बिहार विधानसभा चुनाव की सरगर्मियों के बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ खेल हो गया. विकाशील इंसान पार्टी (VIP) के अध्यक्ष मुकेश सहनी ने ‘सुशासन बाबू’ की पार्टी में सेंध लगा दी. इसके चलते निषाद संघर्ष मोर्चा के संरक्षक और जदयू के पूर्व जिलाध्यक्ष रंजीत सहनी अपने सैकड़ों समर्थकों के साथ वीआईपी में शामिल हो गए. सहनी सहनी ने स्वयं रंजीत को पार्टी की सदस्यता दिलाई और उनका स्वागत किया. रंजीत सहनी जदयू के एक तेज तर्रार नेता हैं जो पार्टी में मुजफ्फरपुर के जिलाध्यक्ष भी रह चुके हैं. हालांकि जदयू में जाने से पहले वे मुकेश सहनी के साथ थे और सन ऑफ मल्लाह की ब्रांडिंग में अहम भूमिका निभाई थी. एक तरफ से रंजीत की घर वापसी कही जा सकती है.
यह भी पढ़ें: बिहार में पीके के ‘पोल खोल बम’ से हिली बीजेपी, मंत्री के ‘मंगल’ सितारे गर्दिश में
महागठबंधन की जीत का दावा किया
वीआईपी चीफ मुकेश सहनी ने इस साल होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन की जीत का दावा ठोका है. उन्होंने कहा कि राज्य में हमारी सरकार बनने वाली है. वहीं, घर वापसी पर रंजीत सहनी ने कहा कि मुकेश सहनी के अलावा बिहार में ऐसा कोई नेता नहीं है, जो गरीबों के अधिकार के लिए संघर्ष कर रहा हो. संघर्ष के दिनों में हम सभी साथ थे. माना जा रहा है कि रंजीत सहनी भी इस बार चुनावी मैदान में भाग्य आजमाने के मूड में हैं.
सरकार बनी तो बनेगा नया बिहार
इस मौके पर मुकेश सहनी ने कहा कि लोगों में वीआईपी का आकर्षण बढ़ रहा है. हमारा उद्देश्य समाज में बदलाव है. अगर सरकार बनी तो बिहार में बदलाव होगा, नया बिहार बनेगा. उन्होंने निषाद आरक्षण पर जोर देते हुए कहा कि अन्य राज्यों में निषादों को आरक्षण मिलता है, लेकिन बिहार में नहीं. जब हमारी सरकार होगी तो यह मांग भी पूरी हो जाएगी. रंजीत सहनी की वापसी पर सहनी ने कहा कि रंजीत पहले भी हमारे साथ थे. उनके फिर से साथ आने से पार्टी मजबूत होगी. सहनी ने ये भी कहा कि वीआईपी सभी वर्ग, सभी समाज की पार्टी है. हमारी लड़ाई गरीबों और वंचितों को उनका सम्मान दिलाना है.
इसी साल के अंत में हैं विस चुनाव
बिहार में इसी साल के अंत में अक्टूबर-नवंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं. बिहार की कुल 243 सीटों पर चुनाव होंगे. हालांकि एनडीए और महागठबंधन दोनों में सीटों का बंटवारा फिलहाल तय नहीं हो सका है. मुकेश सहनी महागठबंधन के साथ हैं लेकिन ज्यादा सीटों और डिप्टी सीएम पद की मांग के चलते फैसला फिलहाल अधरझूल में है. अब देखना होगा कि रंजीत सहनी की वापसी से नीतीश कुमार को कितना झटका लगता है. हालांकि ये तो पक्का है कि निषादों के बड़े नेता रंजीत सहनी के जाने का नुकसान तो सुशासन बाबू को उठाना ही पड़ेगा.



























