पॉलिटॉक्स ब्यूरो. राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट के बीच की अदावत किसी से छुपी नहीं है. विधानसभा चुनाव के पहले और बाद मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर दोनों के बीच चली खींचतान आज तक किसी न किसी मुद्दे पर सार्वजनिक हो ही जाती है. दोनों के बीच की इस खिंचतान को लेकर कांग्रेस आलाकमान भी बहुत चिंतित है. सूत्रों की मानें तो नाराज कांग्रेस आलाकमान ने प्रदेश में सत्ता और संगठन के बीच तालमेल बिठाने के लिए एक कोऑर्डिनेशन कमेटी (Coordination Committee) गठित करने का फैसला लिया है. नवम्बर के दूसरे सप्ताह तक एक 21 सदस्यीय इस कोऑर्डिनेशन कमेटी का गठन कर दिया जाएगा. जिसके बाद सत्ता और संगठन से जुड़े सारे फैसले यह कमेटी ही करेगी.
प्रदेश सरकार के दस माह के कार्यकाल के दौरान कई मौकों और कई मुद्दों पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट के बीच का विवाद सार्वजनिक रूप से देखा गया है. ऐसे में सत्ता और संगठन के आमने-सामने होने, सरकार के मंत्रियों में समन्वय नहीं होने और पार्टी के विधायकों द्वारा अपनी ही सरकार के खिलाफ सार्वजनिक रूप से बयानबाजी करने को लेकर कांग्रेस आलाकमान ने गहरी नाराजगी व्यक्त की है और इसीलिए आलाकमान ने विवादों से निपटने के लिए इस कोआर्डिनेशन कमेटी (Coordination Committee) बनाने का फैसला लिया है.
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पार्टी सूत्रों की मानें तो 15 नवम्बर से पहले कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की अनुमति से प्रदेश में इस कोऑर्डिनेशन कमेटी का गठन कर दिया जाएगा. जिसके बाद सत्ता और संगठन से जुड़े सारे फैसले यह कमेटी ही करेगी. जिनमें मंत्रिमंडल विस्तार, प्रदेश में होने वाली राजनीतिक नियुक्तियां, प्रदेश कांग्रेस कमेटी में पदाधिकारियों की नियुक्ति और सरकार से जुड़े सभी महत्वपूर्ण फैसले अब से यह कोऑर्डिनेशन कमेटी (Coordination Committee) ही करेगी. इस कमेटी की माह में एक बार बैठक होगी. पार्टी आलाकमान ने मंत्रियों को निर्देश दिए हैं कि वे जिलों के दौरे पर जाते समय स्थानीय कार्यकर्ताओं के साथ संवाद अवश्य करें और जहां तक सम्भव हो जनसुनवाई भी जिला कांग्रेस कमेटियों के कार्यालयों में ही करें.
आलाकमान के निर्देश पर गठित होने वाली इस कोऑर्डिनेशन कमेटी में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट, प्रदेश प्रभारी राष्ट्रीय महासचिव अविनाश पांडे, सचिव विवेक बंसल, तरूण कुमार, काजी निजामुद्दीन, पूर्व केंद्रीय मंत्री भंवर जितेंद्र सिंह, कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य रघुवीर मीणा और चिकित्सा मंत्री डॉ. रघु शर्मा सहित 21 वरिष्ठ नेताओं को शामिल किया जाएगा.
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अब चूंकि सत्ता और संगठन से जुड़े सभी महत्वपूर्ण फैसले इस कोऑर्डिनेशन कमेटी के माध्यम से ही लिए जाने हैं, ऐसे में अब पहला विवाद इस कमेटी में शामिल होने वाले नेताओं को लेकर ही होने की पूरी संभावना है. गहलोत और पायलट अब अपने-अपने विश्वस्तों को इसमें शामिल कराने के प्रयास में जुट गए हैं. मुख्यमंत्री गहलोत चाहते हैँ कि कृषिमंत्री लालचंद कटारिया, मुख्य सचेतक महेश जोशी, स्वायत्त शासन मंत्री शांति धारीवाल को इस कमेटी में शामिल किया जाए. वहीं, सचिन पायलट अपने विश्वस्त सरकार में सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्री मास्टर भंवरलाल मेघवाल, खाघ मंत्री रमेश मीणा और परिवहन मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास को कोऑर्डिनेशन कमेटी (Coordination Committee) का सदस्य बनवाना चाहते हैं. इस तरह कमेटी में जिसके चाहने वाले ज्यादा संख्या में होंगे उसकी बात में वजन ज्यादा रहेगा.
गौरतलब है कि हाल ही में प्रदेश में होने वाले स्थानीय निकाय चूनावों में लिए गए हाईब्रिड फार्मूले के निर्णय को लेकर गहलोत और पायलट के बीच की अदावत एक बार फिर से खुलकर सामने आ गई थी. इस फॉर्मूले के तहत बिना पार्षद का चुनाव लड़े ही कोई भी बाहरी व्यक्ति महापौर व सभापति बन सकता था, जिसका सचिन पायलट समर्थक मंत्रियों व विधायकों ने खुलकर सार्वजनिक रूप से विरोध किया था. यह विवाद पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी तक पहुंचा था और आलाकमान ने पायलट की बात को तवज्जो देते हुए निर्देश दिए थे जिसके बाद गहलोत सरकार को अपना निर्णय बदलना पड़ा था.
ऐसे में सत्ता और संगठन के बीच समन्वय स्थापित करने के लिए गठित की जाने वाली यह कोऑर्डिनेशन कमेटी (Coordination Committee) कितनी कारगर साबित होगी ये तो आने वाले समय में पता चलेगा लेकिन इस कमेटी में शामिल किए जाने वाले नेताओं को लेकर होने वाले सम्भावित विवाद से बचने के लिए आलाकमान के आगे क्या निर्देश होंगे यह देखना काफी दिलचस्प होगा.