पॉलिटॉक्स ब्यूरो. नागरिकता संशोधन विधेयक पर अपनी पार्टी जदयू और नीतीश कुमार से अलग राय रखने वाले प्रशांत किशोर अब दिल्ली के विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल के लिए चुनावी रणनीति बनाएंगे. शनिवार सुबह ट्वीट के जरिये इसकी जानकारी देते मुख्यमंत्री केजरीवाल ने लिखा, ‘ये बताते हुए खुशी हो रही है कि I-PAC (इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी) हमारे साथ आ रही है. आपका स्वागत है’. बात दें, I-PAC देश के मशहूर पेशेवर राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर की एजेंसी है, जो औपचारिक रूप से राजनीतिक दलों का चुनाव प्रचार करती है. बताया जा रहा है कि इस डील को लेकर प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) और अरविंद केजरीवाल की बातचीत बहुत लंबे समय से चल रही थी.
गौरतलब है कि राजनीति के पेशेवर रणनीतिकार प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) का काम करने का तरीका दूसरों से काफी अलग है और उनकी चुनावी रणनीति काफी सटीक है. पिछले 6 सालों में पीके ने जिस भी पार्टी के साथ काम किया उसकी पूर्ण बहुमत से सरकार बनी. प्रशांत किशोर उस समय हाईलाइट हुए जब उन्होंने 2014 में नरेंद्र मोदी के लिए चुनाव प्रचार किया और नरेंद्र मोदी पूर्ण बहुमत के साथ देश के प्रधानमंत्री बने.
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इसके बाद पीके (Prashant Kishor) ने 2015 में नीतीश कुमार के लिए चुनाव प्रचार किया तो नीतीश कुमार महागठबंधन में बड़े बहुमत के साथ मुख्यमंत्री बने. ऐसे ही 2017 में पंजाब कांग्रेस के लिए प्रचार किया तो कैप्टन अमरिंदर सिंह लगभग दो तिहाई बहुमत के साथ मुख्यमंत्री बने. हाल ही में 2019 में आंध्र प्रदेश में जगनमोहन रेड्डी के लिए काम किया तो जबरदस्त और प्रचंड बहुमत के साथ मुख्यमंत्री बने.
वहीं प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) ने 2017 में उत्तर प्रदेश कांग्रेस के लिए भी प्रचार किया था लेकिन बाद में पीके की सहमति के विपरीत कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी से हाथ मिला लिया. जिसके बाद कांग्रेस को अपने इतिहास की सबसे करारी हार और सबसे कम सीट देखने को मिली. एक यूपी को छोड़कर किशोर ने हर जगह जिसके लिए काम किया वहां उसकी पूर्ण बहुमत से सरकार बनी. बता दें, इस समय प्रशांत किशोर पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के साथ भी काम कर रहे हैं.
अब ये देखना दिलचस्प होगा कि अपने काम के आधार पर घर घर जाकर दिल्ली की जनता से वोट मांगने वाले अरविन्द केजरीवाल प्रशांत किशोर से हाथ मिलाने के बाद अपनी जीत के अंतर को पहले जितना रख पाते हैं या नहीं या परिणाम कहीं उलट जाए और कुर्सी बचाने के लिए भी उनको मशक्कत करनी पड़ जाए, क्योंकि राजनीति में कुछ भी हो सकता है.