पॉलिटॉक्स ब्यूरो. कांग्रेस के नाना पटोले (Nana Patole) को महाराष्ट्र विधानसभा का स्पीकर चुना गया है. बताया जा रहा है कि गठबंधन सरकार को नाना पटोले का नाम कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और वायनाड सांसद राहुल गांधी ने सुझाया. उनके भारी दवाब के चलते ही नाना पटोले का नाम स्पीकर के लिए आगे बढ़ाया गया और बाद में उन्हें नियुक्त किया गया. जबकि पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी की स्पीकर के लिए पहली पसंद प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण थे. पहले चव्हाण का नाम मंत्री पद के लिए सामने आ रहा था लेकिन अंतिम समय में उनका नाम हटाया गया. वो इसलिए ही था क्योंकि सोनिया के निर्देश पर उनका नाम स्पीकर की दौड़ में आ रहा था लेकिन राहुल गांधी आखिरी वक्त पर नाना पटोले के नाम पर अड़ गए.
वैसे देखा जाए तो कांग्रेसी नेता और सकोली विधानसभा सीट से विधायक नाना पटोले (Nana Patole) का स्वभाव और शैली कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धरमैया से ज्यादा अलग नहीं है. कर्नाटक की राजनीति में सिद्धारमैया का नाम काफी बड़ा है. वे कभी जेडीएस के सदस्य हुआ करते थे. बाद में वे कांग्रेस में शामिल हुए. जब कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार बनी तो राहुल गांधी ने ही उन्हें मुख्यमंत्री बनाया. इस बार भी जेडीएस-कांग्रेस की गठबंधन सरकार बनने के दौरान सिद्धरमैया मुख्यमंत्री बनने पर अड गए लेकिन बाद में जेडीएस के चीफ एचडी कुमारस्वामी कर्नाटक के सीएम बने. हालांकि 18 महीने के भीतर इसी साल उनकी सरकार विधायकों के सदन से इस्तीफा देने के चलते गिर गई. अंदर की खबर यही है कि ये सरकार सिद्धरमैया की वजह से ही गिरी थी क्योंकि वे अंदरूनी तौर पर सीएम कुर्सी के लिए अड़े हुए थे. लेकिन इस घटना से राहुल गांधी ने कोई सबक नहीं लिया और फिर से वही गलती दोहराने के रास्ते पर हैं.
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दरअसल नाना पटोले (Nana Patole) 1991 से कांग्रेस की राजनीति करते आ रहे हैं जबकि 90 के दशक में वे शिवसेना के सैनिक रह चुके थे. 1992 में भंडारा जिला परिषद के चुनाव में पटोले को कांग्रेस ने टिकट नहीं दिया तो इन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़कर पार्टी के प्रत्याशी मधुकर लीचड़े को हराया. कुछ दिनों में उनकी पार्टी में वापसी हो गई लेकिन 1995 विधानसभा चुनाव के दौरान पटोले ने फिर बगावत का झंडा बुलंद किया और लाखांदूर सीट से कांग्रेस प्रत्याशी प्रमिला के खिलाफ चुनाव लड़ा था. हालांकि इस चुनाव में भाजपा प्रत्याशी दयाराम ने जीत दर्ज की.
एक बार फिर इन्होंने कांग्रेस में वापसी की और अगले ही विधानसभा चुनाव में लाखांदूर विधानसभा सीट से कांग्रेस के टिकट पर जीत हासिल की. 2009 में किसानों और विदर्भ के विकास के मुद्दे पर पटोले ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया और निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर लोकसभा का चुनाव लड़ा. इस चुनाव में एनसीपी के नेता प्रफुल्ल पटेल की जीत हुई और निर्दलीय चुनाव लड़ने के बावजूद पटोले दूसरे नंबर पर रहे.
लोकसभा चुनाव के बाद नाना पटोले भाजपा में शामिल हो गए और इसी साल हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में सकोली सीट से विधायक चुने गए. उनकी लोकप्रियता को देखते हुए भाजपा ने उन्हें विधानसभा में उपनेता प्रतिपक्ष बनाया. 2014 में भाजपा ने उन्हें नागपुर की भंडारा गोंदिया सीट से लोकसभा का टिकट दिया और उन्होंने करीब डेढ़ लाख के भारी अंतर से एनसीपी प्रत्याशी प्रफुल्ल पटेल को मात दी.
नाना पटोले (Nana Patole) अपने बेबाक रवैये के वजह से हमेशा ही भाजपा के आंखों का शूल बने रहे. बीजेपी सांसद होते हुए कई बार पीएम नरेंद्र मोदी की सार्वजनिक तौर पर आलोचना की. यहां तक की नागपुर में हुए एक कार्यक्रम में उन्होंने पीएम पर अपनी बाते न सुनने का आरोप तक जड़ दिया. मामले के तूल पकड़ने के बाद पटोले ने भाजपा छोड़ एक बार फिर कांग्रेस का दामन थाम लिया और नागपुर की राजनीति में सक्रिय हो गए.
2019 में कांग्रेस के टिकट पर नाना पटोले ने नागपुर लोकसभा सीट से भाजपा के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के खिलाफ चुनाव लड़ा और चुनाव हार बैठे. हालांकि बताया जाता है कि इस चुनाव में कुछ भाजपा के नेताओं ने भी गडकरी का वोट बैंक कमजोर करने के लिए नाना का साथ दिया था. नाना की लोकप्रियता इस कदर हावी रही कि हाल में हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने उन्हें सकोली विधानसभा सीट से चुनाव लड़ाया और वे जीते भी.
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अब मुश्किल ये है कि नाना पटोले (Nana Patole) का रवैया हमेशा से अकड़पन वाला रहा है और अंदरूनी राजनीति में किसी तरह से सेंध लगाई जाती है, वो उन्हें अच्छे से पता है. वहीं महाराष्ट्र की नव नवेली सरकार एक ऐसे मोड पर खड़ी है जहां एक छोटा सा गलत कदम भी उनपर भारी पड़ सकता है. ऐसे में बात-बात में बगावत करने वाले नाना पटोले को विधानसभा का अति महत्वपूर्ण पद सौंपना किसी भी लिहाज से सुरक्षित नहीं कहा जा सकता.
नाना के अलावा, सरकार में कांग्रेस की ओर से मंत्री बने बाला साहेब थोराट और नितिन राउत भी राहुल गांधी के करीबी हैं. जबकि कांग्रेस के पिछले 6 महीनों के घटनाक्रमों को देखा जाए तो राहुल गांधी ने जिन्हें भी महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां सौंपी, पद छिनते ही उन्होंने पार्टी से बगावत कर किराना कर लिया. झारखंड के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष अजय कुमार और हरियाणा के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष अशोक तंवर इसका ताजा उदाहरण है. अशोक तंवर ने तो न केवल पार्टी छोड़ी बल्कि जेजेपी से मिलकर कांग्रेस के वोट बैंक को भी कमजोर किया. पार्टी में घटी इस तमाम घटनाओं के बाद भी नाना पटोले पर भरोसा करना कितना सही है, ये तो भविष्य के गर्भ में छिपा है लेकिन अपनी जरूरत पड़ने पर नाना पटोले क्या करेंगे और क्या कर सकते हैं…ये बताने की जरूरत शायद नहीं पड़ेगी.