Politalks.News/Rajasthan. राजस्थान का सियासी संग्राम कदम दर कदम ऐसे आगे बढ़ रहा है जैसे कोई सांप बढ़ता है लहराता हुआ, कई लकीरें बनाता हुआ. कोई पहले से ही इस बात को समझने की कोशिश भी करे कि अगली लकीरें क्या बनेंगी, तो नहीं कर सकता है. राजस्थान की राजनीति कि भविष्य की लकीरें भी कुछ ऐसी ही हो चली हैं, जहां एक और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच का सियासी घमासान अपने चरम पर है तो वहीं दो बार राजस्थान की मुख्यमंत्री रहीं वसुंधरा राजे की सियासी खामोशी ने सबको हिलाकर रख दिया है. जो प्रदेश भाजपा में होने वाले कांग्रेस से भी बड़े सम्भावित घमासान की ओर इशारा करता है.
पार्टी फोरम पर लगातार हो रही अनदेखी, हनुमान बेनीवाल के खुलेआम आरोप लगाने के बाद भी पार्टी की अप्रत्याशित चुप्पी और अब हाल ही में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया द्वारा घोषित कार्यकारिणी में वसुंधरा राजे खेमे को दरकिनार करने के बाद राजस्थान भाजपा में बवंडर मचना शुरू हो गया है. कई सवाल खड़े हो गए, क्या कार्यकारिणी को लेकर वसुंधरा राजे से कोई राय नहीं की गई, या फिर क्या वसुंधरा राजे को पूरी तरह इग्नोर कर दिया गया.
जो भी है, यह भाजपा का अपना आंतरिक मामला है. लेकिन भाजपा के खेमे से खबर आ रही है कि भाजपा में कांग्रेस से भी बड़े सियासी घमासान की शुरुआत होने जा रही है.
भगवान में गहरी आस्था रखने वाली पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सावन मास की पूजा के बाद मंगलवार को ही दिल्ली पहुंच गईं. सूत्रों की मानें तो वसुंधरा राजे ने बुधवार काे दिल्ली में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात कर अपनी नाराजगी जाहिर कर दी है और अभी अगले तीन दिन तक कुछ और बड़े नेताओं से मुलाकात कर जयपुर लौटेंगी. इसके बाद अपने समर्थक गुट के नेताओं से बात करके अपना आगामी रणनीति के तहत अपना निर्णय लेंगी. फिलहाल, मैडम राजे दिल्ली में किससे क्या बात करेंगी ये तो कहा नहीं जा सकता है लेकिन यह बात तो साफ है कि अगर वसुंधरा राजे इन सब बातों से नाराज हैं तो बीजेपी को मनाना बहुत भारी पड़ जाएगा.
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कांग्रेस में सारी उठापटक ही आत्म सम्मान की लड़ाई को लेकर चल रही है. पायलट खेमे के बयानों से पता चलता है कि अशोक गहलोत ने किस तरह से पायलट की अनदेखी की. जिससे पायलट से जुड़े लोग आहत हुए. कहीं ऐसा ही तो भाजपा में नहीं होने जा रहा है? यहां भी वसुंधरा राजे के आत्म सम्मान को तो ठेस नहीं पहुंच रही. अगर ऐसा हुआ तो यह भाजपा को बहुत भारी पड़ सकता है. सचिन पायलट तो कांग्रेस में राज्य स्तर पर ज्यादा से ज्यादा प्रदेश अध्यक्ष और उपमुख्यमंत्री जैसे बड़े पद पर रहे हैं लेकिन वसुंधरा राजे तो प्रदेश अध्यक्ष के साथ दो बार मुख्यमंत्री भी रह चुकी हैं और आज भी प्रदेश के कार्यकर्ताओं पर मैडम की पकड़ बाकी अन्य सभी नेताओं से कई गुना ज्यादा है.
यहां यह भी नहीं भूलना चाहिए कि वसुंधरा राजे सिंधिया उस खानदान से ताल्लुक रखती हैं, जिसमें आत्मसम्मान के लिए ही मैडम के भाई माधवराव सिंधिया ने मध्यप्रदेश में अपनी मां की बसाई हुई बीजेपी को छोड़कर कांग्रेस जॉइन कर ली थी. उसके बाद अभी हाल ही में वसुंधरा राजे के भतीजे ज्योतिरादित्य सिंधिया के आत्मसम्मान को ठेस पहुुंची तो मध्य प्रदेश में सिंधिया ने क्या किया, यह भाजपा से ज्यादा कौन गहराई से समझ सकता है. तो भईया मैडम वसुंधरा राजे भी तो उसी खानदान से हैं, जो आन-बान-शान के साथ जीने के आदी हैं.
ऐसा भी नहीं है कि मैडम राजे का पार्टी में क्या रुतबा है इसका आभास पार्टी के अन्य नेताओं को नहीं है, इतनी जल्दी राजस्थान भाजपा के लोग इस बात को नहीं भूल सकते हैं कि वसुंधरा राजे ने नरेन्द्र मोदी और अमित शाह से हरी झंडी मिलने के बाद भी गजेंद्रसिंह शेखावत को राजस्थान प्रदेश भाजपा का अध्यक्ष नहीं बनने दिया था और कितने दिनों तक अपने विधायको के साथ मैडम ने दिल्ली में डेरा डाल दिया था.
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वैसे तो सवाल अभी बहुत सारे बाकी हैं, जिनका समय आने पर ही जवाब मिलेगा. लेकिन एक बात तो साफ है कि राजस्थान में पिछले 22 सालों से एक के बाद एक मुख्यमंत्री बन रहे अशोक गहलोत और वसुंधरा राजे की टयूनिंग भी कोई कमजोर नजर नहीं आ रही है. इस जोेड़ी को नंबर वन नही तो नंबर टू भी नहीं कह सकते. खुल्लम खुल्ला बात कि जाए तो अगर दोनों एक साथ बैठ गए तो भाजपा के कई बड़े चाणक्यों की नींदे उड़ जाएंगी. बहराल, मैडम वसुंधरा राजे के एक्टिव होने के उनके गुट के नेताओं और कार्यकर्ताओं में जबरदस्त उत्साह है.