पॉलिटॉक्स ब्यूरो. देश के सबसे पुराने और ज्वलंत नौकरी और प्रमोशन में आरक्षण के मुद्दे पर सियासत एक बार फिर गरमा गई है. बीते शुक्रवार सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी नौकरियों और प्रमोशन में आरक्षण पर फैसला सुनाते हुए कहा कि नौकरियों और प्रमोशन में आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है. इस पर सोमवार को सदन की कार्यवाही शुरू होते ही कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी पार्टियों ने केंद्र की मोदी सरकार पर आरक्षण खत्म करने के आरोप लगाए. वहीं संसद के बाहर राहुल गांधी ने बीजेपी और आरएसएस को आड़े हाथों लेते हुए कहा मोदी सरकार और आरएसएस आरक्षण विरोधी हैं, हम आरक्षण को कभी खत्म नहीं होने देंगे, चाहे कोई कितनी भी कोशिश कर ले. इतना नहीं बीजेपी की सहयोगी पार्टी एलजेपी, जनता दल यूनाइटेड और अपना दल ने भी सरकार से सुप्रीम कोर्ट का फैसला बदलने की मांग की है.
राहुल गांधी का बीजेपी और आरएसएस पर वार
बीजेपी और आरएसएस पर निशाना साधते हुए राहुल गांधी ने कहा कि, “भाजपा और आरएसएस की विचारधारा आरक्षण के विरोधी रही है वे नहीं चाहते कि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लोग आगे बढ़ें, विकास करें. राहुल ने कहा दरअसल, वे संवैधानिक ढांचे को तोड़ने में जुटे हुए हैं, संविधान पर हमला हो रहा है. हर संस्था को तोड़ा जा रहा है.” राहुल ने आरोप लगाते हुए कहा कि, “संसद में हमें बोलने नहीं देते हैं, ज्यूडिशरी पर दबाव डालते हैं. ये एक-एककर संस्थाओं को तोड़ रहे हैं और ये बहुत बड़ा फैसला लिया है इन्होंने. आरएसएस और बीजेपी के डीएनए में, आरक्षण इनको चुभता है और वो किसी न किसी तरह से इसको खत्म करना चाहते हैं. मैं हिंदुस्तान की जनता से कह रहा हूं, खासतौर से दलित, एससी-एसटी, ओबीसी समुदाय के लोगों से कह रहा हूं कि आरक्षण को हम कभी नहीं मिटने देंगे, चाहें मोदी जी सपना देखें, मोहन भागवत सपना देखें, हम उसको नहीं होने देंगे.”
केन्द्र सरकार की लोकसभा में सफाई
इस पर केंद्र सरकार की तरफ से रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने साफ किया कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से उनका कोई लेना देना नहीं है. राजनाथ सिंह ने लोकसभा में कहा कि यह अत्यंत संवेदनशील मुद्दा है और कांग्रेस का ऐसे मुद्दे पर राजनीति करना ठीक नहीं है. वहीं सदन में लंच आवर के बाद सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री थावर चंद गहलोत ने लोकसभा में जवाब देते हुए कहा कि केंद्र सरकार इस मामले में पक्ष नहीं है. साथ ही गहलोत ने कहा कि यह आदेश 2012 के उत्तराखंड सरकार के फैसले पर दिया गया है जब राज्य में कांग्रेस की सरकार थी. गहलोत के बयान पर कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने आपत्ति जताते हुए अपनी बात रखने की कोशिश की, लेकिन आसन से अनुमति नहीं मिलने पर वह और कांग्रेस के अन्य सदस्य सदन से वॉक आउट कर गए.
NDA के घटक दल सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से असहमत
लोक जनशक्ति पार्टी, जनता दल यूनाइटेड और अपना दल जैसे केंद्र में सत्तारूढ़ एनडीए के घटक दलों ने सदन में भले ही विपक्ष के आरोपों को खारिज किया हो लेकिन शीर्ष अदालत के फैसले से असहमति व्यक्त करते हुए सरकार से आरक्षण के विषय को संविधान की 9वीं अनुसूची में डालने की मांग की.
एलजेपी के चिराग पासवान ने कहा कि आरक्षण कोई खैरात नहीं है बल्कि यह संवैधानिक अधिकार है. इस विषय पर उच्चतम न्यायालय के फैसले से वह असहमति व्यक्त करते हैं. उन्होंने कहा कि इस मामले में सरकार को हस्तक्षेप करना चाहिए. आरक्षण से जुड़े सभी विषयों को संविधान की 9वीं अनुसूची में डाल दिया जाए ताकि इस विषय पर बहस समाप्त हो जाए. चिराग ने कहा कि विपक्ष का सरकार को दलित विरोधी बताना ठीक नहीं है और एनडीए सरकार ने एक नहीं बल्कि अनेक बार एससी, एसटी, ओबीसी वर्ग को मजबूत बनाने का काम किया है.
यह भी पढ़ें: चुनाव आयोग और ईवीएम पर उठे सवालों के बीच दिल्ली में मतगणना कल
जेडीयू के राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने कहा कि आरक्षण के मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय का जो फैसला आया है, उसको लेकर पूरा सदन एकमत है. जब पूरा सदन इस विषय पर एकमत है तब इसका राजनीतिकरण ठीक नहीं है. उन्होंने कहा कि जब एससी, एसटी अत्याचार का विषय आया था तब भी एनडीए सरकार ने मजबूत कानून लाने का काम किया था और आगे भी सरकार इस विषय का निपटारा करेगी .
नौकरियों और प्रमोशन में आरक्षण देने के लिए राज्य सरकारें बाध्य नहीं- सुप्रीम कोर्ट
गौरतलब है कि एससी-एसटी एक्ट पर फैसला सुनाते हुए शुक्रवार को उच्चतम न्यायालय ने कहा कि प्रमोशन में आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है. जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस हेमंत गुप्ता की पीठ ने कहा, ‘‘इस न्यायालय द्वारा निर्धारित कानून के मद्देनजर इसमें कोई शक नहीं है कि राज्य सरकारें आरक्षण देने के लिए बाध्य नहीं है. ऐसा कोई मूल अधिकार नहीं है जिसके तहत कोई व्यक्ति पदोन्नति में आरक्षण का दावा करे.’’
गौरतलब है कि उत्तराखंड सरकार ने राज्य में अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) को आरक्षण उपलब्ध कराये बगैर सार्वजनिक सेवाओं में सभी पदों को भरे जाने का फैसला लिया गया था. सरकार के फैसले को उत्तराखंड हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी, जिसे हाइकोर्ट ने खारिज कर दिया था. राज्य सरकार ने इसकी को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.