बिहार में इन दिनों सबसे ज्यादा चर्चा में केवल एक नाम चल रहा है और वो है पप्पू यादव. राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने हाल में कांग्रेस में अपनी पार्टी का मर्जन किया लेकिन पूर्णिया का सियासी मैदान नहीं छोड़ा. महागठबंधन के तहत ये सीट कांग्रेस की जगह राजद के पास चली गयी तो पप्पू यादव ने निर्दलीय ही पूर्णिया से नामांकन भर दिया. बाहुबली छवि के पप्पू यादव ने कांग्रेस के समक्ष पूर्णिया से चुनाव लड़ने की इच्छा जताई थी लेकिन पार्टी की मनुहार के बावजूद लालू प्रसाद यादव इस सीट को कांग्रेस को देने को तैयार न हुए. ऐसे में अब यहां का मुकाबला रोचक हो चला है.
5 बार के सांसद रह चुके पप्पू यादव तीन बार पूर्णिया संसदीय क्षेत्र से सांसद रह चुके हैं. उन्होंने यहां दो बार निर्दलीय और एक बार सपा के टिकट पर जीत दर्ज की. ऐसे में पप्पू यादव का दावा कमजोर नहीं आंका जा रहा है. हालांकि वे कांग्रेस और राजद के वोट काटने का काम जरुर करेंगे जिससे जदयू प्रत्याशी की स्थिति मजबूत होते दिख रही है.
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दरअसल, बिहार में जदयू और बीजेपी के गठबंधन में पूर्णिया सीट जदयू के पक्ष में आयी है. जदयू ने यहां से मौजूदा सांसद संतोष कुमार कुशवाहा को मैदान में उतारा है. बीते लोकसभा चुनाव में कुशवाहा ने कांग्रेस के उदय सिंह को हराया था. वहीं राजद ने रुपौली से जदयू विधायक बीमा भारती को पार्टी में शामिल कराकर टिकट दे दी.
पप्पू यादव का इमोशनल ड्रामा
पूर्णिया सीट पर प्रेशर पॉलिटिक्स का दांव चलते हुए पप्पू यादव ने कहा था कि दुनिया छोड़ दूंगा, पूर्णिया नहीं छोडूंगा. राहुल गांधी और प्रियंका गांधी का विश्वास मेरे साथ है. हालांकि पूर्णिया की सीट आरजेडी के खाते में जाने के बाद से ही पप्पू यादव ने फ्रेंडली फाइट का ऐलान कर दिया था और निर्दलीय ही नामांकन दाखिल कर दिया. चीर परिचित अंदाज में पप्पू बाइक पर नामांकन दर्ज करने निकले और कांग्रेस का समर्थन बताते हुए नामांकन दाखिल किया. अब कांग्रेस ने पप्पू को नामांकन भरने पर अल्टिमेटम जारी करते हुए पर्चा वापिस लेने को कहा है. हालांकि पप्पू का पीछे न हटना तय माना जा रहा है.
इधर, नामांकन भरने के बाद पप्पू यादव ने इमोशनल कार्ड खेलते हुए अपना दावा मजबूत करने की कोशिश की. पप्पू यादव ने लालू यादव और तेजस्वी पर तंज कसते हुए कहा कि मुझमें ऐसी क्या कमी थी कि मुझे हमेशा बाहर भेजने की कोशिश की गयी. उन्होंने कहा कि कांग्रेस में विलय के दौरान मैंने पूर्णिया से चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर की थी. इसके बावजूद राजद ने यहां से उम्मीदवार उतार दिया. मेरी राजनीतिक हत्या करने की कोशिश की जा रही है. पप्पू यादव ने कहा कि सबकी एक ही आवाज है पप्पू और पूर्णिया. स्वयं को राहुल गांधी और प्रियंका गांधी का सिपाही बता रहे पप्पू यादव ने गठबंधन को मजबूत करने की बात कही है.
पांच बार के सांसद रहे हैं पप्पू यादव
पप्पू यादव भले ही पहली बार विधायक मधेपुरा से बने हों लेकिन संसद में जाने के लिए उन्होंने पूर्णिया को चुना. 1990 में पप्पू ने पहली बार मधेपुरा से निर्दलीय चुनाव लड़ा और विधायक बने. एक साल के बाद 1991 में पूर्णिया से निर्दलीय चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे. 1996 में सपा के टिकट पर चुनाव जीता और 1999 में एक बार फिर से निर्दलीय मैदान में उतरकर पूर्णिया से ही जीत दर्ज करने में कामयाब रहे.
पूर्णिया सीट पर जातीय समीकरण
पप्पू यादव किसी भी शर्त पर पूर्णिया छोड़ने के लिए तैयार नहीं है. वजह है यहां का जातीय समीकरण. पूर्णिया संसदीय क्षेत्र में 60 फीसदी हिंदू और 40 फीसदी मुस्लिम आबादी है. यहां पौने दो लाख से अधिक यादव और सवा लाख सर्वण जाति वाली आबादी है. बड़ी संख्या में एससी, एसटी और अन्य दलित मतदाता भी हैं. पिछड़ों में कोइरी वोटर भी अहम है. ऐसे में पप्पू यादव को उम्मीद है कि यहां की जनता एक बार फिर से उनका साथ देगी और उनके सिर पर जीत का सेहरा सजाएगी. पप्पू यादव ने पूर्णिया संसदीय क्षेत्र में मुकाबले को दिलचस्प तो बना दिया है. देखना यही होगा कि यहां पप्पू यादव बनाम जदयू के संतोष कुमार कुशवाहा के बीच चुनावी जंग में पलड़ा किसका भारी रहता है.