पॉलिटॉक्स ब्यूरो. लोकसभा के एकदम बाद हरियाणा-महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव और 17 राज्यों में हुए उपचुनावों के नतीजों ने ये साबित कर दिया है कि देश की जनता केंद्र सरकार (Central Government) की नीतियों और खोखले दावों से कितनी परेशान है. यही वजह है कि इन चुनावों में देश की सबसे बड़ी पार्टी बहुमत तक को तरस गयी. हरियाणा और महाराष्ट्र के हालात तो सभी ने देखे हैं, उप चुनावों में भी भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा है. ये परिणाम जनता की आवाज और विरोध के स्वर ही तो हैं. अब विपक्ष के नेता भी इस बात को मानने लगे हैं कि निश्चित तौर पर केंद्र सरकार की नीतियों का विरोध करने में देश की जनता विपक्षी दलों से आगे निकल गयी है. जबकि विपक्ष जनता की आवाज को पहचानने और आर्थिक मंदी के जनता के मन में उमड़ रहे गुस्से को सही राजनीतिक दिशा दिखाने में असमर्थ रहा वरना परिणाम और भी चौंकानें वाले हो सकते थे.
ऐसे ही कई ओर बातें सामने आयीं दिल्ली में हुई 13 विपक्षी दलों की एक बैठक में, जिसमें जनता दल (यूनाइटेड) के पूर्व नेता शरद यादव ने कहा कि आर्थिक मंदी के कारण लोगों की नौकरियां खतरे में हैं, कृषि तबाही के कगार पर है और उद्योग धंधे चौपट हो गए हैं. ऐसे में केंद्र सरकार (Central Government) का विरोध करने में जनता आगे निकल गई और विपक्ष पीछे रह गया. उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव में जनता ने यह दिखा दिया कि वह एक विकल्प की तलाश कर रही है. लेकिन विपक्ष जनता की इस सोच को सही परिणाम में तब्दील नहीं कर पाया. उन्होंने कहा कि अगर विपक्ष पूरे आत्मविश्वास के साथ लड़ाई लड़ता तो इन चुनावों का परिणाम कुछ और होता. इस बैठक में कांग्रेस, आरजेडी, आरएलएसपी सहित 13 विपक्ष के दल शामिल हुए. सपा, बसपा, टीएमसी आदि दलों ने इस बैठक से दूरी बनाए रखी.
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आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता और विधायक सौरभ भारद्वाज ने कांग्रेस से सवाल करते हुए पूछा कि आखिर जनता के इस गुस्से को समझने में कांग्रेस जैसी पुरानी पार्टी भी असफल क्यों रही? भारद्वाज ने कहा कि बीजेपी प्रचार करने में माहिर है. केवल प्रचार के बल पर उन्होंने माहौल बनाने की कोशिश की कि जैसे बीजेपी के खिलाफ यहां कोई लड़ाई ही नहीं है और वह अपनी रणनीति में कामयाब भी रही. इससे विपक्ष का आत्मविश्वास डिग गया जिसका खामियाजा उसे भुगतना पड़ा. ऐसे माहौल में विपक्ष ने एक होकर सरकार का विरोध करने का फैसला किया आपसी फूट साफ दिखाई दी और उसके वैसे परिणाम सामने नहीं आए जैसे आने चाहिए थे.
बैठक में इस तरह की बातें कही गयी जो कहीं न कहीं सही हैं. महाराष्ट्र और हरियाणा समेत सभी उपचुनाव भाजपा ने स्थानीय नेताओं के चहरे पर नहीं बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार (Central Government) के चेहरे पर लड़े. इन राष्ट्रीय स्तर के नेताओं ने अपने भाषण भी राष्ट्रीय मुद्दों पर केंद्रित रखे जबकि प्रदेश की जनता को देश से ज्यादा अपने आसपास के मुद्दों, परेशानियों और विकास से मतलब था. यही वजह रही कि हरियाणा और महाराष्ट्र सहित अन्य राज्यों में भी भाजपा अपने पुराने प्रदर्शन को दोहरा पाने में नाकामयाब रही.
ऐसे में हरियाणा में भाजपा ने दुष्यंत चौटाला की जनता जननायक पार्टी के साथ मिलकर सरकार बना ली है लेकिन महाराष्ट्र में अपनी सहयोगी शिवसेना से ही विरोध झेल रही है. वहीं उपचुनावों में यूपी को छोड़ भाजपा किसी भी राज्य में सम्मानजनक लड़ाई तक नहीं लड़ सकी है. उत्तर प्रदेश में 11 सीटों के लिए हुए उप चुनाव में भाजपा ने 7 सीटों पर कब्जा जमाया. वहीं बिहार की पांच, राजस्थान की दो, मध्य प्रदेश की एक, पंजाब की चार और छत्तीसगढ़ की दो सीटों पर हुए उप चुनावों में भाजपा का खाता तक नहीं खुला. बिहार की इकलौती लोकसभा सीट समस्तीपुर पर एलजेपी ने बीजेपी को पराजित किया.
हालांकि पूर्वोत्तर में बीजेपी ने अपना किला बरकरार रखा. असम में भाजपा ने चार में से तीन सीटों पर कब्जा जमाया. वहीं मेघालय की शेल्ला सीट पर एनडीएस की सहयोगी पार्टी ने जीत दर्ज की.
इसके बाद भी भाजपा की केंद्र सरकार (Central Government) हरियाणा और महाराष्ट्र में हुए विधानसभा चुनावों को अपनी सफलता का प्रतीक बता रही है लेकिन सच तो ये है कि चुनाव परिणाम आने से पहले ही आलाकमान ने हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को जमकर लताड़ लगायी क्योंकि दोनों ही जनता के मन को पढ़ नहीं पाये. दरअसल, दोनों ही राज्यों में भाजपा ने लोकसभा चुनाव-2014 में मोदी लहर के बीच आसानी से चुनाव जीता और उसके बाद अगले पांच साल जनता से नाता ही तोड़ लिया. यहां तक की कई विधायक और मंत्री तो ऐसे भी रहे जो जनता के बीच केवल वोट मांगने गए और फिर पलटकर मुंह तक नहीं दिखाया. खट्टर के बारे में भी ये चर्चाएं लंबे समय से चलती आ रही हैं.
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खैर, जो भी हो, देश की जनता देश में बढ़ती जा रही आर्थिक मंदी/महंगाई और बेरोजगार की दोहरी मार को खाने के बाद होशियार हो गयी है. अब पीएम मोदी या केंद्र सरकार (Central Government) के मंत्रियों के झूठे दिखावे और ख्याली सपनों में बहने वाली नहीं. इस बात को मोदी-शाह भी भली भांति समझ गए हैं. यही वजह है कि झारखंड सहित आगामी दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए अलग रणनीति पर कार्य किया जा रहा है. झारखंड में भाजपा की सरकार है लेकिन स्थानीय पार्टियां एकजूट होकर दंगल में खड़ी हैं. वहीं दिल्ली में सीएम अरविंद केजरीवाल इस जोड़ी पर भारी पड़ते दिख रहे हैं. उधर, पश्चिम बंगाल में बंगाल की शेरनी ममता बनर्जी के तेवर लोकसभा की रैलियों में मोदी और अमित शाह दोनों ने देख ही लिए हैं.