Politalks.News/Bihar Election. जयप्रकाश नारायण आंदोलन से निकला 29 वर्ष की उम्र वाला यह युवा जब सांसद बनकर पहली बार लोकसभा में पहुंचा तो सभी राजनीतिक दलों के नेताओं की नजर उस पर थी. सामान्य परिवार से निकलकर धुरंधर राजनीतिज्ञों के समीकरण खराब करके खुद को स्थापित कर बिहार के मुख्यमंत्री पद तक पहुंचने वाले इस शख्स के ठेठ देहाती करिश्माई नेतृत्व ने हर किसी को आश्चर्य से भर दिया. इस युवा ने अकेले अपने दम पर बिहार की राजनीति से कांग्रेस को उखाड़ फैंका. जी, हम बात कर रहे हैं बिहार की राजनीति अपनी एक अलग छाप छोड़ने वाले लालू प्रसाद यादव की. वर्तमान में चारा घोटाले के आरोप में लालू प्रसाद यादव जेल में है लेकिन जेल में बैठकर भी बिहार की राजनीति पर लालू का प्रभाव साफ नजर आता है.
ठेठ देहाती अंदाज में जब लालू प्रसाद यादव संसद, विधानसभा या जनता के बीच बोलते हैं तो हंसी के फव्वारे छूटना आम बात है. उनके रहने का अंदाज ही ऐसा है कि गरीब उनमें अपनी छाया देखने लग जाता है. लालू यादव का अंदाज किसी बड़े नेता की तरह कभी नजर नहीं आया लेकिन कई बड़े नेता लालू की राजनीति में चकनाचूर हो गए. अटल बिहारी वाजपेई की सरकार में रेलमंत्री रहते हुए कुल्हड़ वाली चाय और बिहार के मुख्यमंत्री रहते हुए हेमा मालिनी के गालों जैसी बिहार की सड़कों वाले लालू यादव के बयानों के चर्चे बिहार ही नहीं देश की राजनीति में हमेशा होते हैं.
यह भी पढ़ें: 8 पुलिसकर्मियों की हत्या के साथ चीन, कोरोना और महंगाई जैसे मुद्दों को भी मूर्छित कर गया विकास दुबे
लालू प्रसाद यादव का राजनीतिक सफर
- पटना यूनिवर्सिटी के छात्र लालू प्रसाद यादव ने 1970 में स्टूडेंट यूनियन के महासचिव और फिर 1973 में अध्यक्ष बनकर राजनीति की शुरूआत की. अगले ही साल जयप्रकाश नारायण के छात्र आंदोलन में बड़ी भूमिका निभाकर जेपी आंदोलन से जुड़े और सभी बड़े नेताओं का ध्यान अपनी और खींच लिया.
- 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर छपरा लोकसभा सीट से चुनाव लड़कर मात्र 29 साल की उम्र में सबसे युवा सांसद के तौर पर लोकसभा में पहुंचे.
- 1980 में हुए लोकसभा चुनाव में तो वो हार गए लेकिन इसी साल विधानसभा का चुनाव लड़कर पहली बार बिहार विधानसभा में पहुंच गए.
- 1985 में वो एक बार फिर विधायक बने लेकिन इस समय तक वो बिहार के प्रभावशाली नेताओ की गिनती में आ गए थे.
- 1989 में लालू यादव बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बन गए. इसी साल देश में वीपी सिंह के नेतृत्व में केन्द्र में सरकार बनी थी. वीपी सिंह भारतीय जनता पार्टी के समर्थन से देश के प्रधानमंत्री बने थे और इसी साल लालू प्रसाद यादव चुनाव लड़कर एक बार फिर लोकसभा में पहुंच गए.
- 7 साल रहे बिहार के मुख्यमंत्री
साल 1990 में कांग्रेस को सत्ता से बाहर करके लालू यादव बिहार के मुख्यमंत्री बने। वो 7 साल तक मुख्यमंत्री रहे। चारा घोटाले में नाम आने के बाद उन्हें मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा। लेकिन बिहार की सत्ता की चाबी उनकी पत्नि राबड़ी देवी के नाम पर लालू यादव के हाथ में ही रही।
- रेलमंत्री बने तो रेल को घाटे से बाहर निकाल दिया
2004 में केंद्र में प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह के नेतृत्व में बनी यूपीए सरकार में लालू यादव रेल मंत्री बने। 2004 से 2009 तक रेलमंत्री के अपने कार्यकाल में लालू यादव ने वर्षों से घाटे में चल रही रेल को नुकसान से बहार निकालकर फायदे में पहुंचा दिया। इसके बाद तो लालू यादव को मैनेजमेंट गुरू का खिताब मिल गया। लालू यादव को विदेशों में मैनेजमेंट पर लेक्चर देने के लिए बुलाया गया।
एमवाई (MY) समीकरण बनाकर बिगाड़ा कांग्रेस का खेल
1990 में लालू प्रसाद यादव ने मुस्लिम और यादव जातियों को एकजुट करने का काम शुरू किया. लालू यादव के इस एमवाई समीकरण ने सभी राजनीतिक दलों के होश उड़ा दिए. यह समीकरण इतना मजबूूत था कि कोई भी पार्टी इसका तोड़ नहीं निकाल सकी. इसी समीकरण के बलबूते लालू यादव ने बिहार की राजनीति ही बदल दी और लालू प्रसाद यादव इसी समीकरण की बदौलत बिहार के मुख्यमंत्री बनने में सफल हुए.
लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार किया, वीपीसिंह की सरकार गिरी
जिस समय लालू यादव मुख्यमंत्री थे उसी समय बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण आंदोलन के तहत देशभर में राम रथ यात्रा निकाली थी. जब यह यात्रा बिहार से गुजरने वाली थी तब लालू यादव ने आडवाणी को खुली चुनौती दी थी कि राम रथ बिहार नहीं आएगा वरना यात्रा रुकवाकर आपको गिरफ्तार कर लिया जाएगा इसलिए आप वापस चले जाएं. लेकिन आडवाणी नहीं माने और अपने अनोखे निर्णय से हमेशा चर्चा में रहने वाले लालू प्रसाद यादव ने भाजपा की राम रथ यात्रा को रोकने का निर्णय कर लिया. इसके साथ ही लालू यादव ने लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार करने का एलान कर दिया.
यह भी पढ़ें: जीतन राम मांझी को मनाने में जुटी कांग्रेस, कल कर सकते हैं जदयू को समर्थन की घोषणा
उधर केंद्र में विश्वनाथ प्रतापसिंह की सरकार भाजपा के समर्थन से टिकी थी. देश के कई नेताओं ने लालू को समझाया कि वो ऐसा नहीं करें, लेकिन लालू यादव नहीं माने. फिर जैसे ही बिहार के समस्तीपुर में आडवाणी का राम रथ घुसा, उसे वहीं रोक दिया गया. राम रथ को जब्त कर लिया गया और आडवाणी को गिरफ्तार कर गेस्ट हाउस में भेज दिया गया. आडवाणी की गिरफ्तारी के साथ ही भाजपा ने वीपीसिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया और सरकार गिर गई. इस घटना के बाद लालू यादव बिहार की राजनीति से हटकर देश की राजनीति में प्रभावशाली नाम बन गए. लालू यादव इतने प्रभावशाली हो चुके थे कि उन्होंने जनता दल से अपने आपको अलग करके राष्टीय जनता दल बना लिया. अब लालू यादव बिहार के साथ-साथ देश की राजनीति में भी अपना दखल बढ़ा चुके थे.
चारा घोटाले के कारण देना पड़ा इस्तीफा
लालू प्रसाद यादव अप्रेल 1995 में बिहार के मुख्यमंत्री बने लेकिन दो साल बाद जुलाई 1997 में चारा घोटाला के गम्भीर आरोपों के कारण लालू यादव को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ गया. लालू यादव कितने प्रभावशाली रहे होंगे इस बात का अंदाजा इसी बता से लगाया जा सकता है कि उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर अपनी राजनीति की एबीससीडी नहीं जानने वाली पत्नि राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनवा दिया. इतना ही नहीं लालू प्रसाद यादव की जनता पर पकड़ के चलते साल 2000 के चुनाव में राबड़ी देवी को फिर से 5 साल के लिए मुख्यमंत्री बनवा दिया.
लालू प्रसाद यादव को जाना पड़ा जेल
1997 में सीबीआई ने लालू यादव के खिलाफ चारा घोटाला मामले में आरोप पत्र दाखिल किया. लालू यादव को जेल जाना पड़ा. कुछ महीनों में वो जमानत पर बाहर आ गए. बाद में सीबीआई की स्पेशल कोर्ट में 17 साल चले इस ऐतिहासिक मामले में आखिरकार कोर्ट ने 2013 में लालू प्रसाद यादव को पांच साल की सजा सुनाई. इस मामले के कारण लालू यादव देश के पहले ऐसे नेता बने जिन्हें लोकसभा की सदस्यता से अयोग्य ठहराया गया और लालू प्रसाद यादव को लोकसभा की सदस्यता गंवानी पड़ी.
घोटालों के आरोपों की लंबी फेहरिस्त में फंसे है लालू यादव और उनका परिवार
लालू यादव और घोटालों के मुदकमों की एक लंबी फेहरिस्त हो चुकी है. उसमें केवल लालू ही नहीं उनकी पत्नि राबड़ी देवी, बेटे तेजस्वी यादव और तेज प्रताप यादव के खिलाफ भी कई मुकदमें चल रहे हैं.
- 1996 में चारा घोटाला में मामला दर्ज हुआ उसके बाद देवघर कोषागार से धोखाधड़ी, चाइबासा कोषागार से धोखाधड़ी, दुमका कोषागार और डोरांडा कोषागार से धोखाधड़ी कर करोड़ों रूपए के घोटाले के आरोपों में मुकदमा दर्ज हुआ.
- 1998 में आय से अधिक असीमित संपत्ति मामले में भी मुकदमा दर्ज हुआ.
- 2005 में भारतीय रेलवे निविदा घोटाला में मुकदमा दर्ज हुआ.
- 2017 में डिलाइट प्रॉपर्टीज 45 करोड़ बेनामी असमान संपत्ति और कर चोरी के मामले में लालू परिवार के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ.
- एबी निर्यात बेनामी असमान संपत्ति और कर चोरी के मामले में मुकदमा दर्ज हुआ.
- इसी के साथ पटना चिड़ियाघर मिट्टी घोटाला मामले में भी मुकदमा दर्ज हुआ.
लालू यादव को अब तक 27 साल 5 महीने की सुनाई जा चुकी है सजा
विभिन्न मामलों में अब तक लालू प्रसाद यादव को 27 साल 5 महीने की सजा सुनाई जा चुकी है. कोर्ट ने देवघर कोषागार मामले में लालू को साढ़े तीन साल, चारा घोटाला के कुल छह केस लालू को पांच साल की सजा, चाइबासा कोषागार मामले में पांच साल की सजा सुनाई जा चुकी है.
तेजस्वी का दावा अक्टूबर में जेल से बाहर आ जाएंगे लालू प्रसाद यादव
बिहार में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं. लालू यादव जेल में हैं तो उनके बेटे तेजस्वी यादव ने प्रदेश में राजनीतिक मोर्चा संभाल रखा है. खास बात यह है कि लालू की पार्टी राजद काफी मजबूती के साथ चुनावी जाजम बिछा कर बैठी है. इसी बीच तेजस्वी यादव ने कार्यकर्ताओं से कहा है कि सब लोग मिल-जुल कर काम करें अक्टूबर महीने में लालू प्रसाद यादव जेल से बाहर आ जाएंगे. तेजस्वी यादव ने कार्यकर्ताओं में जोश भरते हुए कहा की लालू प्रसाद यादव के बाहर आते ही सब चीजें ठीक हो जाएंगी. बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के आवास पर बीते गुरुवार हुई आरजेडी की बैठक में सभी जिला अध्यक्ष महासचिव और प्रकोष्ठ के नेताओं को सम्बोधित करते हुए तेजस्वी ने यह बात बोली.
यह भी पढ़ें: बिहार चुनाव में 30 से 60 सीटों पर जीत का मुस्लिम समीकरण बनाने में जुटे हैं असदुद्दीन औवसी
बैठक के बाद आरजेडी नेता बिरेंद्र ने कहा कि अक्टूबर में लालू प्रसाद यादव की जमानत के लिए समय पूरा हो रहा है और पार्टी पूरी कोशिश करेगी कि लालू प्रसाद यादव जेल से बाहर आ जाएं. उनका दावा है कि लालू प्रसाद यादव के जेल से बाहर आते ही बिहार के राजनीति में तूफान आ जाएगा और आरजेडी को रोकना संभव नहीं होगा. फिलहाल राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद बहुचर्चित चारा घोटाला मामले में जेल में सजा काट रहे हैं
खैर, बिहार में चुनाव हों और लालू प्रसाद यादव के भाषण ना सुनने को मिले तो चुनाव में मजा भी नहीं आएगा. इधर जदयू में नीतिश कुमार की कमजोर होती पकड़ और तेजस्वी यादव का युवा चेहरा बिहार की राजनीति में कुछ नया होने का संकेत दे रहा है.