sachin pilot
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कांग्रेस ने लंबे इंतजार के बाद कई राज्यों के प्रभारियों को बदलते हुए सचिन पायलट को महासचिव बनाया है. साथ ही साथ उन्हें हारे हुए राज्य छत्तीसगढ़ का प्रभार सौंपा है. प्रदेश के पूर्व डिप्टी सीएम को दी गयी बड़ी जिम्मेदारी को पायलट समर्थन स्वयं की बड़ी जीत बता रहे हैं. इसके विपरीत विधानसभा चुनाव में हार के बावजूद भी सुखविंदर सिंह रंधावा को राजस्थान के प्रभार पर बरकरार रखा है. वैसे तो विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद ये माना जा रहा था कि जल्द ही सचिन पायलट को बड़ी जिम्मेदारी मिल सकती है. हालांकि ऐसा हुआ भी लेकिन छत्तीसगढ़ का प्रभारी बना सचिन पायलट को राजस्थान से ही लगभग बाहर कर दिया गया. अब पायलट को छत्तीसगढ़ की कमान सौंपे जाने के पीछे कई मायने निकाले जा रहे हैं.

पिछले कुछ वर्षों में प्रदेश में सक्रिय रहे पायलट को केंद्र की राजनीति में पद देना और उनका इस जिम्मेदारी को सहर्ष स्वीकार करना एक चौंकाने वाला कदम माना जा रहा है. हालांकि यह लोकसभा चुनाव के मद्देनजर कांग्रेस की बदली हुई रणनीति का हिस्सा हो सकता है. हालांकि इस कदम के बाद आने वाले कुछ सालों तक पायलट को राजस्थान में किसी अन्य बड़ी जिम्मेदारी मिलने के आसार काफी कम हो गए हैं. खासतौर पर संभवत: पायलट को मिलने जा रहे प्रदेशाध्यक्ष या विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद अब किसी भी तरह से नहीं मिलने वाला है.

राजस्थान विधानसभा चुनाव में अपनी योजनाओं के बल पर अपनी वापसी का दम भर रहे अशोक गहलोत को उस समय झटका लगा, जब कांग्रेस महज 69 सीटों पर ही सिमट कर रह गई. इसके बाद यह साफ था कि अशोक गहलोत पर हार का ठीकरा फूटेगा लेकिन संगठन के हालिया फेरबदल से साफ है कि राजस्थान को लेकर गहलोत की काफी चली है. ऐसे में यह भी माना जा सकता है कि अशोक गहलात सत्ता हारकर भी जीत गए हैं. सचिन पायलट बनाम अशोक गहलोत के साथ विवाद काफी लंबे समय से है लेकिन पायलट का प्रदेश की राजनीति से बाहर निकाला जाना कहीं न कहीं इसमें गहलोत के शामिल होने की आशंका तो पैदा कर ही रहा है. वैसे भी गहलोत अतीत में कह चुके हैं कि पायलट राजस्थान के मुख्यमंत्री कभी नहीं बन सकते, जबकि राजस्थान की युवा जनता पायलट को मुख्यमंत्री की रेस में मानती रही है.

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वहीं विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद से ही अटकलें लग रही थीं कि अब प्रदेश की कमान पायलट को सौंप दी जाएगी. अगर ऐसा होता तो लोकप्रिय चेहरा होने की वजह से पार्टी को फायदा हो सकता था. अब लोकसभा चुनाव भी महज कुछ ही महीनों के बाद होने हैं, ऐसे में सचिन पायलट दोबारा युवा जनता को साथ लाकर कांग्रेस को कुछ वापसी जरूर करवा सकते थे. पिछली बार 2019 लोकसभा चुनाव में राजस्थान में बीजेपी ने शानदार प्रदर्शन करते हुए सभी 25 सीटों पर जीत दर्ज की थी. इस बार कांग्रेस को यदि बेहतर प्रदर्शन करना था. ऐसे में यदि पायलट को राजस्थान में ही रखकर पार्टी को जितवाने की जिम्मेदारी दी जाती तो यकीनन कांग्रेस को फायदा होता.

राजस्थान में पायलट को गुर्जर समाज का बड़ा नेता माना जाता है. राजस्थान में दौसा, अलवर, बूंदी, भरतपुर, सवाई माधोपुर, टोंक समेत कई जिलों में गुर्जर मतदाताओं की संख्या काफी अधिक है. पायलट को एक तरफा गुर्जर मतदाताओं के वोट मिलते रहे हैं, लेकिन इस विधानसभा चुनाव में ये वोट कांग्रेस को न जाकर बीजेपी की ओर गए. पिछले विधानसभा चुनाव में इन गुर्जर सीटों पर कांग्रेस को शानदार सफलता मिली थी और 29 सीटों पर कब्जा जमाया था, लेकिन इस बार पार्टी की दस सीटें कम हो गईं. राजनीतिक एक्सपर्ट्स मानते हैं कि सचिन पायलट के रहते हुए गुर्जरों का वोटबैंक कांग्रेस से खिसककर बीजेपी की ओर चला जाना बड़ा झटका है. ऐसे में उन्हें छत्तीसगढ़ भेजना कहीं कांग्रेस को आगामी लोकसभा चुनाव में भारी न पड़ जाए.

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