PoliTalks.news/MP. मध्य प्रदेश में इस समय कांग्रेस पूरी तरह से बैकफुट पर है. टीम के कई सिपाही विरोधी गुट में पहुंच चुके हैं. कुछ ऐसे भी हैं जो दबे पांव पाला बदलने की फिराक में हैं. कमलनाथ की अपने सभी सिपेसालारों पर पैनी निगाह हैं, क्योंकि वे फिर से सत्ता हासिल करने का कोई भी मौका अब गंवाना नहीं चाहते. 25 विधायकों के बीजेपी में शामिल होने के बाद अब 27 सीटों पर होने वाले विधानसभा चुनावों में जितनी अधिक सीटें खाली होंगे, कांग्रेस को उतना ही नुकसान होना तय है. ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने से उनके प्रभाव क्षेत्र की 16 सीटों पर भी कांग्रेस की पकड़ कमजोर हो चुकी है, ये सर्वविदित है. ऐसे में प्रदेश में अपना प्रभाव अधिक बढ़ाने के लिए पूर्व सीएम और वर्तमान कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष कमलनाथ अपना उतराधिकारी अपने बेटे नकुलनाथ को बनाने की सोच रहे हैं.
उप चुनाव के बाद कांग्रेस सत्ता में आए या न आए लेकिन नया प्रदेशाध्यक्ष बनना तय है. कमलनाथ खुद मुख्यमंत्री बनने के बाद भी प्रदेशाध्यक्ष का दायित्व निभा रहे थे, इसके चलते ही सिंधिया नाराज थे जिसका परिणाम सत्ता के पतन से हुआ. अब कमलनाथ अपने सुपुत्र नकुलनाथ को मजबूत बनाते हुए अपनी स्थिति मध्य प्रदेश में चल रहे सियासी घमासान में मजबूत करना चाहते हैं. नकुलनाथ छिंडवाड़ा लोकसभा सीट से मप्र में एकमात्र कांग्रेस सांसद हैं. एमपी में 10 लोकसभा सीटों में से केवल एक सीट पर कांग्रेस का कब्जा है, अन्य सभी बीजेपी के हिस्से में है. ऐसे में नकुलनाथ अपने क्षेत्र में काफी लोकप्रिय हैं.
हाल में नकुलनाथ के एक ताजा बयान ने कमलनाथ की सोच को पुख्ता किया है. नकुलनाथ ने कहा कि उपचुनाव में वे युवाओं का नेतृत्व करेंगे. कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे जीतू पटवारी और जयवर्धन सिंह उनके साथ अपने-अपने क्षेत्रों में काम करेंगे. नकुलनाथ की युवा टीम में सचिन यादव, ओमकार मरकाम और हनी बघेल भी शामिल हैं. लेकिन बयान देते समय नकुलनाथ ये बात भूल गए कि जिन अब जिन जीतू पटवारी और जयवर्धन सिंह के बारे में बात कर रहे हैं, वे दोनों ही उनसे काफी वरिष्ठ और अनुभवी हैं. युवाओं में भी दोनों की पकड़ नकुलनाथ से कहीं ज्यादा है.
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नकुल का बयान ऐसे समय में आया है, जब कांग्रेस अपने ही विधायकों को टूटने से बचाने की जद्दोजहद में लगी है. लेकिन यहां नकुलनाथ को वरिष्ठता के आधार पर जीतू पटवारी के साथ काम करने की बात कहनी चाहिए थी, न की उन्हें अपने साथ काम करने के लिए. आगामी रणनीति तय करने में भी नकुलनाथ का कोई हाथ नहीं होगा, क्योंकि प्रदेशाध्यक्ष की कुर्सी फिलहाल कमलनाथ के पास है. ऐसे में जीतू पटवारी की नाराजगी वाजिब है.
इस समय जीतू पटवारी का क्षेत्रीय राजनीति में कोई सानी नहीं. देखा जाए तो इस समय पटवारी एमपी में वे कमलनाथ के बाद नंबर दो के कांग्रेसी नेता हैं. सिंधिया के बीजेपी में जाने के बाद जीतू की टक्कर का कोई अभी नहीं है. सत्ता पलट के बाद शायद वे जीतू ही थे, जिन्होंने लगातार बीजेपी पर हमला जारी रखा है. कमलनाथ का कटाक्ष हमेशा मुख्यमंत्री शिवराज तक सीमित रहा है लेकिन जीतू ने ‘मामा’ के साथ सिंधिया और केंद्र सरकार तक पर निशाना साध दिया. जीतू के समर्थन तो उन्हें भावी मुख्यमंत्री तक बता रहे हैं लेकिन ये बात जीतू भी जानते हैं कि अभी ऐसा होना मुमकिन नहीं, लेकिन जीतू भी मप्र प्रदेशाध्यक्ष की कुर्सी का पाले हुए हैं. अनुभव को देखते हुए पटवारी को ही पीसीसी चीफ का असली वारिस माना जा रहा है.
इधर, नकुलनाथ भी प्रदेश में अपनी पैठ को मजबूत करने में लगे हैं. यहां उनका दावा इसलिए भी थोड़ा मजबूत है क्योंकि मोदी लहर में वे अपनी सीट बचाने में सफल हो पाए और इकलौती कांग्रेस सांसद हैं. लेकिन यहां उन्हें टक्कर देने के लिए युवा नेता जयवर्धन सिंह भी हैं जो पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह के सुपुत्र हैं. 2013 में पहली बार राधौगढ़ विधानसभा से रिकॉर्ड मतों से जीतने के बाद जयवर्धन 2018 में भी इसी क्षेत्र से लगातार दूसरी बार लगभग 45 हजार मतों से जीत दर्ज कर विधानसभा पहुंचे. कांग्रेस के युवा व सजग राजनेता राज्यवर्धन अपने मिलनसार व्यवहार के चलते क्षेत्र में ‘बाबा साहब’ के नाम से पॉपुलर हैं. सिंधिया के जाने के बाद गुना क्षेत्र में जयवर्धन की अच्छी पकड़ है. जूनियर दिग्गी म.प्र.की कांग्रेस सरकार में नगरीय विकास एवं आवास मंत्री भी रह चुके हैं.
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जयवर्धन की जनता और कार्यकर्ताओं में पॉपुलर्टी का आलम ये है कि दिग्गी राजा के सुपुत्र जयवर्धन सिंह के जुलाई में जन्मदिन पर यूथ कांग्रेस ने ‘भावी मुख्यमंत्री’ के पोस्टर लगा दिए थे. इस पर लिखा था ‘मध्य प्रदेश के ‘भावी मुख्यमंत्री’ जयवर्धन सिंह को जन्मदिन की ढेरों शुभकामनाएं, प्रदेश की शक्ति, कांग्रेस की शक्ति, युवा शक्ति.’ जयवर्धन की पॉपुलर्टी से नकुलनाथ भी थोड़े से घबरा गए हैं लेकिन जयवर्धन सिंह का मित्रतापूर्ण व्यवहार नकुलनाथ के राह का रोडा बनेगा, इसकी संभावना कम है. फिर भी दिग्गी राजा की दो तरफा राजनीति को कम भी नहीं आंका जा सकता.
इस संबंध में पूर्व मंत्री जयवर्धन सिंह का कहना है कि नकुलनाथ हमारे प्रदेश से इकलौते सांसद हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव में इतनी विपरीत परिस्थतियों में वे जीतकर आए हैं जिससे उन्होंने अपनी क्षमता साबित की है. हम सब लोग कांग्रेस के युवा उनके साथ खड़े हैं और उनके पीछे खड़े हैं. अगर एक बार जयवर्धन सिंह को एक तरफ हटा भी दिया जाए तो जीतू पटवारी से पार पाना नकुलनाथ और कमलनाथ दोनों के लिए ही आसान नहीं होगा.
मौजूदा समय में जीतू की छवि प्रदेश कांग्रेस में ज्योतिरादित्य सिंधिया के बराबर नहीं तो कम भी नहीं है. कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी और महासचिव प्रियंका गांधी का भी जीतू पर खास स्नेह है. ऐसे में लगता तो नहीं है कि नकुलनाथ के हाथों में कुछ आएगा. हां, अगर उपचुनावों में नकुल अपने विधानसभा क्षेत्र में जीत का परचम लहरा देते हैं तो उन्हें एआईसीसी या कांग्रेस की केंद्रीय राजनीति में बड़ा औहदा जरूर मिल सकता है, लेकिन क्षेत्रीय राजनीति में पीसीसी चीफ पर दांव जीतू और जयवर्धन के अनुभव के सामने फीका पड़ना तय है.