बिहार में एनडीए प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनाने जा रही है. विपक्षी महागठबंधन का पूरी तरह से सूपड़ा साफ हो गया.राजद और कांग्रेस के नेतृत्व में महागठबंधन की वही हालत हुई, जैसी महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी की हुई थी. पिछले विस चुनावों में 110 सीटों के साथ एनडीए को कड़ी टक्कर देने वाला महागठबंधन महज 35 सीटों पर सीमिट गया. राजद का ‘MY’ (मुस्लिम-यादव) समीकरण दरक गया और प्रशांत किशोर की जन सुराज की हवा निकल गई. खास बात ये भी रही कि इस बार जदयू की सीटों बढ़कर दो गुनी हो गयी. पिछले विधानसभा चुनावों में नीतीश कुमार की पार्टी को 43 सीटों पर ही विजयश्री हासिल हो पायी थी. हालांकि कम सीटें होने के बावजूद उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी दी गयी.
इस बार बीजेपी बड़े भाई की भूमिका में आ गयी है. 243 में से एनडीए को 200, जबकि बीजेपी ने 89 सीटों पर परचम लहराया है. सरकार के 29 मंत्रियों में से केवल एक को हार का सामना करना पड़ा है. जदयू को 85 और एनडीए की सहयोगी पार्टियों को 28 सीटें मिली हैं.
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पिछले चार चुनावों में हर बार नीतीश ही मुख्यमंत्री बने हैं, लेकिन जब-जब जदयू को कम सीटें मिली हैं, सरकार में भारतीय जनता पार्टी का दबदबा बढ़ा है. राजनीतिक विद्वानों का मानना है कि इस बार नीतीश को हटाकर बीजेपी अपना सीएम बना सकती है जबकि जदयू को डिप्टी सीएम का पद दिया जा सकता है. कमोबेश ऐसी स्थिति आने की संभावना कम है और नीतीश रिकॉर्ड 10वीं बार सीएम पद की शपथ ले सकते हैं.
नीतीश का सीएम बनना करीब करीब तय
हालांकि इस बार भी नीतीश की सीटें बीजेपी के मुकाबले कम है लेकिन पिछले और अभी की स्थितियों में काफी अंतर है. इस बार दोनों पार्टियों ने 101-101 सीटों पर चुनाव लड़ा था. बीजेपी को 89 और जदयू को 85 सीटें मिली. सीटों का अंतर केवल 4 सीटों का है. अगर इस समीकरण पर भी गौर किया जाए कि 200+ सीटें लानी वाली एनडीए नीतीश कुमार के बिना ही सरकार बना लें, इसकी भी संभावना गौण हैं. इसकी वजह है – बहुमत न होना. बीजेपी की 89 और सहयोगी पार्टियों की 28 सीटें, यानी 117 सीटें, जो बहुमत से 5 सीट दूर है. निर्दलीयों की 6 सीटों के सहारे सरकार बनाना आसान न होगा. कुल मिलाकर बिहार चुनाव रिजल्ट पूरी तरह से नीतीश के पक्ष में आए हैं.
कांग्रेस की सुस्ती राजद को भी ले डूबी
बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की सुस्ती ने इस बार भी महागठबंधन को हार का स्वाद चखा दिया. पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 80 से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ते हुए महज 17 सीटें निकाली पायी थी. इस बार पार्टी के खाते में केवल 6 सीटें आयी हैं. राष्ट्रीय जनता दल का प्रदर्शन काफी निराशाजनक रहा. महागठबंधन का नेतृत्व कर रही पार्टी को सिर्फ 25 सीटों पर संतोष करना पड़ा है.
कांग्रेस का चुनावी प्रचार हमेशा की तरह काफी कमजोर रहा. तेजस्वी लगभग अकेले प्रचार में लगे रहे. खड़गे, राहुल, प्रियंका की बहुत कम सभाएं हुईं. सोनिया चुनाव प्रचार से पूरी तरह से गायब रहीं. एसआईआर का मुद्दा जोरदार तरीके से उठाने के बाद राहुल गांधी अचानक गायब हो गए. वहीं नीतीश के साथ पीएम मोदी, अमित शाह जैसे बड़े नेताओं ने कांग्रेस की अनुपस्थिति का भरपूर फायदा उठाया और बिहार के 80 प्रतिशत हिस्से में निशाने पर तीर साधते हुए कमल खिला दिया.



























