Politalks.News/मध्यप्रदेश. मंथन पर मंथन और फिर महामंथन के बाद आखिरकार शिवराज सिंह चौहान के मंत्रीमंडल का विस्तार हो ही गया. तालियों की गड़गड़ाहट के बीच कांग्रेस से बीजेपी में आए ज्योतिरादित्य सिंधिया के 12 पूर्व विधायक मंत्री बने. इनमें से तीन कांग्रेस की पूर्ववर्ती कमलनाथ सरकार में भी मंत्री थे. बीजेपी के 16 विधायक मंत्री बने. मंत्रीमंडल की पूरी गणित देखें तो कांग्रेस से आए 22 में से 14 यानि आधे से भी अधिक बाजी मार ले गए. वहीं भाजपा के 107 विधायकों में से केवल 19 ही मंत्री बन पाए. अगर प्रतिशत की दृष्टि से देखें तो कांग्रेस से आए 60 प्रतिशत विधायक मंत्री बने. वहीं बीजेपी के 18 प्रतिशत विधायक ही मंत्री बने हैं. ऐसे में यह कहना बिलकुल भी गलत नही होगा कि मध्यप्रदेश बीजेपी में महाराज यानी ज्योतिरादित्य सिंधिया का पूरा रुतबा जम चुका है.
असंतुलित या मजबूरी का मंत्रीमंडल
राजनीतिक जानकार इसे पूरी तरह असंतुलित फार्मूला बता रहे हैं. वो भी तब, जब मध्यप्रदेश में 24 सीटों पर उपचुनाव होने हैं. ऐसे में बीजेपी में घमासान होना तय माना जा रहा है. मंत्रीमंडल से वरिष्ठ विधायकों को दरकिनार किया गया है. शिवराज सिंह द्वारा सुझाए गए नामों को केंद्रीय नेतृत्व ने रिजेक्ट कर दिया. वहीं ज्योतिरादित्य सिंधिया के द्वारा दिए गए सभी नामों पर मुहर लगा दी गई.
इस कारण ही शिवराज ने कहा था विष है तो पीना ही पड़ेगा
मंत्रीमंडल विस्तार से पहले मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह ने क्या गजब बात कही . मंथन से अमृत निकलता है, विष तो शिव पीते हैं. मध्यप्रदेश के सियासी खेल को जमाकर उसी में उलझी भाजपा की दिक्कतें कम होने का नाम नहीं ले रही. यहां दो सवाल खड़े हैं. अगर मंथन से अमृत के रूप में मंत्रीमंडल निकला है तो विष कौन है. या ये समझा जाए कि कहीं मंत्रीमंडल ही तो विष नहीं. जिस तरह मंथन में शिवराजसिंह पर ज्योतिरादित्य भारी पड़े हैं, उसे देखते हुए तो कहा जा सकता है कि मंत्रीमंडल में सिंधिया का दबदबा शिवराज से ज्यादा हो गया है.
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अगर ऐसा नहीं होता तो एक दिन पहले सीएम शिवराज ने ट्वीट कर अपना दर्द बयां नहीं किया होता. शिवराज ने ट्वीट में कहा था, ‘आये थे आप हमदर्द बनकर, रह गये केवल राहजन बनकर. पल-पल राहजनी की इस कदर आपने, कि आपकी यादें रह गईं दिलों में जख्म बनकर.’
क्या शेर के रूप में व्यक्त किया गया यह दर्द ही शिवराज सिंह के लिए जख्म है. राजनीतिक हलकों से जुड़े लोग इसे ज्योतिरादित्य सिंधिया से जोड़कर देख रहे हैं.
समझ लीजिए मंथन से क्या-क्या निकला
28 मंत्रियों के केबिनेट विस्तार के लिए हुए मंथन में बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने शिवराजसिंह चौहान की अधिकतर पसंद को दरकिनार कर दिया. वहीं सिंधिया द्वारा दिए गए सभी नामों को मंत्रीमंडल में जगह दे दी. मंत्रीमंडल में सिंधिया के 12 विश्वासपात्र शामिल हो गए. शिवराज सरकार के पुराने मंत्रिमंडल में भी सिंधिया खेमे के दो लोगों को पहले ही मंत्री बनाया हुआ है. ऐसे में अगर सारे कांग्रेस से बीजेपी में आए नेताओं की संख्या देखें तो शिवराज मंत्रीमंडल में 14 ऐसे मंत्री होंगे जो कांग्रेस से बीजेपी में आए हैं जबकि बीजेपी से 16 मंत्री बनाए गए. वहीं पुराने मंत्रीमंडल में बीजेपी से 3 मंत्री बनाए गए थे. इस तरह शिवराज मंत्रीमंडल में भाजपा के कुल 19 विधायक मंत्री हैं.
चुनाव नहीं जीता तो सरकार जाना तय
सिंधिया के साथ कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आए 22 में से 14 पूर्व विधायक मंत्री तो बन गए. लेकिन चुनौतियां अभी कम नहीं हुई है. इन सभी मंत्रियों को अपने विधानसभा क्षेत्र की जनता के बीच चुनाव लड़ने जाना है. विभिन्न सर्वे रिपोर्ट में इनमें से आधे से अधिक विधायकों की स्थिति उनके विधानसभा क्षेत्रों में कमजोर बताई जा रही है. वहीं क्षेत्रीय बीजेपी नेता इन विधायकों को टिकट नहीं देकर बीजेपी कार्यकर्ताओं को टिकट देने की मांग कर रहे हैं. जबकि सिंधिया से बीजेपी के समझौते में इन्हें टिकट देना तय हुआ है. अगर टिकट दिए गए और सर्वे रिपोर्ट के अनुसार नतीजा रहा यानि नए नवेले मंत्री हारे तो शिवराज सरकार का संकट में आना तय है.
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अब प्रदेश भाजपा में घमासान तय
भाजपा को अपने कार्यकर्ताओं और नेताओं को संभालना पड़ेगा. कमलनाथ सरकार को हटाने के लिए बीजेपी की ओर से सिंधिया के साथ गठजोड़ किया. सिंधिया के साथ आए 22 विधायकों के कारण कमलनाथ की सरकार गिर गई और शिवराज फिर से मुख्यमंत्री बन गए. लेकिन ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में जहां बीजेपी कार्यकर्ताओं ने इन पूर्व विधायकों के खिलाफ चुनाव लड़ा था, उनके गले से गठजोड़ नीचे नहीं उतर सका. सर्वे रिपोर्ट में सामने आया कि इन क्षेत्रों के बीजेपी कार्यकर्ताओं में भारी नाराजगी है जिसे बीजेपी के बड़े नेता शांत करने में जुटे हैं. आरएसएस के बड़े नेता भी इस नाराजगी को दूर करने के काम में जुट सकते हैं. बीजेपी और आरएसएस नेता इस गठजोड़ से भाजपा कार्यकर्ताओं में उभरे रोष को कितना शांत कर पाते हैं, यह उपचुनाव के नतीजों के समय ही पता चलेगा. लेकिन एक बात तो साफ है कि मंत्रीमंडल गठन से निकले विष को केवल शिवराज ही नहीं बीजेपी को भी पीना पड़ेगा.