Politalks.News. बात कहेंगे तो लगेगा मोदी सरकार के विरोध में कहा जा रहा है लेकिन कोरोना से बर्बाद हुए लोगों के बारे में नहीं कहेंगे तो लगेगा कलम देश के साथ न्याय नहीं कर पा रही हैं. जनता के टेक्स पर चलने वाली सरकारें कोरोना काल में भी अपने लिए ऐशो आराम के इंतजाम कर रही है. मोदी सरकार कोरोना महामारी के सबसे बडे संकट के समय में अपने लिए 1200 करोड का विशेष विमान खरीदने जा रही है, मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार ने आधुनिक सुविधा से युक्त 65 करोड का विमान खरीदा है.
कहते हुए भी दुख होता है कि इन नेताओं ने देश का क्या क्या मजाक बना रखा है. एक तरफ देश का मीडिल क्लास और गरीब तबका बर्बादी के कगार पर खडा है और दूसरी और देश के बैंक उसी जनता को लूटने की तैयारी में लगे हैं.
आम तबके ने बैंकों से कई तरह के लोन ले रखे थे, काम काज चल रहा था तो सब चुका भी रहे थे. कि अचानक एक दिन प्रधानमंत्री मोदी टीवी पर आए और लॉकडाउन की घोषणा कर दी. एक ही घोषणा से सबकुछ एकदम से बंद हो गया. पूरा देश ठहर गया, घरों में बंद हो गया. उद्योग धंधे, रोजगार, छोटे-मोटे कामकाज सब बंद हो गए.
स्वाभाविक है कि ऐसे में लोग अपने बैंकों की किश्त नहीं भर सकते थे. सरकार ने मार्च से अगस्त तक किश्तों को होल्ड करा कर जनता को राहत दे दी. अब सामने आ रहा है कि यह राहत नहीं बल्कि जनता के साथ बडा धोखा या यूं कह लिजिए लूट है.
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बैंकों ने 6 महीनों की किश्तों के ब्याज में ब्याज जोडकर लोगों को राशि जमा कराने के लिए काम शुरू कर दिया है. अब सवाल यह उठता है कि यह सरकार की राहत है या बैंकों को लूट की इजाजत? सुप्रीम कोर्ट गए लोगों ने कहा कि देश में सबकुछ बंद किसने कराया? जवाब – मोदी सरकार ने, तो लोगों के वर्तमान हालातों के लिए जिम्मेदार कौन है? जवाब है – मोदी सरकार.
सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार पर नाराजगी जताई है. दो टूक शब्दों में पूछा है कि सरकार बताए कि क्या ब्याज पर ब्याज लिया जाएगा या नहीं. कोर्ट ने यह भी कहा कि सरकार आरबीआई की आड ना ले. कोरोना आपदा प्रबंधन में अपना रूख स्पष्ट करें. कई विशेषज्ञों को कहना है कि हर बात में सुप्रीम कोर्ट को निर्णय करने पड रहे हैं. यह निर्णय तो सरकार को अपने स्तर पर लेने चाहिए. जब सरकार खुद कह रही है कि कोरोना के चलते पूरी अर्थव्यवस्था प्रभावित हो चुकी है. जब देश की जनता अपनी जिंदगी के सबसे मुसीबत के दौर से गुजर रही है.
ऐसे समय में सरकार प्रधानमंत्री के लिए 300 करोड रूपए खर्च करके सभी सुविधाओं से युक्त प्लेन खरीदा जा रहा है. तो फिर बैंकों के मामले में भी तो सरकार निर्णय कर सकती है.
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विशेषज्ञों का कहना है कि अमीरों के मामलों में भी तो सरकार दरियादिली दिखाते है. अमीरों के लाखों करोडों के कर्जों को भी तो माफ किए जाते हैं. उनके एनपीए हुए खातों को दुरूस्त करने के लिए भी नए लोन दिए जाते हैं तो फिर जिस मध्यम और गरीब वर्ग के वोट लेकर सत्ता में आते है और टेक्स लेकर खुद पर करोड़ों खर्च करने के निर्णय ले सकते हैं तो उनके लिए कोर्ट के निर्देश की जरूरत ही क्यों पड रही है.