पाॅलिटाॅक्स न्यूज/मध्यप्रदेश. प्रदेश की सियासत में हर दिन एक नई खबर लोगों को चौंका रही है. क्या दो महीने पहले भाजपा में आने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया का मन भाजपा में भर आया है? उपचुनाव से पहले चल रहे सियासी खेल में ज्योतिरादित्य सिंधिया अलग-थलग दिखाई पड़ रहे हैं. दो महीने पहले कांग्रेस से बगावत कर गर्मजोशी से भाजपा की गोदी में बैठने वाले सिंधिया ने अपने ट्वीटर अकाउंट से बीजेपी के नाम को हटा दिया है. सिंधिया ने उसके स्थान पर ‘पब्लिक सर्वेंट’ यानि जनता का नौकर लिखा है. सिंधिया ने अपने ट्वीटर अकाउंट से बीजेपी का नाम ठीक उसी अंदाज में हटाया है जैसे कांग्रेस छोड़ने से पहले कांग्रेस शब्द हटाया था.
ट्वीटर पर सिंधिया के बीजेपी नेता से अचानक पब्लिक सर्वेंट बन जाने के बाद मध्यप्रदेश की सियासत अचानक गरमा गई है और सियासी चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया है. सवाल उठने शुरू हो गए हैं कि आखिरकार दो ही महीने में ऐसा क्या हुआ जो सिंधिया को अपने ट्वीटर अकाउंट से बीजेपी शब्द ही हटाना पड़ गया. क्या सिंधिया को बीेजपी में वो तवज्जो नहीं मिल रही जो कांग्रेस में मिलती थी या फिर 24 विधानसभा सीटों से पहले बीजेपी में चल रही राजनीतिक उथल पथल से सिंधिया आहत हो चुके हैं?
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क्या वाकई मध्यप्रदेश के भाजपा नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया को उतनी अहमियत नहीं दे रहे हैं, जितनी वो सोचकर आए थे, या फिर सिंधिया का बीजेपी पर दबाव बनाने का यह कोई सियासी स्टंट है. बीते कुछ दिनों के राजनीतिक घटनाक्रम इस बात की ओर ईशारा कर रहे हैं कि मध्य प्रदेश की भाजपा में सबकुछ सही नहीं चल रहा है और इसी कारण सिंधिया ने मौके की नजाकत को भांपते हुए उपचुनाव से पहले एक बड़ा झटका बीजेपी को दिया है. इसके साथ ही ज्योतिरादित्य सिंधिया ने ट्वीटर अकाउंट से बीजेपी को हटाकर यह भी साबित कर दिया है कि उनके खून में स्वाभिमान पहले की तरह ही अभी भी हिलोरें ले रहा है.
भाजपाईयों के गले नहीं उतर रहे हैं सिंधिया
दिलचस्प पहलू यह है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया भले ही लाव लश्कर के साथ भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए हों, लेकिन क्षेत्र के पुराने भाजपाई अभी भी उन्हें अपनाने के लिए तैयार नहीं है. इसका नजारा ग्वालियर में देखने मिला जहां मोदी सरकार-2.0 का एक साल पूरा होने के विज्ञापन से सिंधिया की तस्वीरें नदारद हैं. हालांकि, उनके समर्थकों का इस पर अपना तर्क है. वहीं, कांग्रेस का आईटी सेल इसे जमकर वायरल कर रहा है. वह लिख रहा है, बीजेपी ने सिंधिया को पहले देश से प्रदेश का नेता बना दिया और अब उनके ही गृह नगर में उनकी तस्वीर तक गायब कर दी है.
दरअसल, हाल ही में सिंधिया का गढ़ माने जाने वाले ग्वालियर चंबल क्षेत्र के भाजपा नेताओं ने एक पोस्टर जारी किया. मोदी सरकार के लगातार दूसरे कार्यकाल का पहला वर्ष पूर्ण होने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की फोटो लगे इस पोस्टर पर इस क्षेत्र के तमाम बड़े नेताओं के फोटो नाम के साथ लगे थे, लेकिन अगर किसी का फोटो नहीं लगा था तो वो थे ज्योतिरादित्य सिंधिया. जिनके दम पर भाजपाईयों ने कांग्रेस की सरकार को गिराकर शिवराजसिंह को मुख्यमंत्री बनाया. सिंधिया के प्रभाव वाले क्षेत्र में जगह-जगह लगाए गए इन पोस्टर्स से सिंधिया समर्थक तो आहत हुए ही निश्चित तौर पर सिंधिया को भी बड़ा धक्का लगा होगा. फलतः जैसे 5 दिन पहले बीजेपी के पोस्टर से सिंधिया गायब थे, ठीक वैसे ही सिंधिया के ट्वीटर अकांउट से बीजेपी का नाम गायब हो गया.
इसके चलते उपचुनाव से पहले राजनीतिक घमासान तेज हो गया. हालांकि, इसको लेकर बीजेपी की तरफ से अभी किसी भी तरह की प्रतिक्रिया नहीं आई है. खास बात यह है कि जब सिंधिया ने कांग्रेस को छोड़ा था तो उस समय भी उन्होंने ट्विटर अकाउंट से कांग्रेस शब्द को हटा दिया था. तो क्या सिंधिया उसी स्तर का कदम उठाने जा रहे हैं या फिर इस बहाने बीजेपी को किसी तरह की चेतावनी का संकेत दे रहे हैं, सवाल और भी बहुत खड़े हो रहे हैं.
कहां हैं सिंधिया और आगे कहां होंगे सिंधिया
लापता सिंधिया के ये पोस्टर बेशक सियासत का हिस्सा हैं लेकिन सवाल जायज भी है कि वाकई बीजेपी में अब कहां हैं सिंधिया और एमपी की 24 सीटों के उपचुनाव हो जाने के बाद कहां होंगे सिंधिया? 24 में से ग्वालियर चंबल की 16 सीटें जिताने की नैतिक जिम्मेदारी सिंधिया के कंधों पर है जिसमें से 14 सीटें तो सीधे तौर पर सिंधिया समर्थक पूर्व विधायकों से जुड़ी हैं, बाकी मध्य, मालवा, बुंदेलखंड की पांच सीटें अलग.
चुनाव के पहले चुनौती ये कि इनमें से कितने पूर्व विधायकों को सिंधिया मंत्री पद की शपथ दिलवा पाते हैं. फिर उन्हें चुनाव मैदान तक पहुंचाने की चुनौती अलग है. उम्मीदवार बनाए गए तो इनमें से 80 फीसद को जिताना भी उन्हीं की जिम्मेदारी बनती है. सिंधिया के लिए बड़ा इम्तिहान बीजेपी के साथ जनता को ये बताना भी है कि वो शिवराज के मुकाबले के जननेता हैं. भीड़ उनके चेहरे पर भी जुटती है. क्या सिंधिया के ये इम्तिहान चुनाव के बाद भी खत्म हो पाएंगे?
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भाजपा नेताओं की ओर से सिंधिया मुक्त पोस्टरों के लगने के बाद कांग्रेस के नेता चुटकी लेने से नहीं चूक रहे हैं. कांग्रेस के नेता अब मजे लेकर पूछ रहे हैं ग्वालियर के युवराज और भाजपा के वरिष्ठ नेता कहां हैं? पोस्टरों में उन्हें जगह क्यूं नहीं मिल पाई? क्या भाजपा सिंधिया को इस क्षेत्र का नेता भी नहीं मान रही? हालांकि भाजपा की ओर से अपने बचाव में कहा गया है कि यह पोस्टर भाजपा ने अधिकारिक रूप से जारी नहीं किए गए हैं. चलो किसी ने व्यक्तिगत भी लगवाए लेकिन यह तो तय हो ही गया ना कि सिंधिया का बीजेपी में आना वहां के लोकल नेताओं को पच नहीं रहा. कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता स्वदेश शर्मा का कहना है जो इज्जत सिंधिया को कांग्रेस में मिलती थी वो भाजपा में नहीं है, बल्कि सिंधिया को प्रदेश तक में बीजेपी के 14-15 वें नेता के तौर पर जगह मिली है.
छह मंत्री सहित 22 विधायकों ने छोड़ी थी कांग्रेस
बीते मार्च माह में ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ जिन 22 विधायकों ने कांग्रेस छोड़ी थी, उनमें छह कमलनाथ मंत्रिमंडल में मंत्री थे. भाजपा की सरकार के गठन के बाद शिवराज सिंह चौहान के मंत्रिमंडल में छह मंत्री सिंधिया समर्थक रखने की कवायद के कारण भाजपा के आतंरिक समीकरण गड़बड़ा रहे हैं. सबसे ज्यादा खींचतान बुंदेलखंड और ग्वालियर -चंबल में चल रही है. बुंदेलखंड क्षेत्र से भाजपा के दो बड़े चेहरे गोपाल भार्गव एवं भूपेन्द्र सिंह हैं. दोनों ही सागर जिले की विधानसभा सीटों से चुनकर आते हैं.
सिंधिया समर्थक गोविंद राजपूत भी सागर जिले के ही हैं और सिंधिया उन्हें मंत्री बनवाना चाहते हैं. वहीं शिवराज सिंह चौहान अपने समर्थक भूपेन्द्र सिंह को मंत्रिमंडल में लेना चाहते हैं. उधर बीजेपी का केन्द्रीय नेतृत्व गोपाल भार्गव की अनदेखी नहीं करना चाहता. वहीं कमलनाथ सरकार को गिराए जाने की रणनीति में भूपेन्द्र सिंह की भूमिका को भी कोई नकार नहीं पा रहा है. मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता जेपी धनोपिया का मानना है कि भाजपा में स्थिति बगावत की है, इस कारण मंत्रिमंडल के गठन को टाला जा रहा है.
राजनीति कयासों पर चलती है. लिहाजा इनकार नहीं किया जा सकता कि सिंधिया समर्थकों की वजह से बीजेपी में अगर बगावत बढ़ती है, तो बागी फिर मैदान में आएंगे और ये बागी चुनाव जीत गए तो तय है कि बीजेपी से हाथ भी मिलाएंगे. उस सूरत में सिंधिया क्या अपना रुतबा कायम रख पाएंगे. सवाल ये भी है कि बीजेपी वक्त देखकर दूल्हा किसी को भी बनाए. दामाद नहीं बनाती. चैधरी राकेश सिंह, प्रेमचंद गुड्डू , रामलखन सिंह, हरिवल्लभ शुक्ला, फूल सिंह बरैया, बालेंदू शुक्ला, लक्ष्मण सिंह…लंबी फेहरिस्त हैं ऐसे नामों की जो दूल्हा बनकर गए थे और बाराती बनकर कांग्रेस में लौट आए. तो 24 सीटों के उपचुनाव पर टिकी सिंधिया की सियासत क्या उनका ही सियासी भविष्य तय कर देगी और सवाल ये भी कि क्या अग्निपथ पर चल पड़े हैं सिंधिया?
प्रदेश भाजपा को नहीं उपचुनाव की ज्यादा चिंता
दरअसल, इस वक्त प्रदेश बीजेपी एक तरह से चिंतामुक्त है. उसे पता है कि उपचुनाव जिताने की उससे ज्यादा चिंता ज्योतिरादित्य सिंधिया को है. आलम ये है कि बीजेपी जानती है कि यदि सिंधिया बहुमत के आंकड़े के आगे भी निकलवा देते हैं और उसके बाद भी यदि दस सीटों पर उम्मीदवार हार जाते हैं तो भी सिंधिया वैसे ताकतवर नहीं रह जाएंगे, जैसे अभी खुद को वे और उनके समर्थक प्रोजेक्ट कर रहे हैं. यानी बीजेपी के इस वक्त दोनों हाथों में लड्डू हैं. वो बखूबी ये जानती है कि कांग्रेस छोड़ने के बाद सिंधिया के रास्ते उसी लड़की की तरह बंद हो गए हैं, जो प्रेमी के साथ घर से लड़-झगड़ कर भाग आती है. हां, यदि ये चुनाव सिंधिया अपने जलवे से जिता लाते हैं, तब जरूर ग्वालियर चंबल की सियासत नई करवट लेगी. तब नरेंद्र सिंह तोमर, प्रभात झा, जयभान सिंह पवैया जैसे नेताओं को भी न चाहते हुए सिंधिया के लिए बाहें भी फैलानी होंगी और उनके निर्णयों के साथ सहमति भी रखनी होगी.
सिंधिया के भाजपा में आने के शुरू हुए साइड इफेक्ट, बालेंदु शुक्ल आए कांग्रेस के साथ
ग्वालियर उप चुनाव से पहले अंचल में भाजपा को बालेन्दु शुक्ल के कांग्रेस में जाने से खासा झटका लगा है, क्योंकि उनके सहारे अभी कई लोग कांग्रेस में आ सकते हैं. बालेन्दु राजनीति में भले ही पुराना चेहरा क्यों न हो, लेकिन उनकी पकड़ मजबूत है, भाजपा भले ही यह कहे कि बालेन्दु के जाने से कोई खास प्रभाव नहीं पड़ेगा, लेकिन सिंधिया के साथ जिन लोगों ने कांग्रेस से फिलहाल दूरी बना रखी है उनका मन जरूर प्रभावित हो सकता है. बालेन्दु शुक्ल बैंक में नौकरी करते थे, लेकिन माधवराव सिंधिया ने वर्ष 1980 में उनकी नौकरी छुड़वा दी ओर राजनीति मेें लाकर गिर्द विधानसभा से चुनाव लड़वा कर भोपाल विधानसभा भिजवाया था. शुक्ल को माधवराव का बाल सखा माना जाता था,क्योंकि दोनो ही एक साथ पढ़े थे, यही कारण है कि माधवराव सिंधिया उनको खासा महत्व देते थे.
बालेन्दु शुक्ला v/s ज्योतिरादित्य सिंधिया
वर्ष 2001 में माधवराव सिंधिया के निधन के बाद बालेन्दु की महल से दूरी होने लगी, क्योंकि ज्योतिरादित्य सिंधिया ने उनको महत्व देना कम कर दिया था. कुछ दिनो बाद तो शुक्ल के लिए महल के दरवाजे ही बंद कर दिए गए थे. काफी समय तक शुक्ल घर बैठे रहे, लेकिन अंचल की राजनीति ज्योतिरादित्य सिंधिया के हिसाब से संचालित होती थी जिसके कारण जब वर्ष 2008 में शुक्ल का टिकट कटा तो उन्होंने बसपा से चुनाव लड़ा था, चुनाव में हार मिली ओर उसके बाद उन्होंने भाजपा का दामन थाम लिया था.
बालेन्दु शुक्ल में ज्योतिरादित्य सिंधिया द्वारा अपमानित किए जाने के कारण कांग्रेस छोड़ी थी, लेकिन अब जब सिंधिया ही भाजपा में आ गए तो बालेन्दु को लगने लगा कि सिंधिया के रहते उनको भाजपा में भी महत्व नहीं दिया जाएगा तो तत्काल उन्होंने अपना मन बदलकर शुक्रवार को कांग्रेस का दामन थाम लिया. बता दें, ब्राह्मण वर्ग में खासा दखल रखने वाले शुक्ल के कांग्रेस में आने से भाजपा को खासा नुकसान हो सकता है. साथ ही सिंधिया के साथ जो भी कांग्रेसी है उनमें से अधिकांश बालेन्दु के संपर्क में रहे है. कांग्रेस के पास अंचल में फिलहाल ब्राह्मण वर्ग का नेतृत्व खल रहा था जिसको कुछ हद तक बालेन्दु भरने का काम कर सकते है.
विधानसभा उपचुनाव के लिए जहां एक तरफ प्रदेशभर में सियासत जारी है. वहीं दूसरी तरफ भाजपा भी सक्रिय नजर आ रही है. भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बिष्णु दत्त शर्मा और प्रदेश संगठन महामंत्री सुहास भगत ने आगामी विधानसभा उपचुनाव के लिए विधानसभा प्रभारियों की घोषणा देर रात कर दी है. बताया जा रहा है की 24 विधानसभा प्रभारियों की घोषणा में भी सिंधिया को महत्व नहीं दिया गया है. भाजपा द्वारा घोषित किए गए विधानसभा चुनाव प्रभारियों की घोषणा के ठीक एक दिन बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने टिवटर अकाउंट से बीजेपी का नाम हटा दिया, यह इस बात को इंगित भी करता है. सिंधिया के इस कदम को नए राजनीतिक समीकरणों की आहट और सिंधिया की नाराजगी के रूप में भी देखा जा रहा है.
बता दे,न पाॅलिटाॅक्स न्यूज ने सबसे पहले कहा था कि ज्योतिरादित्य सिंधिया बीजेपी में जा तो रहे हैं लेकिन जिस तरह का मान-सम्मान, प्यार-दुलार सिंधिया को गांधी परिवार औऱ कांग्रेस से मिला है वो बीजेपी में कभी मिल नहीं सकता. बीजेपी की राजनीति में उनकी हर बात पूरी नहीं हो पाएगी, कांग्रेस में वो जिस दमखम से राजनीति करने की स्थिति में थे, बीजेपी में ऐसा संभव नहीं हो सकेगा. सिंधिया द्वारा आज कांग्रेस की तरह ही बीजेपी का नाम अपने ट्वीटर एकाउंट से हटाने से पॉलिटॉक्स की इस बात पर मुहर लगती नजर आ रही है. और हम फिर कहते हैं, कोई ताज्जुब नहीं आने वाले समय में ‘सुबह का भूला शाम को घर वापस आ गया’, वाली कहावत चरितार्थ हो जाए.