पॉलिटॉक्स न्यूज़/राजस्थान. प्रदेश की गहलोत सरकार ने घोषणा की है कि 20 अप्रैल से राज्य में मॉडिफाइड लॉकडाउन लागू किया जाएगा. जिसके तहत लॉकडाउन में कुछ औद्योगिक इकाइयों को शुरू करने सहित कुछ अन्य प्रकार की छूट दी जाएगी. लेकिन क्या वास्तविक मायने में हमारा प्रदेश इस स्थिति में आ गया है क्या कि हम जारी लॉकडाउन में छूट दे सकें? आज के हालातों की बात करें तो टोंक में इतने सख्त कर्फ्यू के बावजूद समुदाय विशेष के लोगों का इकट्ठा होना और मना करने पर पुलिसकर्मियों पर हमला करना, हमें क्या बताता है? वहीं धारा 144 और सख्त लॉक डाउन के बाद भी समुदाय विशेष के लोगों का शुक्रवार को जयपुर के खो नागोरियान इलाके की आयशा मस्जिद में सामूहिक रूप से नमाज पढ़ने के लिए इकट्ठा होना, किस और इंगित करता है? वहीं रामगंज में जारी महाकर्फ्यू के बाद भी कुछ लोग वहां से निकल कर मुहाना मंडी पहुंचे, यही नहीं एक प्रिंसिपल महोदय तो रामगंज से निकल कर कई जिलों की सीमाबन्दी को तोड़कर बाड़मेर तक पहुंच गया और वहां जाकर पॉजिटिव निकला, यह घटना क्या इशारा देती है?
चलो सारे उदाहरण छोड़ते हैं एक मोटी बुद्धि की बात करते हैं, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि आज प्रदेश ही नहीं बल्कि देशभर में कोरोना से बिगड़े हालातों के लिए सबसे ज्यादा अगर कोई जिम्मेदार है तो वो हैं दिल्ली मरकज से लौटे तब्लीगी जमाती. अब जबकि यह भी इन लोगों को पता चल गया है कि कोरोना क्या है और यह कितना खतरनाक इनके खुद के लिए हो सकता है, उसके बावजूद भी ये लोग आगे से सरकार के पास या अस्पताल नहीं पहुंच रहे हैं. अभी भी छिपते-छिपाते एक स्थान से दूसरे स्थान आ जा रहे हैं और न जाने कितने लोगों को संक्रमण बांट रहे हैं. यह तो पता नहीं कि यह सब ये लोग जानबूझ कर कर रहे हैं या नादान बने हुए हैं या इन्हें खुद की या अपने परिवार की जान-माल की कोई फिक्र नहीं है. लेकिन जिस तरह से कई जगहों से कोरोना वॉरियर्स पर हमले और अन्य प्रकार के दुस्साहस की घटनाएं सामने आ रही हैं उससे तो ये तीनों कारण ही सही लगते हैं.
पॉलिटॉक्स का यह मानना है कि सरकार को समझना चाहिए कि लॉकडाउन में छूट देने की शायद अभी कोई जरूरत नहीं है. लोग भूखे नहीं मर रहे हैं और जिनकी ऐसी स्थिति है उनके लिए सरकार ने पर्याप्त से ज्यादा अच्छी व्यवस्था कर रखी है. फिर प्रदेश में मरीजों की बढ़ती संख्या किसी बुरे सपने जैसी फीलिंग दे रही है, क्योंकि अगर यह सपना सच होता है तो प्रदेश फिर से दूसरी स्टेज में पहुंच जाएगा और संक्रमण का खतरा भी और बढ़ जाएगा. जानकारों और कुछ विषय विशेषज्ञों की राय से तो लगता है अभी कुछ दिन और सरकार को प्रभावी लॉकडाउन जारी रखना चाहिए. खासतौर पर जयपुर जैसे शहरों में अभी अधिक छूट की जरूरत नहीं अन्यथा फिर से संक्रमण का खतरा बढ़ जाएगा और इस बार ऐसा हुआ तो इस खतरे को टालना नामुमकिन हो जाएगा. प्रदेश में अभी इतनी सख्ती के बावजूद एक वर्ग विशेष के लोगों द्वारा इतना सब किया जा रहा है जिससे ये लोग सबसे ज्यादा कोरोना के कैरियर बन रहे हैं, ऐसे में लॉकडाउन में छूट “कोड में खाज” का काम कर सकता है.
वहीं प्रदेश की संवेदनशील सरकार को इस ओर भी ध्यान देना चाहिए कि एक वर्ग विशेष द्वारा कोरोना वॉरियर्स पर हमला होना, इन वॉरियर्स का मनोबल तो तोड़ ही रहा है साथ ही साथ यह समाज को दो वर्गों में भी बांट रहा है. इसलिए सरकार के प्रयास होने चाहिए कि किसी भी तरह चाहे वर्ग विशेष के ठेकेदारों से इस वर्ग के लोगों की समझाइश होनी चाहिए ताकि डॉक्टर्स और पुलिस पर हो रहे हमलों को खत्म किया जा सके, साथ ही वर्ग विशेष के सहयोग से प्रदेश से कारोना को भी खत्म किया जा सके.
टोंक में पुलिसकर्मियों पर हुई हमले की घटना वाकई बहुत ज्यादा निंदनीय है. गश्ती दल पर टोंक में हमला कर तीन पुलिस वालों को घायल कर दिया गया, क्या यह लोग कभी समझेंगे नहीं आखिर एक मछली पूरे तालाब को गंदा कर देती है? यह कहावत आज के इस घटनाक्रम से चरितार्थ हो रही है केवल एक आदमी दिल्ली स्थित निजामुद्दीन से संक्रमित होकर अपने ही लोगों को संक्रमित करता रहा. तो यह क्या आपके और हमारे घर का दुश्मन नहीं है? इसी एक आदमी की वजह से पूरे टोंक में लोगों के आपस मिलने-जुलने के कारण अब तक 93 लोग संक्रमित हो चुके हैं और आगे पता नहीं कितने आएंगे, जिनमें महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग भी इसका शिकार बने हैं, तो क्या यह एक आदमी समाज का दुश्मन नहीं है? तो फिर क्यों हम इसकी तरफदारी कर रहे हैं? और समाज विशेष तरफदारी करते हुए इसकी हिफाजत कर रहा है ?
सबसे बड़ी जलालत की बात तो यह है कि जिन लोगों की जान बचाने का प्रयास सरकार कर रही है वह लोग ही सरकार का सहयोग नहीं कर रहे हैं. टोंक में एक ही क्षेत्र में वर्ग विशेष के 43 से ज्यादा लोग संक्रमित पाए गए हैं जबकि टोंक में अब तक कुल 93 कोरोना संक्रमित लोग चिन्हित किए जा चुके हैं ऐसे में इनकी मति भ्रमित हो गई है जो इन्हें विनाश की ओर ले जा रही है. क्या यही है इनका धर्म इस प्रदेश और देश के प्रति ? या फिर यह वर्ग किसी राजनीति का शिकार हो रहा है ? आखिर किसके बहकावे में ये वर्ग कोरोना वॉरियर्स का विरोध और बहिष्कार कर रहा है? और उन पर आए दिन हमले की घटनाएं हो रही हैं.
वहीं जयपुर में घटी दूसरी घटना, कोरोना पर गहराते संकट, बार-बार दी जा रही चेतावनी, सख्त लॉकडाउन और ऊपर से धारा 144 के बाद भी इन वर्ग विशेष के लोगों के बात समझ में नहीं आ रही है. शुक्रवार को जयपुर के खो-नागोरियान इलाके की आयशा मस्जिद में 15 लोग एक साथ नमाज पढ़ने पहुंच गए बिना किसी डर के. सूचना पर पहुंची खो नागोरियान थाना पुलिस ने धारा 144 का उल्लंघन करने के आरोप में सभी को हिरासत में ले लिया. लेकिन इस बात की क्या गारंटी है कि अब ऐसा नहीं करेंगे ये लोग. इसके अलावा रामगंज जैसे इलाके से महाकर्फ्यू को तोड़कर कुछ लोगों का मुहाना मंडी तक चले जाना, सांगानेर तक पहुंच जाना और रामगंज से निकल कर कई जिलों की सीमाबन्दी को तोड़ते हुए बाड़मेर तक पहुंच जाना, कहीं से लगता है इन्हें डर है किसी का?
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सारी बातों का लब-ओ-लुआब यही है कि जब सरकार इन लोगों का इतना अच्छा ध्यान रख रही है, अभी तक अन्य प्रदेशों की तरह इन पर कोई रासुका या अन्य कोई कठोर कानून नहीं लगा रही है तब तो सरकारी कोरोना वॉरियर्स के प्रति इनकी यह भावना है. तो हे सरकार! इससे एक बात तो साफ हो रही है कि अगर अभी जब यह लोग सरकार का सहयोग नहीं कर रहे हैं तो छूट के दौरान इन से सहयोग की क्या उम्मीद की जा सकती है? ऐसे में सरकार में शामिल और विपक्ष में बैठे नेताओं से प्रदेश की जनता चाहती है कि अब अपनी-अपनी राजनीतिक रोटियां सेकना बंद कर और वोट बैंक की राजनीति को छोड़ कर प्रदेश को इस महामारी से बचाएं क्योंकि अगर प्रदेश ही नहीं होगा तो राजनीति कहां और किस पर करोगे?