पॉलिटॉक्स ब्यूरो. मोदी सरकार के लाख प्रयासों और दावों के बीच लगातार बढती महंगाई और घटते रोजगार के आंकडों ने देश की जनता के साथ-साथ अर्थशास्त्रीयों की नींद उडा दी है. दोनों ही मसलों पर भाजपा नेताओं से बयान देते नहीं बन पा रहा, वहीं कांग्रेस सहित कई विपक्षी दल अर्थव्यवस्था से जुडे इन पहलुओं पर मोदी सरकार और भाजपा की नीतियों को घेर रहे हैं. नोटबंदी और जीएसटी के नाकरात्मक प्रभावों को नकारने वाली मोदी सरकार और भाजपा के लिए एक के बाद एक उसके हाथों से खिसक रहे राज्यों के अलावा महंगाई बेराजगारी भी गहरी चिंता का विषय है.
हाल ही में जारी हुए आर्थिक आंकडे न सिर्फ चौकानें वाले हैं बल्कि मोदी सरकार को चेताने वाले भी हैं. खुदारा महंगाई साढे पांच साल के सबसे अधिक आंकडे को छू रही है तो दैनिक जरूरत की सब्जियां सहित अन्य समान 20 से 60 प्रतिशत तक महंगा ह्यो गया है. यह किसी भयावह तस्वीर से कम नहीं है, महंगाई ने आम लोगों की कमर तोडकर रख दी है.
लगातार बढ़ती मंहगाई से हालात इतने खराब हैं कि सिर्फ लोगों को ही नहीं खुद सरकार को भी समझ नहीं आ रहा है कि इससे कैसे निबटा जाए. रही सही कसर आर्थिक क्षेत्र से आए बेराजगारी के आंकडों ने पूरी कर दी. आंकडों के अनुसार बेराजगारी की दर पिछले 45 सालों के सर्वाधिक स्तर पर आ गई है. सरकार खुद एक दशक की सबसे कम वृद्धि दर से जूझ रही है. हर क्षेत्र में रोजगार के अवसरों में भारी गिरावट आई है. खुद सरकार नौकरियों के बढे अवसर उपलब्ध नहीं करा पा रही है, फिर प्राइवेट सेक्टर की बात तो छोड ही दीजिए.
अब देश के आर्थिक हालात इतने खराब होंगे तो विपक्ष कैसे चुप रह सकता है, सो मोदी सरकार पर कांग्रेस सहित सभी दल दोनों मामलों पर नाकाम रहने के लिए हमले कर रहे हैं. वायनाड सांसद और पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने महंगाई को लेकर मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों को सीधा लोगों की रसोई से जोड दिया. राहुल गांधी ने कहा कि रसाई का समान तक टूट गया, लोग क्या खाएं और क्या नहीं, दुविधा के हालात में पहुंच गए हैं. विपक्षी दलों का कहना है कि छोटा छोटा समान खरीदने के लिए भी लोगों को सोचना पड रहा है. वहीं बहुजन समाजवादी पार्टी की सुप्रीमो मायावती ने अपने जन्मदिन पर आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी बेरोजगारी और बढ़ती महंगाई को मोदी सरकार की सबसे बड़ी विफलता बताते हुए जमकर निशाना साधा.
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ऐसा भी नहीं है कि मोदी सरकार ने कोई ठोस कदम उठाने की कोशिश ही नहीं की हो, लेकिन वो कोशिशें अर्थशास्त्रीयों की नजर में नाकाफी हैं. एक के बाद राज्यों के चुनाव में सत्ता गंवाने वाली बीजेपी को फिर भी एनआरसी और सीएए से फुर्सत नहीं मिल पा रही है. एक के बाद एक बड़े-बड़े कानून संसद से पास करवाकर लागू करने के बावजूद अगर हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड में पार्टी को सत्ता के लाले पड़ गए तो ऐसे में बीजेपी को यह समझना ही पड़ेगा कि जनता की पहली और सबसे बड़ी जरूरत रोटी-कपड़ा और मकान थे और हैं. जब इन तीन चीजों की मुकम्मल व्यवस्था हर आम आदमी के पास होगी तो आपके इन कानूनों पर शायद बात उसको अच्छी लगेगी.
बिगड़ती अर्थव्यवस्था और बढ़ती बेरोजगारी के ताजा भयावह आंकड़ों के बीच अगले माह होने वाले दिल्ली विधानसभा चुनाव और उसके बाद बिहार के चुनाव सामने खडे हैं. दिल्ली में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अपने किए विकास कार्यों के अलावा महंगाई और बेराजगारी को चुनावी मुददा बनाए हुए हैं. और केजरीवाल ही क्यों किसी भी विपक्षी पार्टी के लिए बैठे बिठाए इनसे बढ़िया मुद्दे और हो भी नहीं सकते. जानकारों की मानें तो अगर समय रहते मोदी सरकार अभी भी पूरी तरह से नहीं चेती तो दिल्ली और बिहार में सत्ता की चाह एक सपना बनकर ही रह जाएगी.