Politalks.News/Delhi. कहते हैं कि राजनीति में जैसा बाहर से दिख रहा होता है, ज़रूरी नहीं कि अंदर भी वैसा ही हो, यानी जो भीतर चल रहा होता है, वह अक़सर बाहर नहीं आता. लोग सोचते-देखते कुछ और रहते हैं और असल में हो कुछ और रहा होता है. कांग्रेस में राष्ट्रीय अध्यक्ष पद को लेकर चल रही कवायद के साथ भी कुछ ऐसा ही है. बाहर से भले ही लोगों का लग रहा है कि कांग्रेस इस बार किसी ग़ैर-गांधी व्यक्ति को पार्टी अध्यक्ष का पद सौंपने के प्रति गंभीर है, लेकिन हक़ीक़त में इस पद पर दोबारा राहुल गांधी यानी गांधी परिवार के ही सदस्य को बिठाने की योजना को अमलीजामा पहनाने की तैयारियां चल रही हैं और इस योजना को क्रियान्वित करने में जुटी हैं उनकी बहन प्रियंका गांधी. पिछले दिनों पार्टी के अंदर-बाहर जो भी-जैसी भी गतिविधियां हुई हैं, वे इसी योजना की कड़ी बताई जा रही हैं.
गौरतलब है कि पिछले दिनों एक ख़बर सुर्खियों में चली थी कि प्रियंका गांधी भी नहीं चाहतीं कि कांग्रेस का अध्यक्ष गांधी परिवार से हो. बाकायदा उनके हवाले से यह ख़बर प्रचारित-प्रसारित हुई थी कि वह इस बात का समर्थन करती हैं कि गांधी परिवार के बाहर के किसी व्यक्ति को कांग्रेस अध्यक्ष नियुक्त किया जाना चहिए. वहीं इससे पहले अपने पद से इस्तीफा देते हुए पिछले साल राहुल गांधी ने भी कहा था कि किसी ग़ैर-गांधी को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया जाए.
राहुल के इस्तीफे के बाद आनन-फानन में कांग्रेस वर्किंग कमेटी ने राहुल की सलाह को नकारते हुए सोनिया गांधी को पार्टी का अंतरिम अध्यक्ष बनाया था. यह कहते हुए कि जब तक नया अध्यक्ष नहीं चुन लिया जाता, तब तक उन्हें पार्टी की कमान संभालनी चाहिए. साथ ही यह संकेत भी दिया गया था कि नये अध्यक्ष के चुनाव को लेकर पार्टी गंभीरता से आगे बढ़ेगी. चूंकि राहुल गांधी ने पहले ही इस पद से इस्तीफा दे दिया था और यह भी कहा था कि किसी ग़ैर-गांधी व्यक्ति को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया जाए, तो यह कयास लगने स्वाभाविक थे कि कांग्रेस का अगला अध्यक्ष गांधी परिवार से बाहर का होगा. तभी संभावित नये अध्यक्ष के लिए कई नाम फ़िज़ाओं में तैरने भी लगे थे या तैराये जाने लगे थे.
यह भी पढ़ें: टाइम मैगजीन ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को प्रभावशाली तो माना लेकिन गहरा जख्म भी दे दिया
लेकिन हक़ीक़त यह है कि कांग्रेस की तरफ से कभी इस दिशा में गंभीरता दिखाई ही नहीं गयी. जो स्थिति राहुल के इस्तीफे के समय थी, जो सोच पार्टी की उस समय थी वह अब भी बरकरार है, और वह यह कि गांधी परिवार का नेतृत्व इस पार्टी के लिए अपरिहार्य है. अब सवाल उठता है कि फिर चंद दिनों पहले प्रियंका गांधी के हवाले से यह ख़बर कैसे सुर्खियां बनी कि प्रियंका ने अपने भाई की उस बात का समर्थन किया है कि कांग्रेस अध्यक्ष गांधी परिवार से बाहर के किसी व्यक्ति को बनाया जाए? और वह भी ठीक उस वक़्त जब कुछ ही दिनों में सोनिया गांधी के अंतरिम अध्यक्ष पद का कार्यकाल खत्म होने वाला था.
करीब साल भर पहले दिया था प्रियंका गांधी ने ‘इंडिया टुमॉरो’ किताब के लेखक को इंटरव्यू
दरअसल, यह कांग्रेस के उस गुट द्वारा प्रचारित की गयी ख़बर थी, जो गुट मौके की नज़ाकत को देखते हुए अपनी योजना पर काम कर रहा था. यानी गरम तवे पर रोटी सेंकने का प्रयास, इस गुट को पता था कि अगर अभी वैसी परिस्थितियां पैदा नहीं की गईं, जिनके कारण 2019 में लोकसभा चुनाव के बाद राहुल गांधी को इस्तीफा देना पड़ा था तो एक बार फिर अध्यक्ष पद की कमान राहुल को ही सौंप दी जाएगी, जिसकी तैयारियां पहले से चल भी रही थीं. लिहाजा, प्रियंका के उस इंटरव्यू की बात को अब जाकर मीडिया में प्रचारित कराया गया जो उन्होंने करीब साल भर पहले ‘इंडिया टुमॉरो’ क़िताब के लेखक को दी थी. यानी कांग्रेस का वह धड़ा इसके पीछे था, जो राहुल के नेतृत्व में अपने आप को ख़तरे में आता देखता है. और जो चाहता था कि सोनिया के कार्यकाल खत्म होने के समय ऐसा माहौल बन जाए कि राहुल फिर इस कुर्सी पर बैठने से इनकार कर दें और उनकी दुकान सजी रहे.
यह भी पढ़ें: कांग्रेस को ऐसी लीडरशिप चाहिए जो पार्टी की ढहती दीवार और मोदी की दहाड़ दोनों को ले संभाल
हालांकि इस साक्षात्कार के सुर्खियों में आते ही कांग्रेस के उन नेताओं ने भी अपना मोर्चा संभाल लिया जो राहुल गांधी की दोबारा ताजपोशी की योजना की तैयारियों से जुड़े रहे हैं. यह अलग बात कि प्रियंका गांधी खुलकर सामने नहीं आयीं, जो राहुल की राह आसान बनाने की मुहिम का नेतृत्व कर रही हैं. जिनकी सलाह-सुझाव और योजना के अनुरूप ही पिछले साल भर से ज्यादा समय से कांग्रेस को आगे बढ़ाया जा रहा है, जिन्होंने राहुल गांधी को न सिर्फ़ कांग्रेस में बल्कि देश की सियासत में भी स्थापित करने का ज़िम्मा अपने हाथों में लिया हुआ है. वैसे भी प्रियंका गांधी और राहुल गांधी की बहन-भाई की जोड़ी हमेशा कांग्रेस की राजनीति में चर्चा में रही है. अक़सर दोनों की एक-दूसरे के साथ ऐसी तस्वीरें सामने आती रही हैं, जिनमें भाई-बहन एक-दूसरे का हौसला बढ़ाते दिखते हैं. बीते रक्षा बंधन के मौके पर भी प्रियंका ने ट्वीट किया था कि, ‘हर सुख-दुख में साथ रहते हुए मैंने अपने भाई से प्रेम, सत्य और धैर्य का साथ सीखा है, मुझे ऐसा भाई मिलने पर गर्व है.’ उसी धैर्य को पकड़े प्रियंका राहुल की राह बनाने में जुटी हैं और उसी धैर्य से राहुल अपने समय का इंतज़ार.
सोनिया-राहुल गांधी की गैर-मौजूदगी में प्रियंका रहीं कांग्रेस की सर्वेसर्वा
हाल ही में जब अपने वार्षिक स्वास्थ्य चेकअप के लिए सोनिया गांधी पुत्र राहुल के साथ विदेश में रहीं, तब भी प्रियंका ही पार्टी का कामकाज देख रही थीं, सारे नेता उन्हीं को रिपोर्ट कर रहे थे. पार्टी के सभी प्रमुख राजनीतिक निर्णयों में वही अहम भूमिका निभा रही थीं. यह अलग बात कि ऐसी कोई औपचरिक घोषणा नहीं की गयी थी कि अंतरिम अध्यक्ष की ग़ैरमौजूदगी में पार्टी की बागडोर प्रियंका के हाथों में होगी. हालांकि सोनिया और राहुल गांधी मंगलवार सुबह अपने विदेश दौरे से लौट आए हैं. वहीं अनौपचारिक तौर पर ही सही, प्रियंका ही पार्टी की नीति-नियंता बनी हुई हैं और सारे पत्ते ऐसे चल रही हैं जिससे अंतत: जीत राहुल की हो. यानी अध्यक्ष पद पर उनकी ताजपोशी सुनिश्चित हो और वह भी बिना किसी कोलाहल के. रास्ते ऐसे बनाये जा रहे हैं कि बिना किसी विरोध के चीज़ें अंजाम तक पहुंचाई जा सकें.
इस राह में प्रियंका गांधी के ‘इंडिया टुमॉरो’ में प्रकाशित इंटरव्यू से उपजी परिस्थितियां, कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक से ऐन पहले फूटा ‘लेटर बम‘ चुनौती बन सकता था लेकिन प्रियंका ने उन चुनौतियों से अपने तरीके से निपट लिया. यहां तक कि राजस्थान प्रकरण का सुखद पटाक्षेप भी प्रियंका की ही रणनीति का परिणाम थी. बरास्ते राहुल उन्होंने यह ‘एपिसोड’ खत्म करवाकर राहुल का कद बढ़ाने की ही कोशिश की. कांग्रेस के समन्दर में ‘लेटर बम‘ से उठी अस्थायी लहरों को भी जिस तरह प्रियंका ने शांत किया, उससे राहुल गांधी की राह का एक बड़ा अवरोध हटा माना जा रहा है.
यह भी पढ़ें: राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद तो छोड़ दिया लेकिन हस्तक्षेप पूरा रखा, जो बना असंतोष का कारण
कांग्रेस के सूत्र बताते हैं कि कार्यसमिति की बैठक को किसी हंगामे से बचाने के लिए स्वयं प्रियंका गांधी ने चिट्ठी लिखने वाले कुछ वरिष्ठ नेताओं से बात की थी और उन्हें मामले को तूल न देने को कहा था, यह आश्वासन देते हुए कि जल्द ही पार्टी में सब कुछ ठीक हो जाएगा. इसके बाद सोनिया गांधी ने जो कार्यसमिति और राज्यों के प्रभारी व महासचिव घोषित किये, वह पूरी तरह राहुल की रजामंदी से प्रियंका की सलाह पर किया गया. असंतोष के स्वर आगे न उभरें, इसलिए अहमद पटेल से चर्चा करके प्रियंका ने वरिष्ठ और युवा नेताओं की मिश्रित टीम को अंतिम रूप दिया. राहुल गांधी अपने जिन लोगों को टीम में रखना चाहते थे, उनक नाम प्रियंका ने उनसे पहले ही ले लिये थे. कहने का तात्पर्य की प्रियंका गोटियां सेट कर चुकी हैं, राहुल की राह आसान बनाने के लिए.
आपको बता दें, महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की सक्रियता भी उसी का हिस्सा है ताकि आगे भी कांग्रेस राहुल के काल में लड़ती और जूझारू नज़र आये. बिहार में भी हाल ही में कांग्रेस को नई शक्ल-ओ-सूरत देने की कोशिश की गयी है, ताकि पार्टी में कुछ जान आए. इसके साथ ही अधीर रंजन को बंगाल की कमान सौंपना भी इसी ओर इशारा करता है कि प्रियंका राहुल के लिए न सिर्फ़ राह बना रही हैं बल्कि आगे बढ़ने के लिए अनुकूल माहौल और संगठन भी.
सूत्रों की मानें तो यह कन्फर्म है कि राहुल गांधी जल्द ही पार्टी अधिवेशन में पुन: कांग्रेस अध्यक्ष चुन लिये जाएंगे. विरोध के संभावित स्वर को थाम लिया गया है. सोनिया गांधी की हमेशा से यही इच्छा रही है लेकिन परिस्थितियां हर बार उनके पुत्र की राह में रोड़ा अटकाती रहीं. अब प्रियंका उन रोड़ों को हटाकर अपने भाई की रक्षा की चाक-चौबंद व्यवस्था कर रही हैं ताकि राहुल का राजनीतिक सफ़र हर बार की तरह इस बार हिचकोले न खाये. वह बस सीट पर बैठे रहें, स्टीयरिंग प्रियंका संभालती रहें. शायद यही राहुल के लिए मुफीद भी है. वैसे भी राहुल गांधी को यह अच्छे से पता है कि देशभर के नेताओं और संगठन की पेंचीदगियां प्रियंका ही बेहतर संभाल सकती हैं. ऐसे में राहुल गांधी की ताजपोशी के बाद सोनिया पूर्णत: सक्रिय राजनीति से संन्यास लेंगी और उनकी भूमिका में सक्रिय होंगी प्रियंका गांधी. यानी आने वाले दिनों में प्रियंका ही सोनिया गांधी की तरह पार्टी की सुप्रीम हाईकमान होंगी और राहुल हाईकमान.