Madhyapradesh Politics: मध्यप्रदेश में इस साल चुनावी साल है और साल के आखिर में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं. सूबे के मौजूदा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान लंबे समय से प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी का चेहरा रहे हैं और सीएम फेस भी. लेकिन अब बीजेपी अगले विधानसभा चुनावों के लिए नया सीएम फेस तलाश कर रही है. वजह स्पष्ट है कि पिछले विधानसभा चुनावों में बीजेपी की स्पष्ट उम्मीदों के विपरीत कांग्रेस ने जनता का बहुमत हासिल कर सरकार बनाने में कामयाबी हासिल की. अगर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस को धोखा देकर बीजेपी से हाथ न मिलाया होता तो शायद बीजेपी फिर से सत्ता हथियाने में कामयाब न हो पाती.
यही वजह है कि अब बीजेपी आलाकमान शिवराज सिंह को फिर से सत्ता की कुर्सी पर बिठाने में ज्यादा इच्छुक नहीं है. कमलनाथ के नेतृत्व में एमपी में कांग्रेस की सत्ता वापसी के बाद शिवराज सिंह को केंद्र में उपाध्यक्ष बना दिया गया था लेकिन सत्ता वापसी के बाद फिर से शिवराज सिंह को सत्ता की कुर्सी पर बिठा दिया गया. लेकिन इस बार अगर बीजेपी फिर से जीतने में कामयाब हो पाती है तो इस बार मध्यप्रदेश की जनता को नया मुख्यमंत्री मिलना तय है.
करीबी सूत्रों की मानें तो बीजेपी ने एमपी के नए सीएम फेम के लिए दावेदारों की लिस्ट भी फाइनल कर ली है. सूची में तीन नाम सबसे आगे चल रहे हैं जिनमें केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय और केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया शामिल हैं. माना जा रहा है कि इन तीनों में से ही कोई एक एमपी का नया सीएम फेस बनने वाला है. मप्र के वर्तमान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को केंद्र में नई जिम्मेदारी दिए जाने की तैयारी चल रही है.
सबसे पहले बात करें नरेंद्र सिंह तोमर की तो मुरैना से लोकसभा सांसद और मोदी मंत्रिमंडल में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग, ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज मंत्री हैं. मध्यप्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर संगठनात्मक क्षमता के साथ ही प्रशासन पर मजबूत पकड़ और कुशल रणनीतिकार के रूप में जाने जाते हैं. काम को तवज्जो देने वाले तोमर पहली बार प्रदेश के मुरैना संसदीय क्षेत्र से वर्ष 2009 में लोकसभा सदस्य निर्वाचित हुए थे. वे इसके पहले प्रदेश से राज्यसभा सदस्य थे.
नरेंद्र सिंह तोमर पीएम मोदी के विश्वासपात्र हैं और शिवराज सिंह की विरासत पाने वाले दावेदारों में सबसे प्रबल उम्मीदवार हैं. गृहमंत्री अमित शाह का भी तोमर पर खास प्रभाव है. एमपी से संबंध रखने और राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय भागीदारी होने के चलते वे सीएम बनने की दौड़ में सबसे आगे चल रहे हैं.
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दूसरा नाम है बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय, जिनका नाम बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष की दौड़ में भी चल रहा है. राज्य की राजनीति में विजयवर्गीय को बीजेपी एवं हिंदूत्व का एक फायर ब्रांड नेता माना जाता है. इससे पहले उन्हें बंगाल विस चुनावों से पहले भी बड़ी जिम्मेदारी सौंप गई थी. फिलहाल उन्हें मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम की राजनीतिक फीडबैक विंग की जिम्मेदारी सौंपी गई है. इन सभी राज्यों में इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं.
हालांकि मप्र के वर्तमान प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा को उनके पद से मुक्त कर राष्ट्रीय राजनीति में बुलाया जाने के कयास चल रहे हैं. ऐसे में कैलाश विजयवर्गीय को इस पद के लिए सबसे उपयुक्त माना जा रहा है. फिर भी उनका नाम सीएम पद की रेस में बरकरार है.
तीसरा और महत्वपूर्ण नाम है केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का, जिन्हें मप्र में 15 महीनों के भीतर ही कमलनाथ सरकार गिराने और शिवराज सरकार को पुनर्स्थापित करने का इनाम मिल सकता है. उपहार स्वरूप बीजेपी ने उन्हें राज्यसभा भेजा और फिर मंत्रीमंडल में शामिल किया. सिंधिया भी अपने आपको जल्दी से जल्दी बीजेपी की आबोहवा में ढालने की जी तोड़ कोशिश कर रहे हैं. वक्त बेवक्त सिंधिया कांग्रेस और कांग्रेस विचारधारा पर सवाल उठाते नजर आते हैं. साथ ही साथ पीएम मोदी और बीजेपी का हर समय बचाव करते हुए दिखते हैं. ऐसे में सिंधिया को भी मप्र के नए सीएम की दौड़ में शामिल किया जा रहा है.
वहीं शिवराज सिंह को राष्ट्रीय राजनीति में कोई बड़ी जिम्मेदारी दी जा सकती है. करीबी सूत्र बताते हैं कि शिवराज सिंह का नाम बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद की दौड़ में चल रहा है. शिवराज सिंह बीजेपी के पुराने नेता हैं और मोदी-शाह के करीबी भी हैं. उन्हें काफी पहले राष्ट्रीय राजनीति में आने का न्यौता दिया गया था लेकिन शिवराज सिंह ने स्थानीय राजनीति को तवैज्जो देते हुए इसके लिए मना कर दिया था. जब 2018 के मप्र विधानसभा चुनावों में बीजेपी को मात मिली, तभी से शिवराज सिंह को राष्ट्रीय स्तर पर जिम्मेदारी देने की संभावना चल रही थी. विस चुनावों में हार के बाद उन्हें राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया था लेकिन 15 महीनों बाद सत्ता हासिल होते हुए उन्हें फिर से मुख्यमंत्री बना दिया गया. अब ये लगने लगा है कि शिवराज सिंह को अब राज्य की राजनीति छोड़कर राष्ट्रीय राजनीति में बुलाने का आलाकमान के फैसले को खुद शिवराज सिंह भी टाल नहीं पाएंगे.