दांव खेलकर विपक्ष से यह मुद्दा भी छीन लिया है.

यह भी पढ़ें: कांग्रेस ने हटाई ‘गायब’ वाली पोस्ट, बीजेपी ने ‘सिर तन से जुदा’ से की थी तुलना

चूंकि आगामी कुछ महीनों में बिहार में विधानसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में यहां एनडीए सरकार के उक्त फैसले का असर पड़ना लाजमी है. बिहार, जहां जातीय राजनीति की गहरी पकड़ है, वहां पर यह फैसला निर्णायक साबित हो सकता है.
एनडीए को पिछड़े वर्गों में बढ़त मिल सकती है, खासकर उन वोटर्स में जो अब तक कांग्रेस या क्षेत्रीय दलों के साथ रहे हैं. प्रदेश के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड भी हमेशा से जाति जनगणना की वकालत कर रही थी. ऐसे में बीजेपी और जदयू का तालमेल प्रदेश के ओबीसी और ईबीसी वोट बैंक को लुभाने में कारगर साबित हो सकता है. चूंकि राज्य की 63 फीसदी आबादी ओबीसी और अन्य प‍िछड़ा वर्ग की है.

वहीं कांग्रेस नेता राहुल गांधी ‘जाति बताओ अभियान’ के जरिए सामाजिक न्याय की राजनीति को धार देने की कोशिश कर रहे थे. अब मोदी सरकार के उक्त फैसले से उनकी यह रणनीति कमजोर होते दिख रही है. जहां कांग्रेस और राजद जातिगत जनगणना के मुद्दे को चुनावी मुद्दा बनाकर बिहार में सत्ता वापसी की राह तलाश रहे थे, अब उन्हें नए नैरेटिव और मुद्दों की तलाश करनी होगी. प्रदेश की सबसे बड़ी पार्टी राजद और कांग्रेस को भी अपनी चुनावी रणनीति बदलनी होगी, क्योंकि बीजेपी ने उनके मुख्य एजेंडे को खुद ही आगे बढ़ा दिया है. अब देखना होगा कि एक बार फिर अपने बड़े चुनावी मुद्दे को खोकर कांग्रेस एवं राजद किस तरह से बिहार विधानसभा चुनावों में एनडीए को टक्कर दे पाती है

Google search engine